!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 59 !!
सखी ! बैरिन निंदिया भी गयी….
भाग 3
वो आया ………..बड़े प्रेम से उसनें मेरे पैर का काँटा निकाल दिया ….फिर मेरे साथ ही चलनें लगा बतियाते हुए ।
तुम तो मथुरा गए थे ना ? मैने पूछा ।
हाँ गया तो था……..मुस्कुराते हुए बोला वह ।
फिर कैसे आगये यहाँ ?
मुझे बहुत अच्छा लग रहा था उससे बातें करना ।
सखी ! तू नही है ना मथुरा में इसलिये आगया !
रो गयी सखी ये कहते हुये ……….कन्हाई नें मुझ से कहा ।
हट्ट ! झूठे ! मैने भी उसे कह दिया ।
तो कहनें लगा …….हाँ सच में ……..तू नही है ना ! मथुरा में ……..इसलिये मन नही लगता वहाँ ………….
मैं हँसी …………मैं झूठ क्यों कहूँ – मुझे अच्छा लगा …….मुझे बहुत अच्छा लगा ……….कहते हुए वो सखी फिर रो पड़ी ………..।
सखी ! नींद खुल गयी ……………..सोचनें लगी क्यों नींद खुली मेरी ………अभी और सोती तो शायद वो और मेरे पास ही रहते …..
पर ………………..
नही अब हम श्रीराधा से सपना सुनेंगें !
चन्द्रावली आयी आगे ……..नही हे राधा ! आज मना मत करना ……सुना दो ना अपना सपना !
सपना ! कैसा सपना ! और मैं .!…..हँसी श्रीराधा रानी ।
अब ज्यादा नाटक तो करो मत ……….हमको सुननी है और वो भी आज ही ……..हे राधा ! सब सुनना चाहती हैं ………..
तुमको सपनें तो आते होंगें ना ! फिर सुनाओ ना !
चन्द्रावली श्रीराधा रानी से उम्र में बड़ी हैं …..इसलिये श्रीराधा से जिद्द भी यही कर सकती हैं ……इनका सम्मान श्रीराधा भी करती हैं ।
मौन हो गए सब …….सबकी दृष्टि टिक गयी है श्रीराधा की ओर ।
गहबर वन भी मौन हो गया…..उसे भी सुनना है…..अपनी स्वामिनी का सपना…….पक्षी सब शान्त हो गए…..सखियाँ सुननें को उत्सुक हैं …..कि श्रीराधा रानी को कैसा सपना आता होगा ।
सखियों ! तुम भाग्यशाली हो कि…… कमसे कम सपनें में तो तुम “प्यारे” से मिल लेती हो……बतियालेती हो…….पर मैं ?
अब रो गयीं श्रीराधा रानी ………मुझ से पूछती हो कि मैं सपना सुनाऊँ ………अरे ! जब से श्याम सुन्दर मुझे छोड़कर चले गए …..तब से मेरी बैरन निंदिया भी चली गयी है ………मुझे नींद ही नही आती ……
अरी सखियों ! नींद आएगी तब न सपना देखूंगी ………और सपना देखूंगी तब तो तुम्हे सुनाऊँगी ना ! हाय ! मैं ऐसी अभागन हूँ ….जो सपनें में भी अपनें “प्राण धन” को देख नही पाती …….मुझ राधा से भाग्यशालीनी तो तुम लोग हो ……।
इतना कहकर श्रीराधा रानी हा कृष्ण ! हा प्राण ! हा गोविन्द ! यही कहते हुये मूर्छित होकर गिर गयीं थीं ।
शेष चरित्र कल …..


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