श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! “श्रीदामा” – कन्हैया का नया सखा !!
भाग 2
श्रीदामा का मिलन हुआ कन्हैया से ……..दोनों के आनन्द का कोई ठिकाना नही था ……..ये नया सखा मिला था ….
हमारे साथ मित्रता करोगे ? हँसते हुए कन्हैया नें अपना हाथ बढ़ाया ।
श्रीदामा नें तुरन्त सिर हाँ में ही हिलाया था………और फिर हाथ मिले और गले भी मिले ।
तुम नित्य आओगे हमारे पास ? कन्हैया नें श्रीदामा को पूछा ।
हाँ …..मेरा ग्राम बरसाना, पास में ही है ………वो देखो ! उस ऊँची पहाड़ी में महल दिखाई दे रहा है ना….वही है…..श्रीदामा नें दिखाया ।
तभी उस दिशा से हवा चली ……..और उस हवा के झोंके नें कन्हैया को छूआ ……..बस उसी समय कन्हैया रोमांचित हो उठे थे ।
( साधकों ! प्राचीन वृन्दावन में – नन्दगाँव बरसाना गोवर्धन यमुना जी ये सब आते थे….वर्तमान का वृन्दावन पंचकोशी है …..ये “सरस वृन्दावन” है….जहाँ मात्र श्रीराधा रानी से श्री कृष्ण का प्रेमालाप होता था )
बृषभान जी और बृजराज दोनों होकर अपनें बालकों को ढूंढनें निकल गए थे ……क्यों की रात्रि हो रही थी ।
नन्दजी को देखते ही कन्हैया दौड़ पड़े…..बृषभान जी के पास श्रीदामा ।
ये है मेरा बालक……..बृषभान जी नें दिखाया बृजराज को ।
श्रीदामा…….आपनें जब देखा था बृजराज ! तब ये बहुत छोटा था …….आप को स्मरण है क्या ? बृषभान जी नें पूछा ।
हाँ ……..मुझे स्मरण है ।
और ये है मेरा पुत्र कृष्ण …………नन्दबाबा नें परिचय दिया ।
लाला ! आओ …इधर आओ ………….बृषभान जी नें बुलाया कन्हैया को …..तो कन्हैया चले गए ।
और ये सब मेरे पुत्र के सखा हैं ………….नन्द बाबा के कहनें पर …..सब नें बृषभान जी के चरण छूए …………पर –
तू भी छू ………..कन्हैया हँसते हुये मनसुख से बोले ।
मैं तो ब्राह्मण हूँ ……….मैं कैसे छू सकता हूँ…………..मनसुख नें बृषभान जी की ओर देखते हुए ही कहा था ।
ओह ! ब्राह्मण हो आप ……फिर तो आपके चरण हमारे धाम में भी रखिये….पवित्र हो जायेगें….बृषभान जी नें हाथ जोड़कर मनसुख से कहा ।
पता नही ऐसा क्यों कहा …….गौ के खुर से स्थान पवित्र होता है …….पर मनसुख कोई गौ तो नही …..फिर इसके पाँव पड़नें से कोई भी स्थान पवित्र कैसे हो सकता है…….मेरे तो कुछ समझ में ही नही आया ।
कन्हैया सोच रहे थे ………….कि तभी मनसुख नें ऐसी बात कह दी …..कन्हैया तो शरमा गया और मैया की गोद में जाकर छुप गया था ।
आपकी बेटी है ? सुना है बड़ी सुन्दर है…..हमारे कन्हैया से उसकी सगाई करा दो ….फिर आऊँगा आपके यहाँ और खूब दावत उड़ाऊँगा ।
कुछ भी बोल देता है मनसुख…….अरे ! कुछ तो शरम करो ………..पर मनसुख को कौन समझाये ।
लग रहा था कन्हैया को कि बृषभान जी क्रोधित हो उठेंगे ऐसी बातें सुनकर ……..पर बृषभान जी तो बहुत अच्छे हैं …………..कन्हैया नें अब सोचा ……कितनें अच्छे हैं !
मनसुख के सामनें हाथ जोड़कर बोले ……..आप ही करवा दो मेरी बेटी और नन्दनन्दन के साथ सगाई ……………
कैसी है आपकी बेटी ? बोर कर रहा था अब मनसुख ।
फिर उत्तर की प्रतीक्षा बिना किये बोला …….आपके पुत्र .श्रीदामा जैसी ही लगती हैं क्या ? मनसुख पूछ रहा है ।
हाँ बृजराज ! मेरी राधा बेटी बिल्कुल श्रीदामा की तरह ही लगती है ।
कोई पहचान ही नही पाता दोनों को ……कभी श्रीदामा को राधा कह देते हैं …..कोई राधा को श्रीदामा……ये कहते हुए हँस रहे थे बृषभान जी ।
पर श्रीदामा से शर्त लगाई है अपनें कन्हैया नें……कि कल राधा को ले आना…..अपना कन्हैया तो पहचान लेगा – श्रीदामा है कि राधा हैं ?
मनसुख की बातों का कोई बुरा नही मानता ……….ये परम तपश्विनी पौर्णमासी का पुत्र है ………बृजराज नें बृषभान जी को कहा ।
नही ……….बड़ा अद्भुत बालक है ये ………..दिव्य प्रेम मयी ऊर्जा से ओतप्रोत ……..बृषभान जी नें मनसुख के लिये कहा था ।
पर सुन्दर तो आपका पुत्र है………कन्हैया काला है ….पर आपका पुत्र गौर वर्ण का है……….श्रीदामा के लिये कहा मनसुख नें ……और श्रीदामा के गोरे कपोलों को छूकर भागा ।
मनसुख की हर छोटी बड़ी हरकतों पर कन्हैया खूब हँसता है ………आज भी खूब हँसा…………..बृषभान जी मन्त्रमुग्ध होकर नन्दनन्दन को देखते ही रहे थे ।
श्रीदामा अब कन्हैया के सखाओं में प्रमुख बन गया था ………….नित्य बरसानें से नन्दगाँव आना……कभी कभी तो नन्दगाँव में ही सो जाना ।🙏


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