श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! श्यामाश्याम का प्रथम मिलन !!
भाग 1
एक दिन –
श्याम सुन्दर कदम्ब वृक्ष के नीचे खड़े होकर वेणुनाद कर रहे थे ।
अद्भुत , नाद का स्पर्श पाते ही पर्वतश्रेणियों के शिखर समूह द्रवित हो गये……..पक्षी तो आज नाद के कारण मौन व्रती मुनि के समान बस श्याम सुन्दर के रूप में ही त्राटक कर रहे थे ।
उफ़ ! जड़ कैसे चेतन बन, और चेतन में कैसी जड़ता छा रही थी ।
अपनें रस में ही भींग उठे थे श्याम सुन्दर…..”आत्माराम” अपनें इसी नाम को सार्थक बना रहे थे आज ।
तभी एक मोर नाचनें लगा……..उन्मत्त होकर नाचनें लगा ……वो रिझाना चाहता था श्याम सुन्दर को…….अपनें पीछे लगा कर वो कहीं ले जाना चाह रहा था…….उसके नृत्य पर रीझ उठे थे श्याम सुन्दर भी ……..चल पड़े मोर के पीछे पीछे………..
आगे आगे मोर था और पीछे उसके श्याम सुन्दर ।
वो मोर ले गया बरसानें में……..प्रथम बार बरसानें में पधारे थे ……उन्हें बड़ा आनन्द आया …….वहाँ की हवा अलग ही थी ………सुरभित प्रेम पूर्ण हवा………जो श्याम के अंगों को जब छू रही थी …..तब रोमांच हो रहा था उन्हें ।
एक सरोवर है ……..जिसे प्रेम सरोवर के नाम से जाना जाता है ……..वहाँ आईँ हैं श्रीराधा रानी ।
मोर नें अपनें पंख समेट लिए थे……इशारा करके बोला…..वो देखो –
श्याम सुन्दर नें देखा…….सुवर्ण के समान रूप था…….नाक के अग्रभाग पर छोटा काला तिल ………इसको देखकर ही तो आचार्य गर्ग नें कहा था – ये तो जगत की ईश्वरी हैं…….जगत जिसकी आराधना करता है ….वो इसकी आराधना करेगा ……इसलिये इसका नाम है – राधा ।
सिर की माँग अपनें आप निकली हुयी है……..इनकी माँ कीर्तिरानी नें कितना प्रयास किया कि ……इन रेशमी केशों को बिखेरकर इस माँग को छुपाया जाए ……….पर ये सम्भव न हो सका ।
छुपाना इसलिये चाहा था कि ………..माँग में ही लाल बिन्दु ये भी जन्मजात ही था …………दूर से देखो तो लगे माँग भरी हुयी है सिन्दूर से ………आहा ! ये किसी ओर की हो ही नही सकती …….ये तो अनादि दम्पति हैं राधा कृष्ण हाँ, कृष्ण की ही हैं ये श्रीराधा ।
अपलक देखती रहीं अपनें श्याम को………..श्याम तो सबकुछ भूल गए थे ……..सब कुछ……….दोनों के नयन मिले …..जुरे …..।
पास में गए, अपनी प्रिया के पास में…..
…हे गोरी ! तुम कौन हो ?
बड़े प्रेम से पूछा था श्याम नें ।
क्या नाम है तुम्हारा ? किसकी बेटी हो ? हँसते हुए फिर – मैने कभी तुम्हे बृज में देखा नही ………कौन हो तुम ?
मैं राधा !
वो अमृत वाणी श्याम सुन्दर के कानों में घुरी ।
*क्रमशः ….


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