!! राधा बाग में – “श्रीहित चौरासी” !!
( रस की प्रकृति लीलामय है – “आजु वन नीकौ रास बनायौ” )
गतांक से आगे –
रस , बिना लीला के रह नही सकता , रस को क्षण क्षण में लीला रचनी है …ये इसकी प्रकृति ही है ……एक रहस्य की बात आज राधा बाग में पागलबाबा ने बतायी …..हम रसोपासकों के उपास्य , लाल ललना नही हैं , न सखी हैं ना श्रीवृन्दावन है …हमारे उपास्य तो इन सबसे प्रकट जो रसमयी नित्य लीला है …वही हमारे उपास्य हैं । हाँ , लाल ,ललना , सखी और श्रीवृन्दावन के बिना नित्य लीला सम्भव नही हैं …इसलिये ये हमारे लिये आवश्यक हैं …किन्तु हमारी उपासना का जो लक्ष्य है वो है नित्य लीला – नित्य विहार का नित्य दर्शन और जहां ये रस तत्व चार रूपों से प्रकट होंगे वहाँ तो लीला प्रकट होनी ही होनी है ….क्यों ? बाबा उत्तर देते हैं …रस का स्वभाव है वो बिना लीला के रह ही नही सकता। हमें नित्य विहार चाहिए , हमें नित्य रास चाहिये …नव नवायमान रास , रसलीला ही श्रीवृन्दावन में रास कहलाती है ।
इस रस भूमि श्रीधाम के रसिक जन नित्य यही माँगते रहते हैं ..कि हमें मात्र रस की कामना है …हमारा ध्येय रस है …नही हमें श्रीकृष्ण नही चाहियें, हमें रस चाहिये …जिस श्रीकृष्ण में रस नही वो द्वारिकाधीश हमारे किसी काम के नहीं ….अरे “नित्य रसलीला”तो बृज में भी प्रकट नही हुई …वहाँ भी मध्य मध्य में बकासुर और अघासुर आते जाते रहे ….रस भंग हुआ …हमें वो श्रीकृष्ण भी नही चाहियें। हमें तो वो श्रीकृष्ण चाहियें…जो स्वयं रस होने के बाद भी रस का प्यासा है …और अनादि काल से प्यास उसकी बनी ही हुई है …रस उसे मिल नही रहा ..ऐसा नही है …वो रस निरन्तर रस का पान करता रहता है …पर प्यास उसकी पूरी होती नही …वो रस , रसमय होने के लिए नित्य रस को प्राप्त करता रहता है …यही तो पूर्णकाम ब्रह्म की कामना है …..यही निकुँज का रस है । वह रस ,रस को पाकर आनंदित होता है …फिर फिर रस को पाने के लिए लीला रचता है …फिर रस को भोगता है । अद्भुत है ये सब ।
राधा बाग में आज “राग सारंग” बजाया गया है ….ये राग बड़ा ही प्राचीन है …..मन्द मन्द सारंग में सारंगी बज रही है …और बाबा सब भूले बस रस की चर्चा में मगन हैं ।
बाबा कहते हैं – वो रस राज रसिक , रस में रस को पीते हैं ….आहा !
