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September 14, 2025 1:47 am

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!! राधा बाग में – “श्रीहित चौरासी” !!-( अनुपम रास रस – “आजु गोपाल रास रस खेलत” ) : Niru Ashra

!! राधा बाग में – “श्रीहित चौरासी” !!-( अनुपम रास रस – “आजु गोपाल रास रस खेलत” ) : Niru Ashra

!! राधा बाग में – “श्रीहित चौरासी” !!

( अनुपम रास रस – “आजु गोपाल रास रस खेलत” )

गतांक से आगे –

रस को पाना नही है ….रस की प्राप्ति नही करनी है …रस बनना है ….यही तो इस मार्ग की विशेषता है ……जैसे ज्ञानी कहते हैं …ब्रह्म का चिन्तन ब्रह्म बनने के लिए है …हम ब्रह्म हैं …ऐसे ही हम रसोपासना वाले कहते हैं ….रस का चिन्तन , रस का कथन ..रस पाने के लिए नही है ..रस बनने के लिए है …तभी तो हमारा वो भोग करेगा …हम उसके भोग योग्य बनें ….आहा ! ये बात आपके समझ में आरही है ? हमें रस बनकर उनके आगे प्रस्तुत हो जाना है …..और रस बनने की आकांक्षा उदित तब होती है जब आप उस रस के चिन्तन में अपने अहं को मिटाना प्रारम्भ कर दें ….उसका सतत स्मरण ….रस के सतत स्मरण से शरद का आविर्भाव होगा आपके हृदय में …शरद ऋतु , उस ऋतु का नाम है …जिसमें सब कुछ निर्मल होता है …स्वच्छ होता है ….कमल खिलते हैं …..सब कुछ सरस हो उठता है …..लता , वृक्ष , पृथ्वी , आकाश , वायु …सब कुछ रस पूर्ण हो जाता है …ये बाहरी नही ..आपका हृदय श्रीवृन्दावन बन जाता है ….सरस शरद के कारण ही फिर रस बनने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है …रस का अद्भुत रूप प्रकट होता है …गाढ़ प्रगाढ़ रस ही फिर रास बनकर थिरकने लगता है …वही रास सर्वत्र आमोद भरता है …वही आमोद जब चरम पर पहुँचता है तो बेसुधी ला देता है …वही बेसुधी इस रास का चरम चरितार्थ है । फिर चारों ओर रस ही रस …..रस के सिवा आपको कुछ नही मिलता । ऐसे में फिर रसराज उन्मत्त होकर नाच उठते हैं ….ये रस का आकार हैं ….रस तरंगायित होकर आकार ले लेता है …वो श्याम और दूसरा गौर ….उफ़ ! वो रास रस फिर शब्द का विषय नही रह जाता …..


साधकों ! आज का पद अद्भुत है …इसको पढ़िए नही …कृपा करके इसका गान कीजिये । आपको नही आता गाना ? कोई बात नही जैसा भी आता है गाइये ….भले ही “आज के विचार” मोबाइल में लेकर अकेले में चले जाइये ….और गाइये …मैं ये पागलपन आपको सिखा रहा हूँ इसलिये कि बिना पागलपन के इस रस मार्ग में आप बढ़ नही सकते ।


पागल बाबा आज भावोन्मत्त हैं ….गौरांगी ने सुबह से राधा बाग को सजाना शुरू किया है ….अशोक आम आदि के पल्लवों से पूरे बाग को सजाया है …..मध्य में सुन्दर रंगोली बनाई है ….जिसे मेरे बाबा साँझी देवि कहकर प्रणाम करते हैं । फूलों का अम्बार लग गया है ….बरसाने की सखियाँ सज धज कर आयी हैं ….गौरांगी ने ही सबको कह दिया था कि आज महारास है । राधा बाग में गुलाब के फूल वेला और कमल के फूल बहुत हैं । फूलों का बंगला यहाँ के मालियों ने आकर सजा दिया है ….जिसमें प्रिया प्रियतम की एक झाँकी का चित्रपट रखा गया है ….बड़े बड़े दो जल के फुब्बारे लगाये गए हैं …जो ठाकुर जी के सामने हैं उन में गुलाब जल को भर दिया है …..और जब वो फुब्बारे चले तो पूरा बाग गमगम कर गया ….सुगन्ध से रसपूर्ण वातावरण का निर्माण हो गया था ।

