!! राधा बाग में – “श्रीहित चौरासी” !!
( पागल बाँसुरी – “मोहनी मदन गोपाल की बाँसुरी” )
गतांक से आगे –
उफ़ ये बाँसुरी ! बिल्कुल पागल है …स्वयं भी पागल है और समस्त को पागल बना देती है ।
रुकती नही है …न ठहरती है …चिपकी रहती है मोहन के अधरों से …पीती है अधरों का रस …इसलिए तो पगलाई रहती है …अधरों में एक नशा होता है ….जिसे रसिक लोग ही समझते हैं …..साधारण अधर भी मत्त करने के लिए पर्याप्त है तो विचार करो ये तो मोहन के अधर हैं….विश्व मोहन के अधर ! कितनी मत्तता होगी …..ये बाँसुरी इसी को पीती है इसका आहार ही यही है …तो पागल क्यों न हो ….अजी ! स्वयं पागल है तो है ….पर ये तो ठान के बैठी है की सम्पूर्ण सृष्टि को ही पागल बनाऊँगी …..गहरे जाओ प्रेम में ….वो बज रही है …निरन्तर बज रही है …तुम्हें सुनाई देगी …..फिर पगला जाओ । ये रस का मार्ग है बिना पागलपंती के तुम इस मार्ग में चल ही नही पाओगे ….ये अच्छे से समझ लो । रस सम्प्रदाय श्रीराधाबल्लभ , इसके प्रवर्तक श्रीहरिवंश गोसाईं जी …ये बाँसुरी के अवतार हैं ….क्या इन्होंने प्रस्थान त्रयी के ऊपर टीका लिखी ? एक ने कल पागल बाबा से पूछा …बोले – रस का मार्ग तुम्हारे प्रस्थान त्रयी को मानता ही नही है …जहां प्रस्थान त्रयी ख़त्म होता है ….वहाँ से ये मार्ग आरम्भ होता है ….अजी ! ये तो वो मार्ग है कि जनेऊ को तोड़ कर श्रीजी की घुँघरू में बाँध दिया ….उसे आप शास्त्र से तौलोगे ? पागल बाबा बोले ..देखो भाई ! दुनिया में दो मार्ग हैं ….एक बाँसुरी का और एक वेद का …वेद का मार्ग इस युग में कौन पालन कर रहा है मुझे बता दो ? बाबा पूछ बैठे । तुम अर्ध मुंडन किए हो ….यानी अपने केशों को छटवाते हो ….है ना ? ये निषेध है …शास्त्र में निषेध है …..तुम को पता है ? बाबा बोले – इसलिए भैया ! ये सम्भव ही नही है इस युग में मानों । और बातें तो जाने ही दो …तुमने यही पालन नही किया …अर्ध मुण्डन है तुम्हारा । बाबा हंसे । इसलिये बाँसुरी ने अवतार लिया …और रस सम्प्रदाय ….ये सम्प्रदाय भी नही है …ये रस मार्ग है …रस का राज मार्ग है । कुछ नही करना …बस रस को पीना है ….और पड़े रहना है कुंजों में ….श्याम राधिका , राधिका श्याम , यही गाना है ….ये बाँसुरी का मार्ग है ….रस मार्ग है …तुम्हें स्वयं प्रिया जू आकर ले जायेंगी । तुम तो गाओ , तुम तो सुनो बाँसुरी को , श्रीराधा सुधा निधि जो इन्हीं बाँसुरी के अवतार श्रीहित हरिवंश जू ने गाया है ….तुम तो सुनो …नीरव रात्रि में ….श्रीहित चौरासी ….गाओ । इसी से काम बन जाएगा । सच में ये रस मार्ग है इसलिये इसके आचार्य बाँसुरी ही हो सकते हैं …और हैं ।
