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November 22, 2024 5:12 am

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!! राधा बाग में – “श्रीहित चौरासी”!!-कीजिये मन का त्राटक – “अधर अरुण तेरे कैसैं कैं दुराऊँ” : Niru Ashra

!! राधा बाग में – “श्रीहित चौरासी”!!-कीजिये मन का त्राटक – “अधर अरुण तेरे कैसैं कैं दुराऊँ” : Niru Ashra

!! राधा बाग में – “श्रीहित चौरासी”!!

( कीजिये मन का त्राटक – “अधर अरुण तेरे कैसैं कैं दुराऊँ” )

गतांक से आगे –

मैं अल्मोडा उत्तराखण्ड से आया हूँ ……क्या करते थे वहाँ ?

योग का अभ्यास ।

योग के अभ्यास में किसमें सिद्धि पाई ?

त्राटक में । कुछ बताओ त्राटक के विषय में ?

वो युवक बताने लगा ।

पागल बाबा उस सुन्दर युवक से आज चर्चा कर रहे थे …वैसे ये करते नही हैं ….मैंने भी सुना …तो उस युवक की ओर ध्यान से देखा …युवक तेजपूर्ण था …उसका मुखमंडल दमक रहा था ….कुछ विशेष देखा इसलिये बाबा इस युवक से बातें कर रहे हैं …और बहुत देर से बातें कर रहे हैं …..शाश्वत ने कहा । आँखों में तेज है …..शाश्वत मुझ से बोला …त्राटक सिद्ध है इसे । मैं ज़्यादा नही जानता त्राटक के विषय में ….हाँ , मेरे साथ एक हारमोनियम वाला चलता था उसकी आँखों में डबल पावर वाला चश्मा था एक दिन उसने ही मुझे बताया की त्राटक के कारण उसकी आँखें खराब हो गयी थीं ।

आपकी आँखों में बहुत शक्ति है …पर बिखरी हुई है …आपकी वाणी में बहुत शक्ति है पर आप व्यर्थ की बातें करते रहते हैं इसलिए वाणी में शक्ति बची नही …त्राटक आपकी शक्ति को बिखरने नही देता …उस युवक ने अन्तिम में यही कहा पागल बाबा से ।

साँस का त्राटक प्राणायाम है ….वो युवक आगे बोल रहा था । साँस में बहुत शक्ति है …आपने भी देखा होगा …लोग गाड़ी को अपनी छाती पर चढ़ा लेते हैं ….ये किसके कारण ? साँस के त्राटक प्राणायाम के कारण । तो हमें अपनी शक्तियों को बिखरने से रोकना होगा ….वो युवक अन्तिम में फिर यही बोला ।

गौरांगी वीणा लेकर आई …लोग आने शुरू हो गये हैं राधा बाग में ….सब “राधा राधा” बोल रहे हैं …रसिक भक्त जन अपने अपने स्थान पर बैठ गए हैं ….किसी ने नेत्र बंद कर लिये हैं , कोई श्रीहित चौरासी जी का पाठ कर रहा है …कोई युगल नाम का जाप कर रहा है ।

आज मोगरे और वेला के फूल आए हैं …वो भी थोक में …कमसे कम चार बड़े बड़े बोरे तो हैं हीं …एक बोरा गुलाब का भी है ..और सौ पुष्प कमल के हैं …जो एक भगत जी लाये हैं ।

उन्हें सजा रही है गौरांगी उसके साथ बरसाने की कुछ सखियाँ भी हैं । पचास मिट्टी के पात्र आये हैं उनमें जल भरकर दो कमल रख दिये हैं ….इससे शोभा दिव्य हो गयी है बाग की …फूलों को , वृक्षों के आस पास सजा दिया है ….सफेद मोगरे और वेला के साथ गुलाब की पंखुडियाँ बहुत सुन्दर लग रही हैं ।

