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November 22, 2024 10:24 am

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( सिद्ध सन्तों को भी भयानक रोग क्यों होते हैं ) प्रिय ! अवश्यम् एव भोगतव्यं ….श्री मद्भगवतगीता : Niru Ashra

( सिद्ध सन्तों को भी भयानक रोग क्यों होते हैं ) प्रिय ! अवश्यम् एव भोगतव्यं ….श्री मद्भगवतगीता  : Niru Ashra

( सिद्ध सन्तों को भी भयानक रोग क्यों होते हैं )

प्रिय ! अवश्यम् एव भोगतव्यं ….
( श्री मद्भगवतगीता )

मित्रों !

सिद्ध सन्तों महापुरुषों को भी भयानक रोग होते
हैं …..क्यों ?

रमण महर्षि , रामकृष्ण परमहंस, हनुमान प्रसाद
पोद्दार , रामचन्द्र डोंगरे …….ये सब
महापुरुष हुये हैं…..जगत का इन्होंने बहुत भला
किया है……अध्यात्म जगत में इनका बड़ा योगदान
है …..पर इन महापुरुषों को भी कैन्सर के कारण
शरीर छोड़ना पड़ा……क्यों ?

ये प्रश्न कोलकाता से एक युवा ने किया है
………….

मैने जब कल प्रातः “आज के विचार” भेजने के लिए
मोबाइल खोला तो वाट्सप में ये प्रश्न था
…………

प्रश्न तो और भी कई थे साधकों के …….पर इस
प्रश्न ने मुझे लिखने के लिए बाध्य किया ।

एक युवा चित्त में ये प्रश्न उठना स्वाभाविक
है…….।


हनुमान प्रसाद पोद्दार जी कई दिनों से बबासीर के
रोग से पीड़ित थे …..इस पीड़ा को देख नही पाते
थे – राधा बाबा ।

साधकों ! इन महापुरुषों से कृष्ण भगवान साक्षात्
बातें करते थे ….

आज राधा बाबा ने ध्यान की अवस्था में भगवान
श्री कृष्ण से प्रार्थना की ……….कि हनुमान
प्रसाद पोद्दार जी का कष्ट देखा नही जा रहा
……….उनका कष्ट दूर कर दो ……….

तब श्री कृष्ण का उत्तर था ………उनका अपना
कोई भोग नही है …….उन्होंने तुम्हारा बबासीर
का रोग अपने में ले लिया है ।

ये सुनकर राधा बाबा दौड़े हनुमान प्रसाद जी के
पास ………भाई जी ! मेरा रोग आपने क्यों लिया
?

ऐसा मत कीजिये …….मेरा रोग मुझे ही भोगने
दें !

तब हनुमान प्रसाद जी ने कहा था ……..बाबा !
मुझे कोई फ़र्क नही पड़ता ……क्यों कि इस देह
से मै परे जा चुका हूँ ………पर मुझे आपका
कष्ट देखा नही जाता ……इसलिए मैने अपने देह
में आपका रोग ले लिया है ।

ये घटना सत्य है …….और कैन्सर जैसा रोग भी
किसी का लिया था हनुमान प्रसाद पोद्दार जी ने ।


राम कृष्ण परमहंस जी को कैन्सर हुआ
……….उनको भी पूछा गया था …….पर
उन्होंने कभी कुछ नही कहा ।

हाँ …..एक बार माँ शारदा से अवश्य परमहंस जी
ने कहा था ……दया आजाती है …….लोगों को
रोग से पीड़ित देखकर …….आज एक कैन्सर से पीड़ित
व्यक्ति को देखा …..रहा नही गया …उसका रोग
अपने में मैने ले लिया ।

चौंक गयीं थीं माँ शारदा ।

क्यों किया आपने ऐसा ?

मुझे फ़र्क नही पड़ता …….मै इस देह में होने के
बाद भी देह से परे हूँ ………देह “मै” नही
हूँ………इसलिए इसके सुख दुःख मुझे अब विचलित
नही करते…….।

पर करुणा को मै छोड़ नही पा रहा हूँ…..शायद मेरी
माँ दुर्गा की यही इच्छा है …..और “करुणा”
मेरा स्वभाव है…..इसलिए ।

उस दिन राम कृष्ण देव की पत्नी माँ शारदा बहुत
रोईं थीं ।


ये कहानी भक्तमाल की है ……..इस कहानी से भी
आप बहुत कुछ समझ जाएंगे ।

जगन्नाथ पुरी में “माधव दास” नामक एक सिद्ध
महात्मा रहते थे ………..

