!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 54 !!
वियोगिनी -“श्रीराधारानी”
भाग 3
हमें बहुत कष्ट हो रहा है…..अक्रूर ! हमें बहुत दुःख हो रहा है ……
हमारी निधि को लिए जा रहे हो तुम…….बताओ किसे कष्ट नही होगा ?
अक्रूर !
श्रीराधा रानी बता रही थीं ……..जिनको तुम ले जा रहे हो ना …ये वृन्दावन के प्राण हैं …….तुम इनको ही लिए जा रहे हो ……।
हम क्या कहें तुमको ? बस यात्रा मंगलमय हो ….शुभ हो ……..क्यों की अक्रूर ! इससे ज्यादा तुम कुछ समझोगे भी नही ………।
रथ में बैठे कृष्ण …….सबको हाथ जोड़ा कृष्ण नें………रो पडीं गोपियाँ ……..मत जाओ ना ! हम कैसे रहेंगीं तुम्हारे बिना !
मैं आऊंगा ! मैं आऊंगा …..सबको कहा था श्याम सुन्दर नें ……..बस एक श्रीराधा थीं जो समझ रही थीं…..और एक मैं , महर्षि बोले ।
नही आयेंगें ये ………..एक गोपी उस भीड़ में चिल्लाई ………..
इतने सुन्दर कन्हैया को ……वो मथुरा की नारियाँ छोड़ेंगीं …..?
मैं आऊंगा …………मैं आऊंगा ……….कृष्ण कहते रहे ।
अक्रूर नें रथ को धीरे धीरे आगे बढ़ाना शुरू किया ।
कब आओगे ? श्रीराधा रथ के साथ ही चल रही हैं ………..
क्यों पागल बना रहे हो प्यारे ! तुम नही आओगे अब ………श्रीराधा रानी स्पष्ट बोलीं……..पर श्याम सुन्दर इसका कोई उत्तर नही दे रहे थे……..रथ बढ़ रहा था……….गोपियों की भीड़ के कारण रथ चल नही पा रहा था………..
ओह ! क्या बताऊँ मैं तुम्हे वज्रनाभ ! उन गोपियों की दशा !
कोई मूर्छित हो गयी थीं……..कोई गोविन्द , कृष्ण, माधव…..ऐसे ऐसे नाम लेकर पुकार रही थीं…….कोई रथ के ही पीछे भाग रही थीं ।
अब अक्रूर के रथ नें गति पकड़ी …………………
श्रीराधा रानी नें जब देखा अक्रूर का रथ चला जाएगा अब ………..
प्यारे ! मेरे प्रिय ! श्याम सुन्दर ! दौड़ीं रथ के वेग से श्रीराधा रानी ।
काका ! रथ रोको ………मेरी राधा दौड़ रही हैं ………..
पर ऐसे तो हम कभी मथुरा नही पहुँच पाएंगे ….अक्रूर नें कहा ।
न पहुँचें हम मथुरा……पर रथ रोको – कृष्ण नें कहा ।………..पर अक्रूर नें रथ को जब नही रोका ……..तब कृष्ण नें लगाम लेकर स्वयं ही रथ को रोक दिया ।
रथ के रुकते ही गिर गयीं श्रीराधा रानी ………कूद पड़े रथ से कृष्ण ।
राधे ! राधा ! चोट तो नही लगी ना ? कृष्ण नें पूछा ।
प्यारे ! आज ये राधा तुमसे क्षमा मांग रही है…….क्षमा कर दो ।
हाथ जोड़कर घुटनों के बल ….
….बोलो ! कर दोगे ना माफ़ , अपनी राधा को !
रो गए कृष्ण ……क्यों ऐसा कर रही हो ……….मैं न जाऊँ मथुरा ?
बोलो राधे ! बोलो !
नही ……..तुम्हे तो कर्तव्य, धर्म, नीति ये सब बुला रहे हैं ना ?
तुम जाओ …….पर इस तुम्हारी पगली राधा को माफ़ करते हुए जाओ ।
कैसी माफ़ी माँग रही हो ? आँसू भरे हैं नयनों में कृष्ण के ।
कितना दुःख दिया ना मैने तुम्हे ……….जब भी देखो मान कर बैठना ….बात बात में रूठ जाना ……….तुम्हे कितना दुःख दिया ना मैने ……रो गयीं श्रीराधा रानी …………मुझे क्षमा कर दो …………मुझे क्षमा कर दो …..इतना कहते कहते ……….मूर्छित हो गयीं थीं वे ।
वज्रनाभ ! रथ चला गया मथुरा ……..कृष्ण चले गए मथुरा ।
ओह ! वृन्दावन के पक्षियों नें कई दिनों तक दाना नही चुगा …..
बन्दरों नें जल तक नही पीया ……….मैने देखा उस दृश्य को ……….जब वृन्दावन की चींटियों नें भी आहार नही लिया था ।
फिर बृजरानी की बात ही क्या ? श्रीराधा रानी की बात ही क्या ?
गोपियाँ ? हाँ गोपियाँ एक काम अवश्य करती थीं नित्य ….माखन निकालना ……..और सजा कर रख देना ……….फिर वो इन्तजार करती थीं…….कृष्ण आएगा ! कन्हाई आएगा …..माखन खायेगा ।
उफ़ !
शेष चरित्र कल –
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