!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 54 !!
वियोगिनी -“श्रीराधारानी”
भाग 1
कौन नही रो रहा था उस दिन ……….मुझे स्मरण नही कि मेरे नेत्रों से कभी अश्रुपात भी हुआ हो …………मैं क्यों रोऊँ ? मैं तपश्वी मनश्वी …..पर उस दिन मेरे भी अश्रु बहुत बहे ।…….”कृष्ण अब वृन्दावन कभी लौटकर नही आयेंगें’ ……मुझे पता था …….पर मैं गोपियों को ये कैसे बताता ……….मैं श्रीराधारानी को ये बता पाता ? ……..पर हे वज्रनाभ ! मैं भूल गया था कि …….ये तो लीला है ………वृन्दावन छोड़कर भला कृष्ण कभी कहीं गए हैं ? ये तो लीलाधारी की लीला थी ………और इस बात से उनकी आल्हादिनी अनभिज्ञ थीं ?……कैसी सोच थी मेरी …….क्या अनभिज्ञ हो सकती हैं ? अरे ! ये अवतार की भूमिका इन्हीं नें तो तैयार की थी ……..पर चाहे कुछ भी कहो …. उस दृश्य को ये शांडिल्य देख नही सका था…….ओह ! कौन नही रो रहा था !….गोपियाँ ……बृजरानी यशोदा …….नन्दमहल का कोना कोना ……यमुना ….वृक्ष …….पशु …..पक्षी……।
वज्रनाभ ! मैने देखा था उस दिन ………..बन्दर शान्त थे …….ये वही बन्दर हैं ……जो उछलते कूदते कभी थकते नही थे ……..श्याम सुन्दर के साथी ये भी तो थे………कितना ऊधम मचा रखा था इन बन्दरों नें भी ………पर आज ? आज शान्त थे …..वृक्षों से देख रहे थे बस ……कि “उनका सखा जा रहा है.”…….आँसू बह रहे थे उनके भी …..कौन हमारा ख्याल रखेगा ? यही सोच रहे थे ये सब ।
पक्षी शान्त थे ……नित्य कलरव करनें वाले पक्षी शान्त थे आज …….
कन्हैया जो जा रहा था ……….अब काहे का कलरव !
यमुना कितनी उदास थी ……….अब कौन युगल क्रीड़ा करेगा ?
अब कहाँ जल विहार ? नौका से आती थी श्रीराधा और ये दोनों मिल जाते थे ……फिर इनकी प्रेम लीला ……..पर अब कहाँ ?
हे वज्रनाभ ! मेरी इच्छा नही थी उस विरह के दृश्य को देखनें की ….
पर मेरे यजमान की इच्छा थी ………..कि मैं वहाँ उपस्थित होऊं !
बृजपति नें मुझ से आग्रह किया था कि ……कंस के यहाँ जा रहा है उनका पुत्र ……कहीं कुछ अनिष्ट न हो जाए………इसलिये मुझे वहाँ उपस्थित होना था ……….मुझे स्वस्तिवाचन करना था …….जिससे यात्रा शुभ हो …….दूर्वा अक्षत श्वेत पुष्प मुझे देना था कृष्ण के हाथों में ………जिसे लेकर वे अपनें माथे में लगाते …….।
मैं पुरोहित बना था इस कुल का ………तो मुझे ये कार्य करना ही था ।
मैं पहुँचा जब नन्द के आँगन में …….कितनी भीड़ थी ……….मैं भीतर गया……..वह दृश्य ! ओह ! मुझे विचलित कर गया ।
श्रीराधा रानी रो रही हैं ………कृष्ण उन्हें सांत्वना दे रहे हैं ।
बृजरानी सब कुछ भूल रही है ………वो कभी बाहर जाती हैं ……फिर कुछ सोचकर भीतर आती हैं ………पर वो अपनें में ही नही हैं आज ।
उनके दुःख का पार कौन पा सकता है…उनका “लाला” जा रहा है मथुरा ।
मैं देख रहा हूँ …..बृजपति भी जा रहे हैं …..सखा भी जा रहे हैं ……..अक्रूर बाहर खड़े हैं रथ को लेकर ………..
चारों ओर से बस रोनें की आवाज ही तो आ रही थी ।
भैया ! तुम भी जा रहे हो ?
श्रीदामा श्रीराधा जी के भाई हैं …….वे भी जा रहे थे ।
हाँ ……राधा ! मैं भी जा रहा हूँ…..
…अपनें आँसू पोंछ लिए श्रीराधा रानी नें …….
कब तक आओगे भैया ? श्रीराधा नें पूछा ।
बस दो दिन में …….श्रीदामा नें कहा ।
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –
Author: admin
Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877