आज कलाकार भी अनेक आये हैं …बाँसुरी , सारंगी , शहनाई , पखावज सब हैं …ये सब रसिक बृजवासी हैं ….बाबा ने इन सबको माला पहनाई है ……आम वाली रबड़ी का भोग आज युगल सरकार को लगाया गया है ….बाबा आज बड़े ही प्रसन्न हैं । बरसाने की सखियों को बाबा चूनरी देते हैं और धरती में अपना मस्तक रखकर उन को प्रणाम करते हैं । अद्भुत रस छाने लगा है ..आज राधा बाग के भीतर जगह नही है ….एक सेठ जी ने विडियो लगाकर बाहर दिखाने की बात की …पर बाबा ने मना कर दिया ये सब बाबा को पसन्द नही है ।

अब सब तैयार हो गये हैं ……सखियाँ उठ गयीं हैं ..आज पदों में नृत्य होगा …..गौरांगी ने प्रारम्भ किया गायन …मैंने गौरांगी से कहा …तुम नाचो आज मैं गा लूँगा । वर्तुल घेरा बनाया सब सखियों ने …और गायन प्रारम्भ हुआ ……ये पद अद्भुत है …..श्रीहित चौरासी जी का चौबीसवाँ पद ….प्रेम से सब गायें ।


       आजु गोपाल   रास रस  खेलत ,    पुलिन  कलपतरु  तीर री सजनी ।

       शरद  विमल  नभ चंद  विराजत ,   रोचक  त्रिविध  समीर री सजनी ।।

            चंपक बकुल   मालती मुकुलित ,  मत्त मुदित पिक कीर री सजनी ।

            देसी  सुधंग  राग  रँग नीकौ,     बृज जुबतिनु की भीर री सजनी ।।

       मघवा मुदित  निसान बजायौ,    व्रत छाँड्यौ मुनि धीर री सजनी ।

      श्रीहित हरिवंश मगन मन श्यामा ,    हरति मदन घन पीर री सजनी । 24 ।

आजु गोपाल रास रस खेलत , पुलिन कलप तरु तीर री सजनी …………..

क्या नृत्य था , क्या रस रास था …सब रस ही बन गये थे ….रस प्रकट हो उठा था ….पीली पीली साड़ियों में सखियाँ जो नाच रही थीं …सबको लग रहा था …ये सामान्य नही ये निकुँज की ही सखियाँ हैं …..और गौरांगी मध्य में ……उसका सुधंग नृत्य अवर्णनीय था ।

अब बाबा ने ध्यान करवाया …….सभी ध्यान करें ।


                                              !! ध्यान !! 

शरद ऋतु …..जब श्याम सुन्दर के हृदय से श्यामा लगीं ….उसी समय शरद की बयार चल पड़ी …..रात्रि हो गयी …..नभ में चन्द्रमा पूर्ण खिल गये ….चम्पा की मादक सुगन्ध श्रीवन में फैलने लगी ….मोरछली जिसे बकुल बोलते हैं …उसके छोटे छोटे सफेद पुष्प की सुगन्ध चम्पा के साथ मिलकर अद्भुत गन्ध का निर्माण करने लगी । मालती की शोभा देखते ही बन रही थी …उसकी गन्ध ने सब को पराजित कर दिया था ….मानों आज इन पुष्पों में भी होड़ लग गयी थी कि हमारा गन्ध तुमसे ज़्यादा मादक है ….लताओं के पत्र चमकीले थे …उनमें चन्द्र की चाँदनी जब पड़ती थी तो और चमक उठते थे । मालती की तो शोभा तो और दिव्य थी …वो लिपट गयी थी तमाल से ….रात्रि में ही इसकी सुगन्ध फैलती है …..इसे भी अवसर मिल गया था …इस तरह पूरा श्रीवन सुगन्ध से भर गया था ।

तभी सामने एक दिव्य रास मण्डल प्रकट हो गया …ये मण्डल नाना मणि माणिक्य से बना था …खुला रास मण्डल था …..चन्द्र की चाँदनी से ये और चमक उठा था …इसकी चमक चारों ओर फैल रही थी …..आकाश तक जगमगा रहा था । अब समस्त पुष्पों के सुगन्ध का भार लेकर पवन ने श्रीवन में डोलना प्रारम्भ किया ……..

