!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 58 !!
विरागिनी, पागलिनी, वियोगिनी
भाग 1
अनन्यता से हम हैं बृजनाथ की ……
विरागिनी, पागलिनी, वियोगिनी ।
गर्व है ये कहते हुये श्रीराधिका को…..हाँ …..सिर्फ “बृजनाथ” की ।
“पागल ही हो गयी हूँ मैं तो” ……हँसते हुए आँसुओं को पोंछा बृजरानी यशोदा मैया नें ………..”मैं भी” ……….हँसीं, आँसुओं को रोक कर श्रीराधा रानी ।
मैं तो आज भी सुबह उठकर सीधे माखन निकालनें बैठ जाती हूँ ……..
तब ये रोहिणी आती हैं …..और मुझे कहती हैं …..किसके लिये माखन निकाल रही हो जीजी ! ओह ! मुझे याद आता है राधा ! कि मेरा लाला तो गया मथुरा…..तब मुझ से उठा भी नही जाता …..मेरे हाथ से मथानी छूट जाती है …रोनें के सिवाय मेरे पास कुछ नही है …..श्रीराधा रानी कुछ नही बोल रहीं बस मैया यशोदा को सुन रही हैं …..और नजर बचाकर इधर उधर देख भी लेती हैं …..कन्हाई की वस्तुएँ जब दीख जाती हैं श्रीराधा को ……उन्माद बढ़ना स्वाभाविक है ।
“सुबह ही उठकर, मेरे पास आकर सो जाता था”……..हँसी और आँसू यशोदा के साथ साथ चल रहे हैं ।
राधा ! छ वर्ष तक मेरे पास ही सोया ……पर सात वर्ष का जैसे ही हुआ …….कहनें लगा ….मैया ! अब मैं बड़ा हो गया हूँ ……..बाबा के साथ सोऊंगा ………उस दिन मुझे बहुत हँसी आयी …..कैसे बोला था ….मुँह फुलाकर …….बड़ा बनकर ………..आया बड़ा बननें वाला ।
जिद्दी था ……….बहुत जिद्दी था …………सात वर्ष के बाद तो वह बाबा के साथ ही सोता था …….पर सोता था बाबा के पास ….पर उठता था मेरे पास से ………श्रीराधा रानी और बृजरानी यशोदा खूब हँसें ……पर हँसी कितनी देर की ? फिर बरस पड़े अश्रुधार ।
मैं यमुना जाऊँगा……..बाबा गए नहानें यमुना जी ?
देर में उठता और मुझ से पूछता …….अब कन्हाई के बाबा तो सुबह 4 बजे ही चले जाते ……….फिर उसका जिद्दपना ………मुझे क्यों नही कहा …….तू ही मुझे नही जानें देती बाबा के साथ यमुना जी !
अरे ! रोहिणी ! आजाओ ! बैठो !
बलभद्र की माँ रोहिणी जी भी आकर सुननें लगीं थीं दोनों की बातें ।
बातें कहाँ से निकलती हैं और कहाँ जाती हैं ……….इसका पता उसे हो जो बुद्धिजीवी हों ………ये ? ये तो सबसे परे हैं ………वैसे भी प्रेम में बुद्धि बहुत पीछे छूट जाती है ……………..
“हाँ …..एक बात शूल की तरह गढ़ती है अभी भी मेरे हृदय में”
क्या ? श्रीराधा रानी नें पूछा ।
कि मैने उसे ऊखल से बांध दिया……..यशोदा मैया फिर रोनें लगीं …..धिक्कार है धिक्कार है मुझे…..अपनें सिर को पीटनें लगीं………
जीजी ! ऐसा मत करो……..रोहिणी नें आगे आकर सम्भाला बृजरानी को …………………
ओह ! माखन की तरह कोमल था मेरा लाला ……….और एक मटकी ?
अरे ! ऐसी मटकी हजारों न्यौछावर उसके ऊपर …………पर मैं कितनी दुष्टा हूँ ना ! मैने उस फूल को बांध दिया था ………..।
क्रमशः …
शेष चरित्र कल


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