आप ये क्या करते हैं ? कल मैंने आपको सुना था …आप बस श्रीराधा कृष्ण की झाँकी का वर्णन ही करते रहते हैं ….कुछ और ज्ञान की बातें नही बताते ? ये प्रश्न उस युवक ने बीच में ही पूछ लिया । बाबा हंसे ..खूब हंसे …..फिर उस युवक को देखा ….हंसते हुये बोले ….”ये मन का त्राटक है “….बालक ! हम “मन का त्राटक” सिखाते हैं । वो बेचारा सीधा था …उसे सच में इस रस उपासना , प्रेम उपासना के सम्बन्ध में कुछ पता नही था । क्या मन का त्राटक भी होता है ? उस युवक ने प्रश्न किया । बाबा बोले – आँखों के त्राटक , वाणी के त्राटक से भी ज़्यादा आवश्यक मन के त्राटक की है । कैसे ? बाबा बोले सबसे बड़ी शक्ति मन की है , है ना ? फिर उस मन की शक्ति को हम इधर उधर बिखेर रहे हैं …..कभी धन का चिन्तन करते हैं …..कभी शत्रु का …..कभी मित्र का ….इस कारण हमारा मन , हमारे मन की शक्ति बिखर गयी है ….क्या आवश्यक नही है कि हम उन मन की शक्ति को एक जगह ही लगायें ? बाबा बोले । वो युवक सोचने लगा ….सरल हृदय का था जीवन में उसके आग्रह दुराग्रह नही था इसलिये वो तुरन्त बोला ….ओह ! तभी आप सबको श्रीराधाकृष्ण का ध्यान बताते हैं ….फिर उसका ध्यान करने से मन उसी में लग जाता है ! है ना ? बाबा इसकी सरलता से ही प्रसन्न हो गये थे इसलिए तो इतनी चर्चा कर रहे थे । मन से व्यर्थ का चिन्तन क्यों ? मन को एक में लगाओ …..बाबा उस युवक से बोले । श्रीराधा कृष्ण में ही क्यों ? ॐ में भी तो ? बाबा ने कहा …मन रस चाहता है ….ॐ में आपके मन को रस नही मिलेगा ….मन नित नूतन चाहता है …मन पुराने से बोर हो जाएगा ….इसलिए श्रीराधाकृष्ण ….ये प्रेम का साकार रूप है ….प्रेम निराकार है ….वो तत्व है …पर उसी निराकार प्रेम का आकार दो रूपों में प्रकट होता है …प्रेमी और प्रियतम …ये निराकार प्रेम का साकार रूप है …और यही श्रीराधा और श्रीकृष्ण हैं । उस युवक ने तुरन्त अपने नेत्र बन्द किये ….और बोला …मैं भी करूँगा आज से ये मन का त्राटक । बाबा हंसे ….मेरी ओर देखते हुए बोले ….ऐसे समझाना पड़ता है । फिर संकेत करके गौरांगी को पद गाने के लिए कहा ….आज श्रीहित चौरासी जी का चौदहवाँ पद है …..वीणा के तारों में राग तोड़ी में गौरांगी ने गान किया …..तोड़ी राग मीठा राग है । राधा बाग में मिठास घुल गयी थी ।


                            अधर  अरुन  तेरे  कैसैं  कैं  दुराऊँ ।

                 रवि शशि शंक भजन किये अपु वस,   अद्भुत रंगनि कुसुम बनाऊँ ।।

                  शुभ कौसेय कसिव कौस्तुभ मणि ,  पंकज सुतनि लै अँगनि लुपाऊँ ।

                 हरषित इंदु तजत जैसे जलधर ,   सो भ्रम ढूँढ कहाँ हौं पाऊँ ।।

                  अंबुद दंभ कछू  नहिं व्यापत , हिमकर तपैं ताही कैसे कैं बुझाऊँ ।

                 श्रीहित हरिवंश रसिक नव रँग पिय , भृकुटी भौंह तेरे खंजन लड़ाऊँ । 14 !

अधर अरुण तेरे कैसे के ………

राग तोड़ी में …वीणा के साथ …पखावज के ताल में ….इस पद का गान किया गया ….फिर बाबा ध्यान कराने लगे …वो युवक भी शान्त भाव से नेत्र बन्दकरके ही बैठा था …..


                                    !! ध्यान !!

     श्रीवृन्दावन की शोभा आज अनुपम है ....ये वो श्रीवन है जो क्षण क्षण में बदलता रहता है ....इसकी शोभा नित नूतन है ...जितनी बार देखा जाये ये श्रीवन नया लगता है ...इसकी भूमि मणियों से खचित है ....इसके वृक्ष नव पल्लवों से सुशोभित रहते हैं । यहाँ दो ही ऋतुओं का स्थाई वास है ....शरद या वसन्त ....वैसे सखियों की जब जो इच्छा हो यहाँ वही हो जाता है  क्यों की युगल की ‘इच्छा शक्ति’ यहाँ सखियाँ ही हैं ।    आज श्रीवन प्रफुल्लित है ....मोर आदि उन्मत्त हो प्रातः ही नृत्य करने लगे हैं ...पक्षियों का झुण्ड  कलरव कर रहा है ....