कथा ऐसी है कि…….कई दिनों से माधव दास बाबा
को “अतिसार” हो गया था……दस्त इतने हो रहे
थे कि रुक ही नही रहे थे ……..वृद्ध बाबा
बार बार जाएँ शौच करने के लिए …..फिर आकर स्नान
करें ……पर फिर शौच लग जाए ।

और ये प्रक्रिया कई दिनों से चल रही थी ……अब
तो माधव दास बाबा का शरीर अत्यंत दुर्वल हो रहा
था ……..दवायें भी काम नही कर रही थीं
……..।

आज सुबह ही 3 बजे फिर उठना पड़ा ……ये सोये
ही कहाँ थे ….रात भर अतिसार से पीड़ित ।

तुम कौन हो ?

अच्छे से बोला भी नही जा रहा था माधव दास बाबा
से ।

एक छोटे से अत्यंत सुंदर बालक को देखा
………जब शौच करके कमजोरी के कारण ये बाबा
गिर गये थे…..और उठ भी नही पा रहे थे …..तब
आकर यह बालक शौच धो रहा था बाबा का ।

कौन हो तुम ?

स्वयं के शौच धोते देख, कमजोरी के कारण अचेत पड़े
बाबा ने पूछा …..

जगन्नाथ !
अपना नाम बताते हुये …… उस बालक के चेहरे
में एक मन मोहनी हंसी फैल गयी थी ।

जगन्नाथ ?

हाँ ……….जगन्नाथ ।

मेरे इष्ट ! मेरे नाथ ….मेरे सर्वस्व !
जगन्नाथ !

नेत्रों से अश्रु बह रहे थे……
माधव दास बाबा के ।

आप ये क्यों कर रहे हैं ?

तो फिर कौन करेगा ?

बताओ बाबा ! मेरे सिवा तुम्हारा क्या कोई और भी
है ?

नही …………

इतना ही बोले बाबा ।

भगवान जगन्नाथ बाबा की लँगोटी समुद्र में से
धोकर ले आये ।

सुनो ! भगवन् ! आप इस दुःख से मुझे मुक्त ही
क्यों नही कर देते ?

तब जगन्नाथ भगवान मुस्कुराये थे
………….बाबा ! कर्म का फल तो भोगना ही
पड़ेगा ।

हाँ……मै कुछ ही दिन में तुम्हे प्रारब्ध
का फल दे देना चाहता हूँ ……ताकि तुम जल्दी
से जल्दी भोगों को भोगकर……मेरे ही पास आजाओ
….बाबा ! ये दुःख जो आप भोग रहे हो ….ये
पूर्वजन्म का भोग है…..और मेरा नियम यही है
कि मै अपने लोगों को ( भक्त जन ) दुःख पहले
देता हूँ …..मै अपने भक्तों को दुःख के भोग
पहले देकर फिर अपने पास में बुला लेता हूँ ….
बाबा ! ये सफाई है ।

कथा कहती है कि – इतना कहकर भगवान जगन्नाथ
अन्तर्ध्यान हो गये ।


साधकों ! महापुरुषों को भी रोग होता है
………..कई रोग महापुरुषों ने स्वयं किसी के
लिए हुये होते हैं ……जैसे कैन्सर राम
कृष्ण परमहंस ने किसी रोगी के दुःख को न देख
सकने के कारण लिए थे ……….पर उन्हें फ़र्क
नही पड़ता ………..क्यों कि वो देह के सुख दुःख
से परे जा चुके होते हैं ।

दूसरा कारण – महापुरुषों के रोग का ये भी होता
है कि भगवान अपने भक्तों को “दुःख” पहले देते
हैं……और संसारियों को “सुख” पहले देते हैं

अपने भक्तों को दुःख देकर उसे दुःख के भोगों से
शीघ्र मुक्त करके …….फिर अपने पास बुला लेते
हैं ।

साधकों ! आप लोगों ने भी देखा होगा……और सुना
होगा…….

इस अध्यात्म मार्ग में आने से पहले …..गलत कर्म
करने वाले “सुख” भोगते थे…..पर जैसे ही वो
अध्यात्म में आये…..भगवत् साधना में लगे
उनका “दुःख” शुरू हो गया…….इसका रहस्य यही
है ……भगवान अपने लोगों को दुःख पहले देते
हैं……ताकि उस दुःख के भोगों की गन्दगी से
जल्दी ही उनका भक्त मुक्त हो जाए ….फिर आनंद
की ऐसी धरातल प्रदान करते हैं……कि भक्त
भगवत्ता की ऊर्जा से लवालव ही रहता है ।

सुख भी मुझे प्यारे हैं दुःख भी मुझे प्यारे हैं
…..
क्या कहुँ भगवन् दोनों ही तुम्हारे हैं ……

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