उनकी बात रस की , उनकी घात रस की ….रस से रस की दृष्टि को निहार रहे हैं ..रस से रस की सृष्टि कर रहे हैं । वहाँ रस की रीति है , वहाँ रस से ही प्रीति है , रस का प्रसंग है और रस का उमंग है । चारों ओर रस ही रस है ….रस ही श्रीकृष्ण हैं और रस ही श्रीराधा हैं ..रस ही सखियाँ और रस ही श्रीधामा हैं…अजी ! रस की लीला है …हमें वही चाहिये …नित नवीन लीला , हमारा उपास्य वही है …हमारी साधना का लक्ष्य वही है ….रस लीला …जो नित्य निकुँज में चल रही है ।
बाबा को पता नही क्या हो गया ..बाबा रस मत्त हो गये ..रस में भींगे और रस में उन्मत हो गये ।
रस का स्वभाव है ….वो नयी नयी लीला रचता है ।
सारंग राग में ही बाबा ने आज का पद गाने के लिए कहा …..गौरांगी ने वीणा बजाई और मधुर स्वर में गायन आरम्भ कर दिया । श्रीहित चौरासी जी का छत्तीसवाँ पद था आज का ।
आजु वन नीकौ रास बनायौ ।
पुलिन पवित्र सुभग यमुना तट , मोहन वेणु बजायौ ।।
कल कंकन किंकिनि नूपुर ध्वनि , सुनि खग मृग सचु पायौ ।
जुवतिन मंडल मध्य श्याम घन , सारंग राग जमायौ ।।
ताल मृदंग उपंग मुरज डफ , मिलि रस सिन्धु बढ़ायौ ।
विविध विशद वृषभान नंदिनी , अंग सुधंग दिखायौ ।।
अभिनय निपुन लटकि लट लोचन , भृकुटी अनंग नचायौ ।
ताताथेई ताथेई धरति नौतन गति , पति बृजराज रिझायौ ।।
सकल उदार नृपति चूडामणि , सुख वारिद वरषायौ ।
परिरम्भन चुंबन आलिंगन , उचित जुवतिनजन पायौ ।।
बरषत कुसुम मुदित नभ नाइक , इंद्र निसान बजायौ ।
श्रीहित हरिवंश रसिक राधापति , जस वितान जग छायौ । 36 !
आजु वन नीकौ रास बनायौ ……..
आहा ! वर्षा में भीजीं अवनी कितनी मृदु लग रही थी …वृक्ष लता सब नहा धोकर तैयार हो गये हैं ऐसा लग रहा था …किसके लिए तैयार ? रस करता ही क्या है …वो नवीन नवीन लीला रचता है …बाबा फिर उसी बात को दोहराते हैं ….वो रस बिना लीला के रह कहाँ पाता है ।
अब ध्यान …..आइये , ध्यान की गहराई में डूबें …..ध्यान में ही चलें उस रस लोक में …जहां आज रास लीला रची जा रही है …..
!! ध्यान !!
सुन्दर यमुना पुलिन ….यमुना की नील धारा बह रही है …..जल इतना स्वच्छ और नीला है कि सखियों को लगता है मानों अभी अभी श्याम सुन्दर इसमें से नहा कर निकले हैं …और उनका नीला रंग इस यमुना ने ले लिया है ……यमुना में कमल खिले हैं …अनगिनत कमल खिले हैं ….उसमें मतवारे भ्रमर मँडरा रहे हैं ……सीढ़ियाँ यमुना की बड़ी सुन्दर हैं …मणियों से सज्जित सीढ़ी हैं ……यमुना के तट में सुन्दर सुन्दर वृक्ष लगे हैं …लताएँ उन वृक्षों से लिपटी हुयी हैं ….श्याम तमाल , कनक लता , सोन जुही , चमेली , राइबेलि , केतकी …ये सब फूल रही हैं …इनके फूलों से पूरा श्रीवृन्दावन ही महक रहा है …..तभी त्रिविध समीर चल पड़ी है ….उस समीर के चलने से लताओं से पुष्प गिर रहे हैं …और हवा उन गिरे पुष्पों को इधर उधर बिखेरने का काम कर रहे हैं …..हरित भूमि श्रीवृन्दावन की उसमें फूल और बिखर गए …बड़ी दिव्य शोभा हो गयी है ….हिरण घूम रहे हैं …मोर अपने पंखो को फैलाकर समेट रहे हैं ..फिर फैला रहे हैं …मानों ये रसलीला के मंचन का अभ्यास कर रहे हैं …पक्षी इधर उधर उड़ रहे हैं …हंस हंसिनी अपने जोड़े के साथ केलि मचा रहे हैं यमुना में ।
