!! राधा बाग में – “श्रीहित चौरासी” !!
( वन विहार – “आजु वन क्रीडत श्यामा श्याम”)
आज छोड़िये भूमिका ….भोर से ही मन युगल की झाँकी के चिन्तन में रमा है इसलिये मुझ से और कुछ लिखा भी नही जायेगा ….पागल बाबा ने डूब कर आज ध्यान कराया है ….झाँकी भी वन विहार की है । वो युगल छवि , जब वन विहार में चलती है ….तब जो झाँकी प्रकट होती है …उसका वर्णन असम्भव ही है ….पर मन को लगाया जाय ….मन भावना में ही जीता है तो उसे ये काम क्यों न दें ? मन रमेगा , रम रहा है …क्यों की ये जो रूप सौन्दर्य है ये नवीन है ..और नित नवीन है …..फिर रस से भरी जोरी है …..मन रस ही चाहता है …..रस का लोभी है ये मन …जहां नीरसता आई कि ये वहाँ से भाग जाता है ….पर यहाँ से नही भागेगा ।
इसलिये चलिये – सखी भाव भावित होईए ….और ले चलिए इस मन को निकुँज में ।
श्रीराधामाधव का प्रेम माधुर्य ही सखियों के प्रेम का आलम्बन है ।
सखियों का प्रेम भाव मधुर भाव में रमा हुआ है ….क्यों की मधुर भाव ही युगल का स्वरूप है ।
इसीलिये एक मात्र सखी भाव से ही इनका आस्वादन हो सकता है ,किंचित भी पुं भाव आपको निकुँज में प्रवेश करने नही देगा ,पुरुष भाव अहं का द्योतक है ,पर मधुर भाव में तो पूर्ण समर्पण है । मैं भी फिर भूमिका में अटक गया । चलिये निकुँज में । आज बड़ा ही आनन्द है वहाँ …क्यों कि आज युगल सरकार वन विहार करने निकले हैं । आहा ।
पागल बाबा आह्लादित हैं …..वन विहार की झाँकी तैयार की गयी है राधा बाग में .. ….पुष्पों से सजाया गया है चारों ओर । सब प्रमुदित हैं । समय से पूर्व ही रसिक जन आगये हैं ….और श्रीराधा नाम का जाप कर रहे हैं …..कलाकार भी आगये हैं …..आज तो वाद्यों की भरमार है ….गूंज उठा है राधा बाग ….बाबा आनंदित हैं ….जो भी बाबा के आगे दक्षिणा चढ़ाता है बाबा उसे तुरन्त कलाकारों को दे देते हैं …..सबने वाणी जी खोल ली है ….आज श्रीहित चौरासी जी का बत्तीसवें पद का गायन होगा । ये वन विहार की अद्भुत झाँकी प्रस्तुत करता है ।
वीणा सम्भाली है गौरांगी ने …..और अपने सुमधुर कण्ठ से गान करना आरम्भ कर दिया है ।
आजु वन क्रीड़त श्यामा श्याम ।
सुभग बनी निशि शरद चाँदनी , रुचिर कुँज अभिराम ।।
खंडन अधर करत परिरम्भन , ऐंचत जघन दुकूल ।
उर नख पात तिरीछी चितवनि , दंपति रस समतूल ।।
वे भुज पीन पयोधर परसत , वाम दृशा पिय हार ।
वसननि पीक अलक आकरषत , समर श्रमित सत मार ।।
पल पल प्रबल चौंप रस लंपट , अति सुंदर सुकुमार ।
श्रीहित हरिवंश आजु तृण टूटत , हौं बलि विशद बिहार । 32 ।
आजु वन क्रीड़त श्यामा श्याम ……….
पागलबाबा भी अति उत्साहित होकर पद गायन के पश्चात् सीधे ध्यान की गहराई में हमें ले जाते हैं …..वो रस निधि श्रीवृन्दावन की गैल है …जहां श्यामा श्याम आज विचर रहे हैं ।
!! ध्यान !!
