अष्टसखा..
जय श्री कृष्ण जी।
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श्री गुसाईंजी श्रीविट्ठलनाथजी ने श्रीनाथजी की आठों भक्तियों में उनकी लीला-भावना के अनुसार समय और ऋतु के रागों द्वारा कीर्तन करने की व्यवस्था की थी। अपने चार और अपने पिता श्री के चार भक्त गायक शिष्यों की एक मंडली संगठित की थी। मंडली के आठों महानुभाव श्रीनाथ जी के परम भक्त होने के साथ अपने समय में पुष्टि-संप्रदाय के सर्वश्रेष्ट संगीतज्ञ, गायक और कवि भी थे। उनके निवार्चन से श्री गोस्वामी विट्ठलनाथजी ने उन पर मानों अपने आशीर्वाद की मौखिक ‘छाप’ लगाई थी, जिससे वे ‘अष्टछाप’ के नाम से प्रसिद्ध हुए। पुष्टि संप्रदाय की भावना के अनुसार वे श्रीनाथजी के आठ अंतरंग सखा है, जो उनकी समस्त लीलाओं में सदैव उनके साथ रहते हैं, अतः उन्हे अष्टसखा भी कहा गया है।
अष्टछाप अथवा अष्ट सखा की शुभ नामावली इस प्रकार है-
श्री वल्लभाचार्य जी के शिष्य..
१. कुंभनदास
२. सूरदास
३. कृष्णदास
४. परमानंददास
श्री गुसाईंजी विट्ठलनाथजी के शिष्य
५. गोविन्द स्वामी
६. छीत स्वामी
७. चतुर्भुजदास
८. नंददास
ये सभी कीर्तनकार प्रभु श्रीनाथजी की कीर्तन सेवा में अपने जीवन के अन्तिम समय तक रहे और अपना जन्म सफल किया। इन अष्टसख़ाओ के पद ही कीर्तन सेवामें गाये जाते हैं।


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