!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 53 !!
उन्मादिनी श्रीराधिका
भाग 3
बृजरानी यशोदा मैया से आज्ञा ली कि तुम कृष्ण को मथुरा लिए जा रहे हो ? ललिता पूछ रही है अक्रूर से ।
हाँ …आज्ञा ली – अक्रूर का उत्तर ।
बृजपति नन्द से भी पूछा ? ललिता का ही प्रश्न था ये भी ।
हाँ उनसे भी पूछ लिया …..अक्रूर इतना बोलकर फिर श्रीराधा रानी को देखनें लगे …….।
हमसे पूछा ? बिशाखा सखी चिल्लाई ……….हम गोपियों से पूछा ?
इस वृन्दावन से पूछा ? इस वन के पक्षियों से पूछा ? इस वन के बन्दरों से ………वृक्षों से …..फूलों से ………कहते कहते रोनें लगी बिशाखा ……….।
ऐसे कैसे ले जाओगे अक्रूर ? ये वृन्दावन मर जाएगा इन कृष्ण के बिना ………हम लोग कैसे रहेंगीं ?
ओह ! इन सबका उत्तर दे पाते भला अक्रूर ?
वो तो कुछ समझ ही नही पा रहे हैं कि ये सब क्या हो रहा है ।
तभी –
राधे ! राधे ! मेरी प्यारी !
दौड़ पड़े थे श्याम सुन्दर अपनी श्रीराधा को मूर्छित हुआ सुनके ।
उठा लिया था ……अपनी गोद में श्रीजी का मस्तक रख लिया था ।
राधे ! बोलो ! राधे ! अपनें नेत्र खोलो ……..ऐसे मत करो प्यारी !
बिलख पड़े थे श्याम सुन्दर तो ।
श्याम सुन्दर ! आँखें खोलीं थीं राधिका नें …..अपनें हाथों से श्याम के कपोलों को छूआ था ।
तुम जा रहे हो ? आँखों में आँसू भर आये थे ।
कुछ नही बोल पाये श्याम सुन्दर ।
बोलो ना ! जा रहे हो ? श्रीराधा नें फिर पूछा ।
मुझे जाना पड़ेगा ……..राधे ! मुझे जाना पड़ेगा …………
कब आओगे ? श्रीराधा नें फिर पूछा ।
बताओ ना ! कब आओगे ?
इसका कोई उत्तर नही दिया कृष्ण नें ।
राधे ! मेरी प्यारी ! मुझे जाना पड़ेगा …………धर्म, कर्तव्य, नीति, बहुत कुछ है जिसका मुझे निर्वाह करना है …………..
बोले बहुत थे श्याम सुन्दर……….पर श्रीराधा आज वो क्या बोल रहे हैं इसे नही सुन रही थी………वो बस निहार रही थी अपनें प्रियतम को ……क्यों कि अब ।
तो अब सौ वर्ष के बाद मिलेंगें ? हिलकियाँ फूट पडीं श्रीराधा की ।
अपनें आँसुओं को पोंछते रहे हैं श्रीकृष्ण ।
फिर एकाएक अपनी श्रीराधा को उठाया ……….बड़े प्रेम से ……….फिर स्वयं घुटनों के बल बैठ गए उनके सामनें ……….फेंट में से अपनी बाँसुरी निकाली ………….अपनें हाथों में रखते हुए सजल नयन हो गए थे ।
ये क्या है ? श्रीराधा नें पूछा ।
ये बाँसुरी है ……………राधे ! मैं ये बाँसुरी तुम्हे देता हूँ ……….
पर मुझे क्यों ? श्रीजी कुछ समझ नही पाईँ ।
मथुरा में बाँसुरी को कोई नही सुनेगा …….न द्वारिका में ……..
क्यों की ये प्रेम की वस्तु है ……….जहाँ प्रेम हो वहीं ये बजती है ……अब प्रेम तो वृन्दावन में ही है ……………नेत्रों से टप् टप् आँसू बह रहे हैं श्रीकृष्ण के ……….
राधे ! ये बाँसुरी मैं तुम्हे देता हूँ ……..जब मेरी याद आये बजा लेना ।
ना ! मैं नही बजाऊंगी …………तुम्हारी बाँसुरी मैं कैसे बजा सकती हूँ ?
मैं इसकी पूजा करूंगी ……….मैं इसको नित्य भोग लगाउंगी ………
मेरी जब याद आये ….इसे बजा लेना …..मैं तुम्हारे सामनें खड़ा हो जाऊँगा …..कहीं भी होऊं …….कृष्ण फिर बोले ।
हँसी श्रीराधा रानी ………..”जब याद आये बजा लेना” ?
क्या कहा तुमनें ? “जब मेरी याद आये बजा लेना बाँसुरी”…….
याद नही आएगी तुम्हारी श्याम !…….इसलिये राधा ये बाँसुरी कभी नही बजाएगी……..कैसा विलक्षण उन्माद था श्रीराधा रानी का ।
मेरी याद नही आएगी ? कृष्ण नें फिर पूछा ।
प्यारे ! याद उसकी आती है जिसे भूलते हैं ……….तुम्हे लगता है ये राधा तुम्हे कभी भूलेगी ? और जब भूलेगी नही तो याद कैसे ?
श्रीराधा के नेत्र फिर बह चले…………बाँसुरी तो मैं बजाऊंगी ही नही ………क्यों कि प्यारे ! मैं बुलाऊँ और तुम आओ ……ये आना नही हुआ …………प्रिय ! तुम्हे जब लगे कि अपनी राधा से मिल आऊँ तब तुम स्वयं आजाना ……..मैं नही बुलाऊंगी …………पता नही तुम वहाँ राजा बन जाओगे ……..कितनी व्यस्तता होगी …..।
श्रीराधा रानी नें कृष्ण के कपोल छूए …………”.तुम्हारे सुख में सुखी हैं हम” ……..तुम्हे अच्छा लग रहा है जाना, मथुरा जाओ ! मैं कुछ नही कहूँगी ……कुछ नही…….इतना कहकर चुप हो गयीं ।
दुःख इतना बढ़ता जा रहा है भीतर ही भीतर ………कि श्रीराधा रानी जड़वत् होती जा रही हैं ……….वो कभी हँस रही हैं ………कभी रोनें लग जाती हैं ………आसुंओं से उनके वस्त्र सब भींग गए हैं ।
मत करना प्रेम ! प्रेम कभी मत करना ………और इस छलिया से तो करना ही मत ………..हँसते हुए बोल रही हैं श्रीराधारानी ।
पर इसी हँसी में विरह की वो ज्वाला दबी हुयी है ……….उफ़ !
शेष चरित्र कल …..
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