!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 52 !!
अब सौ वर्ष का दारुण वियोग..
भाग 2
गोविन्द ! सखे ! प्रिय ! कहाँ हो तुम ?
आगयीं हैं श्रीराधा रानी वृन्दावन में…….और वो खोज रही हैं…..पुकार रही हैं अपनें प्रियतम को……पर श्याम सुन्दर आज वृन्दा सखी से ही बाते करनें में लीन हैं ।
लम्बी साँस लेकर वृन्दा बोलती रही……..”तुम्हारे जानें के बाद ये वृन्दावन ऐसा हरा रहेगा ? इस यमुना में जल रहेगा श्याम ? इन बृजवासियों में प्राण रहेंगें ? हे श्याम ! तुम्हारे लिये और भी बहुत कुछ है कर्तव्य , धर्म, नीति बहुत कुछ ……पर इन वृन्दावन वासियों के पास कुछ नही तुम्हारे सिवा ………तुम ही इनके धर्म हो , तुम्हीं कर्तव्य, तुम्ही नीति , रीती ……..सब तुम्ही हो …………
हिलकियों से रो पड़ी वृन्दा देवी ………….मैं देख रही हूँ अक्रूर निकल रहा है मथुरा से …..कंस नें भेजा है उसे ……..वो तुम्हे लेनें ही आरहा है ……….तुम तो चले जाओगे ………..ओह ! सौ वर्ष के लिए ?
सौ वर्ष का दारुण वियोग…….उफ़ !
वृन्दा के आँसु अविरल बहते जा रहे थे ।
श्याम सुन्दर ! प्यारे ! कहाँ हो ?
इधर श्रीराधारानी पुकारती हुयी घूम रही हैं वृन्दावन में ।
“जाओ ! अपनी अल्हादिनी के पास” अपनें आँसू पोंछे वृन्दा नें …..अब तो इन्हीं आँसुओं के सहारे ही जीना है……..वृन्दा क्या कहती !
जाओ ! तुम्हारी प्रिया आगयीं हैं …….जाओ श्याम !
क्या कहोगे अपनी आल्हादिनी से, कि अक्रूर तुम्हे लेने चल दिया है मथुरा से ? और तुम्हे जाना है मथुरा ………..कह सकोगे ?
नही ! ………आवाज भर्रा गयी थी श्याम सुन्दर की ।
नही कह सकूँगा ………….इतनी हिम्मत नही है मुझ में ……..वो मेरी कोमलांगी “श्रीजी” सह नही पायेगी ।
इतना ही बोल सके थे श्याम सुन्दर ।
जाओ अब ! सजा देती हूँ तुम्हारे विहार के लिये सुमन सेज …….जाओ अपनी श्रीराधा के पास …………सजा देती हूँ कुञ्जों को ……..ये लीला अब वृन्दावन में अंतिम है ?
रो गए कृष्ण ……ऐसा मत बोलो ………………
“जाओ ! मैं अब जा रही हूँ बरसाना …..और अब कभी नही आऊँगी ….तुम बजाते रहो बाँसुरी ………मैं गयी ……..श्रीराधा रानी जानें लगी थीं बरसाना वापस ……..श्याम सुन्दर को इशारा किया वृन्दा नें ……….कृष्ण श्रीराधा के सामनें प्रकट हो गए थे ।
मैं जा रही हूँ….अब तुम ही रहो इस वन में,
गुस्से में श्रीराधा रानी चल दीं ।
राधे ! क्या तुम सचमुच नाराज हो ? पीछे दौड़ पड़े थे श्याम सुन्दर ।
मुझे सजा दो ……..मुझे अपनें नखों से आघात करो ……अपनी बाहों में मुझे कैद करो …….अपनें दाँतो से मुझे काटो……..पर प्रिये ! . मान जाओ …..रूठो मत………हाथ जोड़कर बैठ गए थे कृष्ण ।
पर – श्याम सुन्दर रो गए …………इस तरह से रोते हुए कभी देखा नही था श्रीराधा रानी नें भी ।
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –
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