!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 53 !!
उन्मादिनी श्रीराधिका
भाग 2
ओह ! कैसी हृदयविदारक सूचना है ………है ना ललिता ! झूठी है ये …………अच्छा तू बता ! चलें अब नन्दगाँव ! इसनें ये सब कह दिया ना …..तो मुझे अब नन्दनन्दन को देखनें की इच्छा हो रही है …..
चल ललिते ! चल बिशाखा ! चल ………
श्रीराधा रानी चल पडीं नन्दगाँव की ओर……..मष्तिष्क काम नही कर रहा ललिता और बिशाखा सखी का………..अपनें आँसू पोंछ रही हैं …….और अपनी लाडिली को लेकर चली जा रही हैं ।
श्याम सुन्दर चले जायेंगें ……….उस दृश्य को हमारी लाडिली देख पाएगी ? ओह !
हे विधाता ! आज का दिन अच्छा नही है …………इस वृन्दावन के लिये अच्छा नही है आज का दिन ……….हाँ मथुरा के लिए तो बहुत अच्छा है ……….पर हम लोग ? फिर दृष्टि जाती है श्रीराधा रानी के ऊपर…….वो चली जा रही हैं……..श्याम सुन्दर को देखना है इन्हें …….पूछना भी तो है ।
भीड़ लगी है नन्द महल में ………………
एक रथ भी खड़ा है ………उस रथ को कोई सजा रहा है ।
इतनें लोग क्यों हैं आज नन्दमहल में ? चौंक कर पूछती हैं श्रीराधा ।
कुछ नही कहती सखियाँ…….बस श्रीराधा रानी को आगे ले जाती हैं ।
सुनो ! सुनो ! अक्रूर से ही श्रीजी पूछनें लगीं ।
हाँ …क्या बात है ? अक्रूर नें सहजता से श्रीराधा को देखकर कहा ।
क्यों आये हो तुम ? बताओ ना ! क्यों आये हो ?
“मैं कृष्ण का काका हूँ” ………अक्रूर नें इतना ही उत्तर दिया ।
पर पहले तो कभी नही आये थे तुम यहाँ ? श्रीराधा पूछ रही हैं ।
“मैं मथुरा से आया हूँ …….और कृष्ण को ले जा रहा हूँ “
ओह ! कितना कठोर शब्द बोल दिया था अक्रूर नें ………..
इतना भी नही सोचा ……कि श्रीराधा रानी पर क्या बीतेगी ?
किसनें नाम रखा तेरा अक्रूर ? कितनी क्रोध में आगयीं थीं ये श्रीजी की सखियाँ …….और क्यों न आएं क्रोध में ……..उनकी स्वामिनी मूर्छित हो गयी थीं ये सुनते ही कि ……..कृष्ण जा रहा है ।
अक्रूर नाम किसनें रखा तेरा ………..अक्रूर ? तेरे जैसा क्रूर इस दुनिया में कोई नही है ………….हमारे प्राणों को ले जा रहा है …और कहता है अक्रूर नाम है तेरा ।
अक्रूर के समझ नही आरहा …….कि ये हो क्या रहा है यहाँ ?
दिव्य तेजपुंज गौरवर्णी एक आभा धरती में पड़ी है ….मूर्छित ।
वो कुछ समझ नही पारहे ……………..
बृजरानी यशोदा मैया से आज्ञा ली कि तुम कृष्ण को मथुरा लिए जा रहे हो ? ललिता पूछ रही है अक्रूर से ।
हाँ …आज्ञा ली – अक्रूर का उत्तर ।
बृजपति नन्द से भी पूछा ? ललिता का ही प्रश्न था ये भी ।
हाँ उनसे भी पूछ लिया …..अक्रूर इतना बोलकर फिर श्रीराधा रानी को देखनें लगे …….।
हमसे पूछा ? बिशाखा सखी चिल्लाई ……….हम गोपियों से पूछा ?
इस वृन्दावन से पूछा ? इस वन के पक्षियों से पूछा ? इस वन के बन्दरों से ………वृक्षों से …..फूलों से ………कहते कहते रोनें लगी बिशाखा ……….।
ऐसे कैसे ले जाओगे अक्रूर ? ये वृन्दावन मर जाएगा इन कृष्ण के बिना ………हम लोग कैसे रहेंगीं ?
ओह ! इन सबका उत्तर दे पाते भला अक्रूर ?
वो तो कुछ समझ ही नही पा रहे हैं कि ये सब क्या हो रहा है ।
तभी –
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल …..
Author: admin
Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877