सखियाँ अब स्नान कुँज में श्रीराधा और श्याम सुन्दर को लेकर आईं हैं …अब इनका स्नान होगा ….किन्तु स्नान कुँज दो हैं ….एक में प्रिया स्नान करेंगीं और दूसरे में श्याम ।

स्नान कुँज लताओं से आच्छादित है …..उन लताओं में सुन्दर सुन्दर पुष्प लगे हैं …सब के सब खिले हुए हैं …उनमें से सुगन्ध निकल रही है । आहा ! केले के खम्भे भी हैं …उनकी शोभा भी देखते ही बन रही है । उस स्नान कुँज में छोटी छोटी बावडी हैं …अनेक हैं ….उन बावड़ी की कलात्मकता अद्वितीय है …अद्भुत मणियों की पच्चिकारी है उन बावड़ी के चारों ओर ….एक बावड़ी जिसका आकार त्रिकोण है…जिसमें केशर का जल भरा है …थोड़ा पीला लग रहा है वो जल …उसमें कमल खिले हैं वो पीले रंग के हैं …सुगन्ध उसमें से केसर की आरही है …उन कमल में भ्रमरों की भरमार है । एक बावडी है …जिसका आकार चोकोर है ….नील मणि की पच्चिकारी है …उस बावड़ी में शीतल गुलाब की सुगन्ध आरही है …उसमें जो कमल खिले हैं वो गुलाबी रंग के हैं उसकी मादकता सुगन्ध में अलग ही है । एक बावड़ी तो नीलमणि की है….उसमें नीले कमल खिले हैं ….उस का जल नीला ही है ….उसमें से जो सुगन्ध निकल रही है …वो चन्दन की है ।

इस तरह कई कई बावड़ी हैं ….उनके पास इत्र फुलेल लेकर सखियाँ खड़ी हैं …..

श्याम सुन्दर प्रसन्न हैं ….वो अपना मुख बावड़ी के जल में देखते हैं तो ऐसा लगता है मानों पूर्ण चन्द्र जल में प्रकट हो गया हो । शीतल मन्द वायु बह रही है …उससे जल में कुछ कम्पन हो रहा है ….एक मध्य में छोटा सा जलाशय है …उसमें हंस हंसनी खेल रहे हैं ।

श्याम सुन्दर ठहर गये हैं यहाँ …उन हंसों की क्रीड़ा को देखते हैं …उन्हें बहुत अच्छा लग रहा है। तभी एक सखी बोली …आप दोनों की जोड़ी भी हंस हंसिनी की तरह अद्भुत लगती है ।

मेरी हंसिनी ? हाँ , स्तब्ध हो गये श्याम सुन्दर …उन्हें अपनी प्यारी याद आगयीं …हृदय एकाएक व्याकुल हो उठा ….कहाँ है मेरी राधा ? दौड़ पड़े , हा राधा ! हा राधा ! कहते हुये । बाहर गये तो सामने एक और स्नान कुँज है ..जिसके भीतर श्रीराधिका जी गयीं हैं …ये भीतर जाने लगे तो हित सखी ने इन्हें रोक दिया …आप नही जा सकते । क्यों ? श्याम सुन्दर ने नम्र होकर पूछा । क्यों की पुरुष का प्रवेश नही है भीतर । सखी ने भी तुनक कर कह दिया । कुछ देर सोचते रहे श्याम सुन्दर फिर बोले …”मुझे सखी बना दो” …सखी हंसी …बना तो दूँ …पर प्यारे !

“ अधर अरुन तेरे कैसे कै दुराऊँ” ?


सखी हंसती है और कहती है …चलो मैं आपको सखी बना दूँगी ….पर आपके इन लाल अधरों को कैसे छुपाऊँ ?