राधा बाग में बाँसुरी बज उठी ….बाबा को बाँसुरी बहुत प्रिय है ….दो बालक आए थे आज कहाँ से आये ये पता नही …पूछने का अवसर भी नही मिला …आये और प्रणाम करके बाँसुरी बजाने लगे …दोनों एक साथ …..और “राग देश” में बाँसुरी । सुन्दर थे दोनों गौर वर्ण के ….घुंघराले केश थे दोनों के ….बाँसुरी सुनते ही बाबा मुग्ध हो गये ….ये प्राणों से बजने वाला वाद्य है ….बजाने वाले को अपने प्राण फूँकने पड़ते हैं इसमें । अद्भुत अनुपम बाँसुरी बज रही थी …करीब एक घंटे बजाते रहे ….लोग आरहे थे और बैठ रहे थे ….पूरा राधा बाग बाँसुरी के सुर में डूब गया था …और हाँ …चार मोर नृत्य कर रहे थे …..ये झाँकी और अद्भुत लग रही थी ।
मैंने धीरे से गौरांगी को कहा – तुम इसी राग देश में आज का पद गाओ ….बड़ा आनंद आएगा …क्यों ये राग अब गाढ़ हो गया है …कलाकार इसमें डूब चुके हैं । मेरी बात मान कर गौरांगी ने आज छब्बीसवे पद का गायन किया …..बाबा का और समस्त रसिकों का आनन्द इससे और बढ़ गया था …..सब लोग जय हो , जय हो …बोल उठे थे ।
मोहनी मदन गोपाल की बाँसुरी ।
माधुरी श्रवन पुट सुनत राधिके , करत रतिराज के ताप कौ नासु री ।।
शरद राका रजनि विपिन वृंदा सजनी , अनिल अति मन्द शीतल सहित बासु री ।
परम पावन पुलिन भृंग सेवत नलिन, कलप तरु तीर बलवीर कृत रासु री ।।
सकल मंडल भलीं तुम जु हरि सौं मिलीं, बनी वर बनित उपमा कहौं कासु री ।
तुम जु कंचन तनी लाल मरकत मनी , उभय कल हंस हरिवंश बलि दासु री । 26 ।
मोहनी मदन गोपाल की बाँसुरी ………..
पागल बाबा को आज अतिआनन्द आया पद के गायन में …..वो बैठे बैठे झूम रहे थे …ये पद भी बाँसुरी का था …और बज भी बाँसुरी ही रही थी ….रसिकों को ऐसा अनुभव हो रहा था की यहीं कहीं मदन गोपाल ने बाँसुरी बजाई है । कुछ समय बाद बाबा ने ध्यान करवाया …पर ध्यान में भी बाँसुरी की धुन चलती रही थी ….इससे ध्यान और गहरा चला गया था ।
!! ध्यान !!
निकुँज में दोनों मिल रहे हैं …..वो निभृत निकुँज मणि कांचन से खचित है ….लताओं से आच्छादित है …तमाल मोरछली कनक बेलि मालती ये सब घने हैं ….मध्य में चौकोर एक जल कुम्भ है …उसमें कमल खिले हैं …..कमल बहुत हैं ….नील कमल , पीत कमल , कमल , श्वेत कमल ….उसमें से सुगन्ध निकल रही है ……जिसके कारण भँवरों का झुंड वहाँ आगया है …और वो रस लम्पट भँवर उस कमल के रस को मत्त होकर पी रहे हैं …..प्रिया अपने प्रियतम से आलिंगन बद्ध थीं …..पर गुनगुनाहट भँवरों की ज़्यादा हुई तो उसका ध्यान कमल और उस पर मँडराते भँवरों पर गया …..आहा ! भँवर श्याम सुन्दर हैं ….जैसे ये नलिनी का रस उन्मत्त होकर पी रहे हैं …ऐसे ही मेरे प्यारे हैं …..बस फिर क्या था …कमल पर ध्यान स्थिर हो गया प्रिया का ..भँवरों में श्याम का दर्शन होने लगा …वो सब भूल गयीं । श्याम सुन्दर ने बड़ा प्रयास किया ..कि प्यारी मेरी और देखें …..पर कुछ नही हो सका …..जैसे योगी का ध्यान आत्म तत्व में स्थिर होता है ऐसे ही श्रीराधिका का कमल में मँडराते भँवरों में हो गया था । श्याम सुन्दर कुँज से बाहर आगये …..वो दुखी हैं ….उदास हैं …क्यों की प्रिया का ध्यान उनकी ओर नही है ।
