!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 57 !!
बैठी रहूँ यमुना में आस लगाए…..
भाग 3
नन्दगाँव चलें ? नन्दभवन को निहार आवें …………….
श्रीराधारानी नें अपनी सखियों से कहा ।
सखियों नें सीधे “हाँ” नही कहा ………क्यों की क्या पता वहाँ जाकर फिर कुछ उन्माद प्रकट हो जाए श्रीराधा रानी को ।
पर प्रेम जिद्द का दूसरा नाम है………उफ़ ! प्रियतम की गली ।
जिद्द की कीर्ति की लाली नें….फिर तो सबको बात माननी ही पड़ी ।
नन्द गांव ………
एक गोपी ….नन्दगाँव की…..यमुना से घर में आयी…….पर तुरन्त ही रोती हुयी बाहर आगई….और बैठकर हिलकियों से रोनें लगी थी ।
क्यों रो रही हो सखी ? क्या हुआ ? श्रीराधा रानी उसके पास गयीं और बड़े प्रेम से उससे पूछा ………….उस गोपी नें जो उत्तर दिया …..अपनें रोनें का कारण बताया ………..उफ़ !
मैं आज गयी थी यमुना जल भरनें ।………कन्हाई के गए एक मास से भी ज्यादा हो गए …………पर उनके मथुरा जाते ही ….मैं बीमार पड़ गयी थी ………पता नही क्या हुआ था मुझे ……..मै बस उन्हें ही चारों ओर देखती रहती थी ………….
कल सपना देखा था ….सपनें में उन्हें देखा ।
गोपी श्रीराधा रानी को अपनी बात बता रही है ।
वो मुझे कह रहे थे ……”तू यमुना में आज कल क्यों नही आती …….पता है मैं तेरा इन्तजार करता हूँ”……….गोपी आँखों में आँसु भरकर भर्राई आवाज में कहनें लगी ……हे राधे ! मैं जब उठी तब स्वस्थ हो गयी थी ……सपनें में अपनें “प्राण धन” को जो देख लिया था ।
फिर ? श्रीराधा जी नें पूछा ।
मैं बड़ी ख़ुशी ख़ुशी यमुना तट गयी …………..
वहाँ जल भरा……….पर मुझ से मटकी उठाई नही गयी ……..
जब कन्हाई यहाँ था तब रोज मेरी मटकी उठा देता था ………….पर ।
मैं रोनें लगी …………मैं बैठी बैठी रोनें लगी …………….
साँझ हो गयी …………पर वो नही आया …………
जैसे तैसे मैने ही मटकी उठाई और रोते हुए चल पड़ी घर की ओर ।
बार बार मैं रुक जाती थी …………मेरे पैर ठहर जाते थे ………..
मुझे लगता था कि पीछे से मेरा कन्हाई आगया ……अब कंकड़ मारेगा और मटकी फोड़ेगा ……..जैसे अन्य दिनों में करता था ।
पर ……………..
न वो आया , न मटकी फूटी………..रोती हुयी बोली वो गोपी ।
पता नही क्यों ………….जब गोपाल वृन्दावन में था ना …….तब रोज मेरी एक मटकी फोड़ता ही था………पर मुझे आनन्द आता था ….मुझे अच्छा लगता था ……….घर में आकर जब मेरी सास मुझे डाँटती थी कभी कभी मारती भी थी……तब भी मुझे अच्छा लगता था ….
पर आज ? वो गोपी हिलकियों से रो पड़ी ………
हे श्रीजी ! आज……मेरी मटकी भी नही फूटी …..मेरी सास नें मुझे डाँटा भी नही ।
पर मुझे आज बहुत बुरा लग रहा है……..रोते हुए गले लग गयी थी श्रीजी के वह गोपी ।
ओह ! नन्दगाँव की ऐसी स्थिति ?
उस गोपी को सम्भालकर नन्दभवन की ओर जब श्रीराधा गयीं ।
कौन ? कौन आया ? दौड़कर द्वार पर आगयीं थीं बृजरानी यशोदा ।
ओह ! आजा राधा बेटी ! आजा ! अपनें हृदय से लगा लिया था यशोदा नें और महल में ले आयी थीं …………….
कोई नही आता अब इस महल में ………….रो गयीं यशोदा भी ।
पहले कितनी रौनक रहती थी ना ? गोपी गोप इन सबसे ये महल भरा रहता था …..पर अब कोई नही आता ……”कन्हाई है नही” ….कोई क्यों आएगा ? इतना कहते हुए हिलकियाँ फूट पड़ी थीं नन्दरानी की ।
हे वज्रनाभ ! मुझे डर लगनें लगा था कि इन गोप गोपियों के अश्रु सागर में ये वृन्दावन कहीं डूब न जाए ।
बृजरानी और श्रीराधिका दोनों रोते रहे और गले मिलते रहे थे ।
शेष चरित्र कल ….


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