निकुँज का अपना कल्पवृक्ष है …ये बहुत बड़ा है ….बहुत बड़े क्षेत्र में फैला हुआ है ….यहाँ की भूमि नाना मणियों से सज्जित है …..ये अद्भुत और दिव्य है । सखियाँ इस क्षेत्र को ही रास मण्डल कहती हैं …अभी वर्षा हुई ही है …..इसलिए वातावरण शीतल है …अत्यंत शीतल । शृंगार कुँज में सज रहे हैं युगल सरकार ….हिंडोरे से उतर कर सीधे ये शृंगार कुँज में ही चले गये थे ।
आपस में हित सखी बात कर रही है …..आज कुछ होने वाला है ….क्या होगा पता नही ….हित सखी कल्प वृक्ष के ही पास में बैठी है ….उसकी सखियाँ भी वहीं बैठ गयीं …..तभी ..सज धज के अद्भुत शृंगार करके युगल सरकार पधारे …..देखते ही देखते वहाँ का वन सज गया ……
और …..उठकर खड़ी हो गयी हित सखी उसकी सखियाँ …..क्यों कि वाद्य आदि एकाएक बज उठे थे ……रस की धारा बह चली थी ….मध्य मण्डप में युगल खड़े हैं …..एक दूसरे को निहार रहे हैं ….यमुना की नीली धारा निकट ही आगयी ….उसमें कमल जो खिले थे अब तो उससे भी ज़्यादा खिल गये …..कमलों की सुगन्ध व्यापने लगी चारों ओर …..चारों ओर सखियाँ हैं …..और ….युगल अब थिरकने लगे ……वो श्याम ज्योति और गौर ज्योति आज अलग ही मुद्रा में रसलीला में प्रस्तुत हुयी है……हित सखी उसका वर्णन करती है …….
हे सखियों ! देखो , रस रसिक कैसी रास दिखा रहे हैं …..यमुना का सुन्दर तट है …और सुन्दर ही नही पवित्र तट है ….क्यों कि ये यमुना हमारे युगल की प्रिया है …..हित सखी कहती है ।
तभी श्याम सुन्दर ने अपनी फेंट से बाँसुरी निकाली ….हित सखी उछल पड़ी आनन्द से …और बोली …अब लालन सबको मोहित करने वाली वेणु बजाने वाले हैं ….ये कहते हुए वो अपने कान बन्द कर लेती है ….अन्य सखियाँ कहती हैं …कान क्यों बन्द रही हो सखी ? हित सखी कहती है …ये वेणु है ना …ये मोहन वेणु है …यानि बस इसका काम है जो इसे सुनें उसे मोह में डाल देना …मोहित कर देना ….बस । पर अन्य सखियाँ हंसती हुई हित सखी के कानों से उसके हाथों को हटा देती हैं ….वेणु बज उठी है …पूरा श्रीवन रस के उन्माद से भर गया है ।
अब तो वेणु रुकी और उसी क्षण हजारों सखियाँ एकाएक उन्मत्त नृत्य कर उठीं ….सखियाँ बड़ी सुन्दर थीं …..उनके आगे तो स्वर्ग की रानी शचि आदि भी तुच्छ थीं ….उनका वो नृत्य …और उनके नृत्य में जब उन हजारों सखियों की किंकिणी , नूपुर , कंकण की मधुर ध्वनि एक साथ गुंजित हो उठी …ओह , उनको सुनकर तो श्रीवन के वृक्ष हिरण पक्षी आदि सब आनन्द मग्न हो गये …सब देह सुध भूल गए । तभी मुस्कुराते हुए श्याम सुन्दर ने फिर वेणु बजाई ….इस बार वेणु में सारंग राग बजाया ….जो समस्त दशों दिशाओं में गूँज गया था । आहा !
हित सखी कहती है …अरे ! उस तरफ देखों ….अन्य सखियों का झुण्ड फिर आगया है ये तो और सुन्दर हैं ….इनके हाथों में मृदंग है …उपंग है …डफ है …और सब ताल लय में बजाने लगीं हैं ….अब तो रस के इस समुद्र में मानों बाढ़ ही आगयी है सखी !
