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September 13, 2025 10:19 pm

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! “श्रीराधाचरितामृतम्” 61 !!-“श्रीराधारानी का स्वयं से सम्वाद” – प्रेम की विचित्र स्थिति भाग 3 : Niru Ashra

! “श्रीराधाचरितामृतम्” 61 !!-“श्रीराधारानी का स्वयं से सम्वाद” – प्रेम की विचित्र स्थिति भाग 3 : Niru Ashra

!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 61 !!

“श्रीराधारानी का स्वयं से सम्वाद” – प्रेम की विचित्र स्थिति
भाग 3

अपनें इसी असीम प्रेम के कारण वो पराधीन हो जाते थे ………..मेरी एक स्मित हास्य के लिये वे क्या नही करते थे !

पराधीन ……..मेरे पराधीन हो गए थे ………वे ।

हँसी गूँजती है फिर कुञ्जों में श्रीराधा रानी की …………..

कितनी अद्भुत बात – स्वयं ही प्रेम प्रदान करते हैं …..और फिर स्वयं ही उस प्रेमके पराधीन हो जाते हैं ………….

पर मैने उन्हें बहुत दुःख दिया ……………प्रेम का अभिप्राय प्रेमी को दुःख देना नही होता …………..प्रेम तो सुख देकर प्रसन्न होता है ।

ओह ! आषाढ़ बीत रहा था , सावन का महीना आरहा था ……मैने ही उनसे कहा ……झूला डालना अमुआ की डाल में ………..फिर तुम और हम दोनों मिलकर झूला झुलेंगें ……………..

मेरी बात उन्होंने टाली कब थी जो इस बार टाल देते ।

तभी आकाश से उड़ते हुये दो पक्षी यमुना में गिर गए …………मैं बहुत दुःखी हो गयी ……………..तब मेरे पाँव पकड़कर हा हा खाते हुये क्या नही किया था कृष्ण नें………………….

मैने कहा …….काली नाग के कारण हमारे पक्षी मर रहे हैं यमुना में ….

मुझे झूला झुलाना चाहते हो तो जाओ ! कालिय नाग को नथ कर लाओ …….हे कृष्ण ! कालिय नाग की रस्सी से झूला बनाया गया हो उसी में …..मैं झूलूंगी …………..।

कितना कष्ट दिया मैने …………………पर मेरी बात मानते हुये वे गए …..कालिय नाग को नाथकर ले आये …………….और उसी नाग की रस्सी बनाकर हम झूले में झूले थे ।

पर ये प्रेम नही है ……….प्रेम अपनी बात नही मनवाता ……….वो तो प्रेमी की इच्छा में ही अपनी इच्छा समझता है …………

मैने प्रेम को कलंकित किया है ……..मैं कलंकिनी हूँ ………….

एकाएक रक्त मुख मण्डल हो गया था श्रीराधा रानी का ।

तुझे जीनें का अधिकार नही है ……..राधा ! तू मर क्यों नही जाती !

स्वयं को ये कहते हुए श्रीराधा रानी यमुना की ओर दौड़ीं ।

लाडिली ! नही ! पीछे से ललिता सखी नें पकड़ लिया ।

मुझे छोड़ दे ……मुझ मरनें दे ……ललिता ! मैने अपनें प्राणधन को बहुत दुःख दिया है ……..मुझे छोड़ दे ……छोड़ दे !

श्रीदामा भैया कुछ कह रहे थे…..उनको उनके सखा नें कहा होगा ना !

मैं तो कुछ पूछ भी नही पाती अपनें श्रीदामा भैया से ………

क्या कह रहे थे भैया ? क्या कहा उनसे मेरे प्रियतम नें ।

श्रीदामा ! मुझे बस एक बात का दुःख होता है ………कि मेरे कारण वृन्दावन में कोई मृत्यु का ग्रास न बन जाए …………..अगर ऐसा हुआ ना …..तो ये कृष्ण अपनें आपको कभी क्षमा नही कर पायेगा ।

ललिता के मुख से ये सुनकर ……………….

ओह ! क्या ऐसा कहा था मेरे प्राणनाथ नें ?

हम मर जायेंगी तो उन्हें कष्ट होगा ? हाँ ….कुछेक वर्षों में वो आये यहाँ और हम अगर मर गयी हों तो …….कितना कष्ट होगा उन्हें ।

नही नही ……….हम मरेंगीं नही ………हम हँसती रहेंगीं ……..ताकि उन्हें हमारा हँसता चेहरा दीखे ……….उन्हें अच्छा लगेगा …………

मैं अब रोऊँगी भी नही …….आज के बाद मैं हँसती रहूँगी ……..क्यों की क्या पता कब आजायें कृष्ण यहाँ ! और हमें रोती हुयी देखें तो , उन्हें कष्ट होगा ना ! ………….राधा हँसेगी ……..तू भी हँस ललिता ! सब हँसो ……….क्यों की उसे अच्छा लगेगा ……………

ललिता नें दूसरी ओर मुँह फेर लिया ……….क्यों की उसके नेत्रों से सावन भादौं शुरू हो गए थे ……………….

उफ़ !

शेष चरित्र कल ….

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Author: admin

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