तभी ….श्याम सुन्दर श्वेत वस्त्र धारण किए उस रास मण्डल में कुंजों से निकल कर आगये …श्रीश्यामा जू ने भी आज श्वेत साड़ी पहनी है ….चारों ओर सखियों का झुण्ड आगया ….आज सबने श्वेत वस्त्र ही धारण किये हैं ……और और ………


हित सखी देख रही है…..इस दिव्य झाँकी को देखते हुये ये भी उन्माद से भर गयीं और बोल उठीं ।

अरी सजनी ! देख ! यमुना के किनारे हमारे रसिक वर गोपाल लाल कल्पवृक्ष के नीचे कैसे रास रस की क्रीड़ा कर रहे हैं …..अद्भुत रस रास है ये तो ! हित सखी आह्लादित होकर कह रही हैं ।

स्वच्छ आकाश में ….शरद का चन्द्र पूर्णता से खिला हुआ है ….और सुखद त्रिविध पवन भी बह रहा है …..अरी सजनी देख !

हित सखी प्रेम रस से सरावोर है …..देख ! चम्पा कैसे खिल रही है …बकुल की सुगन्ध श्रीवन को कैसे प्रमुदित कर रही है …मालती तो श्याम समझ कर तमाल से लिपट गयी है …ओह !

अरी सजनी ! युगल सरकार मध्य में नाच रहे हैं इनके चारों ओर सुन्दर सुन्दर नव युवती की जो भीर नाच रही है वो तो देख ! सब कुछ भूल कर नाच रही हैं …युगल को मध्य में रखकर नाच रही हैं ..बस नाच रही हैं …..उन्मत्त होकर नाच रही हैं …पूर्ण समर्पण के साथ नाच रही हैं । गा भी रही हैं …हित सखी कहती है ….गायन के साथ जो नृत्य कर रही हैं उससे रंग और बरस रहा है ।

हित सखी चमत्कृत हो उठती हैं ….रास तो पूर्व में भी हुये थे किन्तु ये रास तो राग और रंग की जो वर्षा कर रहा है वो अद्भुत है ….कुछ और नही कहा जा सकता ।

तभी हित सखी फिर अचंभित होकर कहती हैं …युगल सरकार स्वयं गान करने लगे …सजनी ! इनके गायन को सुनकर पूरा श्रीवन प्रेम से उन्मत्त हो गया है …पर पक्षी अभी अभी तक मौन थे ..क्यों की ये रास रस को देख रहे थे …पर गाते हुए अपने युगल को जब देखा तो इन्होंने भी अपना मौन व्रत तोड़ दिया …और युगल सरकार के साथ गाने लगे …आहा ! युगल के गायन करते ही सखियों ने भी वाद्य ले लिये और बजाने लगीं हैं ….अब तो पूरा श्रीवन झूम उठा है …वाद्य यन्त्रों की ध्वनि गूंज रही है …ऐसा लग रहा है ….मानों इन्द्र ने अपना निशान बजाया हो ।

तब श्याम सुन्दर ने अपनी प्राणप्रिया को हाथ जोड़कर कहा …आप नाचो मैं गाऊँगा …श्यामा ने नाचना आरम्भ किया …हित सखी कहतीं हैं ….अद्भुत रास हो गया ये तो ….बेचारा कामदेव प्रेम की पीर के कारण कराह रहा था …तब श्यामा ने नृत्य करते हुए जाकर अपने श्याम को प्रगाढ़ आलिंगन किया तो कामदेव की सारी पीड़ा दूर हो गयी …..पर रास चलता रहा …महारास उन्मत्त गति से बढ़ता रहा ….यमुना उछल रही थी ….आकाश सुमन बरसा रहा था ….और और ये रास अपनी उच्च स्थिति पर पहुँचने लगा था ….पर सजनी ! उसका वर्णन नही किया जा सकता ।


पागल बाबा बोलते भी जा रहे हैं …..और बैठे बैठे नृत्य कर रहे हैं ……..

तभी सारी बरसाने की सखियाँ उठ गयीं ….और ये पद फिर चल पड़ा ….फिर एक बार राधा बाग में नृत्य की उन्मद आँधी चल पड़ी थी ।

“आजु गोपाल रास रस खेलत , पुलिन कलप तरु तीर री सजनी”

जय जय श्रीराधे , जय जय श्रीराधे , जय जय श्रीराधे ।

आगे की चर्चा अब कल –

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Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877

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