पर हित सखी अब तो और आनन्द विभोर हो गयी जब आगे श्रीराधारानी आयीं और मध्य रास मण्डल में सुधंग नृत्य करने लगीं ….ओह ! प्रीति की मूर्ति , आनन्द की प्रतिमा मेरी लाड़ली नृत्य कर रहीं हैं ….अपनी छाती में हाथ रखकर हित सखी इक टक बस देखे जा रही है ….पद अवनी पर पटकती हैं ताल में ….फिर हाथों की मुद्रा बनाती हैं….फिर भौंहों की मटकन , ओह ! क्या सुन्दर , नही सुन्दर से भी अति सुन्दर ….लटक कर चलती हैं …फिर मुड़कर देखने की मुद्रा …फिर घूमकर मृदंग के सम पर अपने पद को जब पटकती हैं तब तो श्याम सुन्दर आनंदित होकर ताली बजा उठते हैं …अन्य सखियाँ अब रुक गयीं हैं …सब चमत्कृत सी बस देखती ही जा रही हैं ….अद्वितीय नृत्य है ये तो हमारी प्यारी का । और देख , देख सखी ! आनन्द में उछलती हित सखी बोल रही है …मृदंग बजाती सखी को देखकर प्रिया जू …..ताताथेई , थेई, ताथेई …बोल बोल रही हैं …उसी के साथ अपना पद विन्यास कर रही है ..और सम में लाकर जब मृदंग के साथ अपने पद को पटकती हैं ….पर इस बार श्याम सुन्दर को लगा जोर से पटका है आहा ! कोमल चरण दूख गए होंगे …..वो तुरन्त चरण पकड़ कर बैठ गये हैं …प्रिया के चरण दबा रहे हैं ।
हित सखी कहती है …आज तो परम उदार हमारी श्रीकिशोरी जु ने आनन्द रस की वर्षा ही कर दी …देखो , पूरा श्रीवृन्दावन रस में डूब गया है । अब तो सखियाँ भी आनन्द में डूब गयीं हैं …अपनी लाड़ली को ये भी आज अपने हृदय से लगाना चाहती हैं …इसलिए देखो ..रंगदेवि जू ने तो जाकर सीधे प्रिया जू को आलिंगन कर लिया है ….ये देख लाल जू वहाँ से हट गये और दूर खड़े होकर बस अपनी प्यारी को निहार रहे हैं । ललिता सखी चूम रही है ..लाड़ली जू को ….श्याम सुन्दर देख रहे हैं तो ललिता सखी श्याम जू को चिढ़ाते हुए कह रही है ..ये लाड़ली पहले हमारी हैं ..आपकी बाद में …कोई साष्टांग चरणों में लेट गयी है …कोई सखी अपने अचरा से पंखा कर रही है ….और कुछ सखियाँ तो फूल बरसा रही हैं ….ये सब देखकर श्याम सुन्दर अब ललचा उठे हैं ….वो धीरे धीरे फिर पास में गये …ललिता रंग देवि उन्हें पास में जाने नही दे रही हैं …छेड़ रही है ..पर अब वो चले गए और जाकर अपनी प्यारी को हृदय से लगा लिया ..चूम लिया ….और आनन्द रस में निमग्न हो गये …आनन्द में ये दोनों जितने निमग्न हुए उतने ही देखने वाले भी ..यहाँ तक कि श्रीवन के लता वृक्ष पशु पक्षी भी इस रस सागर में डूब गये थे ।
अब सब सखियाँ दोनों हाथों को उठाकर बोलीं …..
जय जय श्री राधे , जय जय श्रीराधे , जय जय श्रीराधे , ।
हित सखी पीछे से बोली ….लाड़ली श्रीराधाप्यारी जू की …जय जय जय ।
हित सखी को देखकर युगल सरकार मुस्कुरा रहे थे ।
इस अद्भुत रस को बरसा कर पागल बाबा भी रसोन्मत्त हो गये । अब क्या बोलें । जो डूब जाता है वो कहाँ बोल पाता है ।
गौरांगी ने फिर इसी पद का ग़ायन किया ।
आजु वन नीकौ रास बनायौ ………
आगे की चर्चा अब कल –
Author: admin
Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877