क्यों ऐसे लाल अधर क्या प्यारी के नही हैं ? श्याम सुन्दर बोले ।

ये सुनकर सखी खुल के हंसी और बोली – यही तो दिक्कत है कि जैसे उनके लाल अधर हैं वैसे ही आपके भी हैं ….वो पहचान जायेंगी ।

फिर क्या करें ! श्याम सुन्दर ये सुनकर दुखी होकर कुछ सोचने लगे ..फिर बोले …एक काम कर सखी ! फूलों को निचोड़ और इनका रस-रंग मेरे अधरों में लगा दे ..फिर नही पहचान पायेंगीं ।

सखी हंसी और बोली – ठीक है ये मैं कर दूँगी पर मुझे सूर्य चन्द्र का डर है ….फिर कुछ देर सोचकर सखी बोली …प्यारे ! आप एक काम करो शान्ति से बैठकर सूर्य चन्द्र का भजन करो और उनसे कहो कि वो आपको अभय दे दें । इस बात पर श्याम सुन्दर बोले …मतलब ? सखी बोली …सूर्य का ताप , यानि प्रिया के विरह का ताप उससे आपके अधर सूख जायेंगे और बाहर से किया गया रंग मिट जायेगा …चन्द्र का ताप यानि मिलन , जब आप अपनी प्रिया से मिलोगे तब अमृत मय प्रिया के अधर का स्पर्श पाते ही आपके नकली अधर का रंग उड़ जायेगा …..प्यारे ! प्रिया जी समझ जायेंगी ।

श्याम सुन्दर ये तर्क सुनकर फिर मौन हो गए ….

चलो ! आपके वक्ष में पडी ये कौस्तुभ मणि भी छुपा दूँगी …किन्तु आपका जो श्याम अंग है उसे कैसे छुपाऊँ ? सखी फिर थोड़ी देर सोचकर बोली …..हाँ , उसे भी छिपाया जा सकता है ….सोच रही हूँ पराग का लेपन कर दूँगी आपके अंग में …पर प्यारे ! जब आपके मन में प्रिया से मिलने की भावना उदित होगी और आप मिलने जाएँगे तब आपके मन को रोमांच होगा ..उस मन के रोमांच में ये बाहर से लगाया गया लेप धुल जाएगा …बह जाएगा और आपका श्याम रंग सामने आजाएगा ।

“तो मन को स्थिर कर दो”…..श्याम सुन्दर ने सखी से कहा । सखी बहुत हंसी …ठहाका लगाकर हंसी…ये तो और कठिन काम है …क्यों की अभी आपके मन को स्थिर कर भी दिया जाये किन्तु जब प्यारी आपके पास आयेंगी ….तब तो मन स्थिर रह ही नही सकता । धैर्य रखूँगा सखी ! धैर्य रूपी बादल में अपने मन रूपी चन्द्र को छिपा लूँगा…..श्याम सुन्दर बोले ।

सखी फिर हंसी ….प्रिया के रूप में जब चन्द्रमा रूपी मन तुम्हारा तपने लगेगा …तब क्या होगा ? सखी बोली – प्यारे ! सब के ताप को चन्द्रमा दूर करता है पर यहाँ तो चन्द्रमा ही तपने लगे तो उसे कैसे शीतल करूँ ? ये तो असम्भव है …सखी हाथ हिलाते हुये बोली ।

इस तरह सखी की बातें सुनकर श्याम सुन्दर के नयन अब तो और प्रिया जू से मिलने के लिए व्याकुल हो गये …सखी ने देखा – इनकी व्याकुलता बढ़ती ही जा रही है ….तो हित सखी बड़े प्यार से बोली …प्यारे ! अब तो चलो भीतर स्नान कुँज में …मैं आप दोनों के नयन और भौंह को लड़ा देती ही देती हूँ….आनन्द आयेगा । और पक्का कहती हूँ ..हार जायेंगे तुम्हारे नयन प्यारी के नयनों से । इतना कहकर वो सखी श्याम सुन्दर के हाथों को पकड़ कर स्नान कुँज में मत्त गति से चल दी थी ।


बाबा बोलकर मौन हो गए ….पर वो युवक अब मुस्कुरा रहा था उसके नेत्र बन्द थे ….उसके हृदय में ये झाँकी प्रकट हो गयी थी । वो बोला भी ….ये “मन का त्राटक”तो सबसे ऊँचा है । बाबा बोले …ये मात्र मन का त्राटक नही है ….ये इससे बहुत ऊँची वस्तु है । ये प्रेमराज्य की बात है ।

बाबा इतना ही बोले और ……

“अधर अरुन तेरे कैसे कैं दुराऊ” ।

गौरांगी ने फिर गायन किया इसी चौदहवें पद का । अद्भुत ! राधा बाग सराबोर है रस में ।

आगे की चर्चा अब कल –

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