“श्रीराधाचरितामृतम्” – 73 !!
जब उद्धव का विद्या-गर्व गलित होनें लगा…..
भाग 3
यमुना में स्नान किया उद्धव नें …….बाहर आये …….सन्ध्या और गायत्री का जाप करनें लगे थे……..पर तभी उद्धव नें देखा –
गोप ग्वालों का समुदाय दिखाई दिया … …..उन सबनें पहले तो शान्त भाव से स्नान किया ……फिर उद्धव के पास आये ………..बड़े ध्यान से उद्धव को देखा ……..आपस में कुछ बातें कर रहे थे ………..तभी उद्धव नें अपनी आँखें खोलीं ………………
एक ग्वाल बाल नें पूछ लिया – कन्हैया आया तुम्हारे साथ ?
मैं ज्यादा क्या बोलता…..सन्ध्या और गायत्री के जप में लीन था ।
पर आचमन करके इतना ही बोला – ” अभी तो नही आये”
मेरे समझ में नही आया ……..कि एकाएक ये क्या हो गया था ….
वो सब ग्वाल बाल अत्यन्त दुर्बल होगये थे ….क्षण में ही ………वो सब गिर पड़े थे ……..
मेरे सामनें बह रही यमुना सूख कर नाली के समान छोटी हो गयी थी ….
कछुओं की भरमार मुझे दिखाई देनें लगी थी यमुना में ……..
मैने चारों ओर दृष्टि घुमाई ………..ऐसा लग रहा था ……..कि दावग्नि से झुलस गया हो वृन्दावन ………..
ये क्या होगया था एकाएक वृन्दावन को…..
उद्धव के कुछ समझ में नही आरहा था ।
अभी अभी जो ग्वाल बाल सुन्दर थे …….जिनका सौन्दर्य सुरों को भी मोहित करनें वाला था ……..उनके देह एकाएक काले पड़ गए थे ।
उद्धव को सन्देह हुआ…….ये जीवित तो हैं ?
पास में गए ग्वाल सखाओं के …………
पर ये क्या ?
“कन्हाई तो आगया …….सुनो बाँसुरी !
एक ग्वाल सखा नें कहा ।
कहाँ है बाँसुरी ? हमें तो सुनाई नही दी…….
.सब ग्वाल बालों नें यही कहा ।
पर “कन्हाई आगया” इन शब्दों नें ही उन ग्वालों को प्रफुल्लित कर दिया था……..वो पहले के समान सुन्दर हो गए थे……..उनमें मात्र इन शब्द नें ही जीवन दे दिया था ……कि “कन्हाई आगया” ।
कालिन्दी फिर निर्मल हो गयी थी ……जल अगाध आगया था उसमें ….कछुए भी आनन्दित हो भ्रमण करनें लगे थे ।
वृन्दावन फिर प्रफुल्लित हो उठा…………..
उद्धव का सन्ध्या गायत्री सब छूट गया ………वो कुछ देर तक सोचते रहे ….चकित होते रहे ……..पर फिर बोले –
ये जो मैने देखा अभी…..उसका एक अच्छा परिणाम भी तो निकला –
कि मैं इस भूमि की दिव्यता से परिचित हो गया ……..
अब ये बात भी मेरी समझ में आरही है ……कि जिस “वृन्दावन” का नाम लेते ही संज्ञा शून्य हो गए थे मेरे नाथ कृष्ण …….उस वृन्दावन को मैने साधारण समझनें की गलती भी कैसे कर दी ।
अब मुझे दर्शन करनें हैं श्रीराधा रानी के …………
नही उनके सामनें अब मैं कुछ नही बोलूंगा ……….बस उनके चरण दर्शन मिल जाएँ मुझे …….ओह ! मेरे श्रीकृष्ण की प्रिया !
राधा राधा राधा……..यही नाम तो उस दिन श्रीकृष्ण के रोम रोम से निकल रहा था……..वो कैसी होंगीं ? जिनका नाम लेते ही अश्रुधार बह चले थे मेरे नन्द नन्दन के……वो श्रीराधा कहाँ होंगी ?
ऐसा विचार कर उद्धव नें सन्ध्या- गायत्री की क्रिया को वहीं छोड़, यमुना के पुलिन में ही विचरण करने लगे थे ।
शेष चरित्र कल –
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