श्यामा श्याम चले जा रहे हैं …..सुन्दर पुष्पों से भरी गैल है ….दोनों ओर लताएँ हैं ….जिसमें पुष्प लगे हैं ….एक वन उसी गैल से दूसरी गैल में प्रकट हो जाता है …..ये अभी प्रकट हुआ है । उस वन को देखकर युगल रुक जाते हैं ….ये वन अनन्त माधुर्य पूरित है …इस वन में लताओं की भरमार है …..नये नये पुष्प अभी खिले ही हैं …और जो नही खिले वो युगल को देखकर खिल रहे हैं ।
उस वन के मध्य में सरोवर भी है …..उस सरोवर में कमल खिले हैं …कमल की भरमार है ….सरोवर में जो सीढ़ियाँ है वो मणियों से बनी हुई हैं ……मणि खचित सीढ़ियाँ हैं …जिसकी शोभा अनन्त है …वहीं युगल बैठ गये ….युगल के बैठते ही सरोवर का जल ऊपर तक आगया …और जल ने युगल के चरण का स्पर्श किया । मुस्कुराते हुए युगल सरकार ने अपने चरण सरोवर के जल में रख दिये ……सामने मोर नृत्य कर रहे हैं …..पक्षी बोल रहे हैं …..पुष्पों की सुगन्ध से वन महक रहा है …पुष्पों की सुगन्ध और ऊपर से युगल के श्रीअंगों की सुगन्ध ! वन तो और उल्लसित हो उठा है । तभी काल बदल गया …..रात्रि हो गयी और चन्द्रमा पूर्ण खिल गये ….यहाँ काल भी सखियाँ ही हैं …क्यों कि मायिक काल की यहाँ गति नही है । युगल को सुरत सुख में भिगोने के लिए आवश्यक था कि सुखद रात्रि ही वन में छा जाये …और प्रकाश के लिए पूर्ण चन्द्रमा । उसकी चाँदनी फैल गयी कुंजों में …चन्द्र की चाँदनी में कुँज और जगमगा गया था । लता के पत्र चमक रहे थे ….श्याम सुन्दर वन की शोभा देखकर मुसकुराये …श्यामा जू से बोले …देखो ना ! आज ये श्रीवन कितना सुन्दर लग रहा है । प्रिया जू अपने चरण जल में हिला रही हैं ….उन्हें बड़ा सुख मिल रहा है …फिर वो वन की ओर देखती हैं ….तो उत्साह से भर जाती हैं …और उठ जाती हैं ….श्याम सुन्दर को गलवैयाँ देती हुयी कहती हैं …प्यारे ! चलो ! वन विहार करें ! श्याम सुन्दर अति प्रसन्न होकर चल देते हैं …..वन अब अपना वैभव दिखाने लग जाता है …..कुँज बननें लगते हैं ….मानों ये सब कुँज युगल को अपने यहाँ बुला रहे हैं …आगे आगे मोर चल रहे हैं …पीछे मत्त-मन्द गति से युगल चल रहे हैं ….कोई श्वेत पुष्पों से लदी लताओं से निर्मित कुँज है …जिसमें नीले पुष्प भी खिले हैं …मध्य मध्य में । कोई पीत पुष्पों का कुँज है …जिसमें मध्य मध्य में श्याम वरण के पुष्प हैं …..कोई तो गुलाब का कुँज है ….रसीले-रसिक दोनों वन की शोभा देखते हुए आगे बढ़ रहे हैं ।
एक कुँज है ….जो अत्यन्त सुन्दर है ….क्यों कि ये कमल दल से निर्मित है ….इसको देखकर प्यारी जू रुक जाती हैं …कमल दल की पच्चिकारी उसकी देखते ही बन रही थी । “अभिराम कुँज”……बड़े बड़े शब्दों में कमल पुष्प से ही लिखे हुये थे । उस कुँज का सौन्दर्य प्रिया को मोहित कर गया था …इसलिये श्याम सुन्दर ने कहा …चलिये इसके भीतर ।
श्याम सुन्दर और प्रिया जू दोनों उस कुँज में गये …कमल दलों से ही निर्मित एक सेज है ….श्याम सुन्दर ने प्रिया जू का हाथ पकड़ा और उस सेज पर बिठा दिया ….तो प्रिया ने भी सेज पर बैठते हुए अपने प्रीतम को कहा …बैठो आप भी । श्याम सुन्दर भी बैठ गए ।
तभी सखियाँ प्रकट हो गयीं ….
