!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 56 !!
हाय री प्रिय स्मृति !
भाग 2
ललिते ! तू बहुत अच्छी है ……………पर मेरा शरीर इस प्रकार निष्प्राण सा क्यों हो रहा है ? ललिता ! बता ना ……..ये पृथ्वी क्यों घूम रही है ? पर पृथ्वी के घूमनें का क्या अभिप्राय हो सकता है ?
अरे ! ललिते ! ये कदम्ब का वृक्ष भी घूम रहा है ……….कहीं सचमुच मेरे प्राणनाथ चले तो नही गए मथुरा ? श्रीराधा रानी नें ललिता की ओर देखा ।
आप ये जल पी लें लाडिली !
श्रीराधा रानी को जल पिलानें लगीं थीं ललिता ।
पर रोष में आगयीं श्रीराधा रानी …………..ललिते ! तू मेरा ध्यान कृष्ण से हटाना चाहती है ………..तू क्या समझती है कृष्ण मुझे छोड़कर चले जायेंगें ? नही ……..वो मुझे कभी नही छोड़ सकते ………..वो मेरे बिना एक पल भी नही रह सकते ……………बता ना बिशाखा ! तुझे तो सबकुछ पता ही है ना ! श्याम सुन्दर क्या मुझे छोड़ सकते हैं ?
नही ……….मैं जाती हूँ ………मुझे जाना है वृन्दावन ………कहाँ है मेरी नौका ? बताओ ना ! उन्माद से भरी श्रीराधा रानी फिर उठीं …..और वृन्दावन जानें के लिए जिद्द करनें लगीं …………
पर फिर गिर पडीं थीं, बिशाखा सखी नें सम्भाला था ।
अपनी लाडिली को इस अवस्था में देखकर कीर्तिरानी का बुरा हाल है ……वो बस रोती रहती हैं……बृषभान जी दिन में चले जाते हैं बृजपति के पास नन्दगाँव वहाँ जानें से दिन का समय कट जाता है ……..
पर…..रात का समय ? बस , रात का समय ही तो नही कटता ।
बृषभान दुलारी को प्रेमोन्माद कब प्रकट हो जाए कुछ पता नही है ।
अकेले नही छोड़ा जा सकता …………क्यों की कल ही उफनती यमुना की प्रचण्ड धारा में “हे श्याम सुन्दर” कहते हुए कूद गयीं थीं ।
वो तो अच्छा हुआ कि ……..सखियाँ थीं और देख लीं …….।
हे चन्द्रमा ! तू बता ना मेरा “कृष्णचन्द्र” कहाँ गया ?
अरे ! मोर बता ना ! मेरा “मोरमुकुटधारी” कहाँ गया ?
अरे बाँस के वृक्ष ! तू ही बता दे “बाँसुरी वाला” कहाँ गया ?
फिर ऊपर आकाश की ओर दृष्टि जाती है श्रीराधा रानी की …….
आह ! विधाता ! तुझे तो धिक्कार है ……उन मथुरा की ललनाओं को खुश करके तुझे क्या मिला ? हम वृन्दावन के लोगों नें तेरा क्या बिगाड़ा था ?
यमुना के पुलिन में बैठीं थीं आज श्रीराधा रानी …….चारों ओर सावधान हो, सखियाँ बैठीं थीं……..यमुना के जल को छूते ही फिर उन्माद चढ़ गया था……और फिर श्रीराधा रानी ………….
क्या कह रही हो यमुनें ? थोडा जोर से कहो …………
यमुना भीतर ही जानें लगीं आज फिर ….सखियों नें पकड़ लिया …
नही ….नही लाडिली ! नही……….सखियों नें फिर बैठाया ।
अरे ! यमुना कुछ कहना चाह रही है………सुननें तो दो !
श्रीराधा का उन्माद फिर बढ़नें लगा था ।
क्रमशः …
शेष चरित्र कल –
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