यमुना बह रही हैं ….वहीं बैठ गए …अपने चरण यमुना में रख दिये और अनमने से चरणों को हिलाने लगे …..फिर कुछ सोचा और फेंट से अपनी प्यारी बाँसुरी को निकाला ….अधरों में रखा ….और रखकर अपने प्राण उसमें फूंक दिये । सखियों ने सोचा ये क्या ! मिलन की इस घड़ी में लालन बाँसुरी बजा रहे हैं ….वो सब आयीं ….तो देखा यमुना के तट पर बैठे हैं श्याम और अपने चरणों को यमुना में रख कर बाँसुरी बजा रहे हैं …उनकी पीताम्बर यमुना में आधी गिरी हुई है …रात्रि की वेला है …..चन्द्रमा पूर्ण है …चन्द्रमा की चाँदनी यमुना में पड़ रही है …उसके कारण श्याम सुन्दर और प्रकाशित हो रहे हैं । किन्तु प्रिया कहाँ हैं ? सखियों ने देखा निकट नही हैं ….तभी हित सखी भीतर निकुँज में गयी ….तो वहाँ की स्थिति और विलक्षण है ….कमल के पराग को पीते उन्मत्त होते भँवरों को देखकर प्रिया सब कुछ भूल गयी हैं …..बाहर बाँसुरी बजाते जा रहे हैं श्याम सुन्दर …..तभी हित सखी प्रिया जू को बड़े प्यार से कहती है …….
हे प्यारी राधिके ! सुनो , मदन गोपाल की मधुर बाँसुरी ।
तुम्हारे प्रति पूर्ण समर्पित रहने वाले ये गोपाल हैं ….वो आज रस को फैला रहे हैं ….क्यों की ये जो बाँसुरी है ये समस्त को अनन्त माधुर्य से भर देती है ….और हृदय में काम का ताप हो तो उसे भी ये तत्काल नष्ट करती है ……कामदेव का नाम मदन है क्यों की वो सबके मन को मथ देता है …पर ये बाँसुरी तो उस मदन के भी मन को मथ देती है ….सुनो , प्यारी जू ! सुनो ।
आप कहाँ बैठी हो …..चलो बाहर , शीतल मन्द वायु बह रहा है ….शरद की रात्रि में श्रीवन की शोभा कितनी सुन्दर लग रही है ….सखी अपनी स्वामिनी को कहती है ….यमुना बह रही है …वो यमुना भी मत्त और मन्द गति से बह रही है …जिसे देखकर आपके मन में रास की इच्छा फिर जाग जाएगी ….प्यारी जू ! चलो । इस पर भी प्रिया का ध्यान आकर्षित नही हुआ …तो सखी ने देखा श्रीराधा का ध्यान कमल पराग पी रहे मत्त भँवरों पर है तो तुरन्त सखी बोल उठी …बाहर भी एक भँवर है …और वो कमल की प्रतीक्षा में है ….वो भँवर नलिनी के रस को पीना चाहता है …..ये सुनते ही श्रीराधा उठकर खड़ी हो गयीं …..और कहाँ हैं मेरे श्याम भँवर ? ये कहते हुए वो बाहर दौड़ीं ….सामने बाँसुरी को अधरों से लगाये बैठे थे श्याम सुन्दर …प्रिया जू दौड़ी हुई गयीं और अपने श्याम सुन्दर को हृदय से लगा लिया …लगाते समय उन्मत्त इतनी थीं कि दोनों ही यमुना में चले गए …आहा ! यमुना में खड़े दोनों अब रस पीकर उन्मत्त हो रहे हैं …बाँसुरी प्रसन्न हो गयी ये यही तो चाहती थी …..अब तो सखियों ने देखा …दोनों चाँदनी रात्रि में यमुना में विहार कर रहे हैं …ऐसा लग रहा है …हंस हंसिनी का विहार चल रहा है । सखियाँ इस झाँकी को देखकर सर्वस्व न्यौछावर करती हैं । बाँसुरी ने सम्पूर्ण श्रीवन को पागल कर दिया था ।
बाबा बोले …पागल बाँसुरी ! जो अभी भी बज रही थी ।
गौरांगी ने फिर इसी पद का गायन किया ।
मोहन मदन गोपाल की बाँसुरी ……
आगे की चर्चा अब कल –


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