( ये बाबा के कहते ही पूरा राधा बाग हर्ष से उल्लसित हो उठा था )
और अब सखियों की प्रमुख हित सखी कहती हैं –
सखी ! आज तो वन विहार कर रहे हैं हमारे श्यामा श्याम ।
हित सखी मुग्ध है …सारी सखियाँ मुग्ध हैं …….वो सब देख रही हैं ।
ये रसराज हैं , रसिकवर हैं , रससागर और रसमय रसरसिया हैं । आहा ! सखी ! ये रसिक बिहारी ! आज शरद की पूर्णिमा में रस खेल मचा रहे हैं ……देख सखी देख !
सब देखने लगती हैं ….कोई कुछ नही बोलता …क्या बोलें ….इस रस को पीने के बाद बोलना बड़ा ही कठिन कार्य है । नयनों से पी लिया है ।
कुछ देर बाद हित सखी बड़ी मुश्किल से बोलना प्रारम्भ करती है ……..
ये तो युगल रस पी रहे हैं ….हाँ , तो रस पीना और पिलाना यही तो इन्हें आता है ।
ये रस योगी हैं या रसातीत हैं …क्या कहूँ ? देख प्रिया जू के अधर रस का पान करने लगे हैं अब ये । ये रस प्रेमी हैं रस नेमी हैं …रस ही बरसाते हैं ….रस छलकाते हैं ….रस मदमाते रसिक सजन ! उफ़ ! हित सखी आह भरती है । अब आलिंगन कर रहे हैं ….एक दूसरे में खो रहे हैं …रस विभोर हो रहे हैं ….रस में सराबोर हो रहे हैं । रस उलीच रहे हैं ….सखी ! मध्य मध्य में प्रिया के वक्ष को छू रहे हैं ….इससे इनके “रस के विपुल प्यास के प्यासे” …ये लक्षण स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं ।
तभी कुँज में श्याम सुन्दर ने रति केलि मचा दी ….माला स्पर्श के बहाने से प्रिया जू के नर्म अंगों को छू लिया …कभी प्रिया के मुख चन्द्र पर आते लटों को हटाते ..कभी प्रगाढ़ आलिंगन में भर लेते और स्कन्ध को चूम लेते …जिससे उनके मुख के पान की पीक प्रिया के वस्त्रों में भी लग गयी है ।
हित सखी आनन्द में मत्त है आज ….श्याम सुन्दर अपनी प्रिया के साथ रति रंग बढ़ा रहे हैं ….पर बीच बीच में प्रिया जब बंक भृकुटी करती हैं तब श्याम सुन्दर थोड़े डर जाते हैं …पर ये भी सुरत केलि की एक भंगिमा है ….ये जब श्याम सुन्दर समझते हैं तब वो और उत्साहित होकर अपनी प्रिया को रस विलास में डुबो देते हैं …पर ये क्या डुबोयेंगे , रति केलि तो हमारी प्रिया जू अब मचा रही हैं । रस लम्पट ये दोनों रस के खिलौनें हैं ……रस ही रस से बनें हैं ।
आहा ! आज की इस क्रीड़ा पर तो श्रीवन ही तृण तोड़कर वार रहा है ।
हित सखी कहती है ….मैं बलिहार हूँ ….मेरा पूरा परिकर बलिहार जा रहा है आज की इस वन विहार झाँकी पर ।
इतना कहकर हित सखी अपने आपको न्यौंछावर कर देती है ….और साष्टांग प्रणाम करती है ।
जय जय श्रीराधे , जय जय श्रीराधे , जय जय श्रीराधे ,
सारी सखियाँ बोल उठती हैं ।
रसमय कुँज , निकुंजों के रस , निभृत कुँज रसतत्व मनन ।
रसातीत रस वातायन से , झाँक मिटाते विरह तपन ।
रास रसायन पल छिन पीते , रीते के रीते तन मन ।
रस की विपुल व्यास में फैले, रस ही रस में रहे मगन ।।
पागल बाबा रस में उन्मत्त हैं ……वो अब कुछ नही बोलते ।
गौरांगी ने फिर इसी पद गायन किया है ।
“आजु बन क्रीड़त श्यामा श्याम”
आगे की अब चर्चा कल –


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