!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 74 !!
श्रीराधा द्वारा “प्रेम सिद्धान्त” का निरूपण
भाग 1
भूल जाओ प्यारी ! भूल जाओ मेरी स्वामिनी !
भूल जाओ उस कपटी कृष्ण को ………..
हे राधिके ! आपकी ये स्थिति हम देख नही सकतीं …..
श्रीराधारानी को ललिता सखी समझा रही थीं ।
उद्धव नें देखा – दूर एक प्रकाशपुञ्ज दिखाई दे रहा था …….
हवा उधर से आरही थी, उस हवा में भी एक दिव्य सुगन्ध थी ।
उद्धव के पैर उस दिशा की ओर ही बढ़ चले थे ……………
ओह ! दिव्य पुलिन है……..हजारों गोपियाँ बैठी हुयी हैं ………
और मध्य में ?
उद्धव जी देखनें का प्रयास करते हैं ........पर देख नही पाते .....क्यों की चौंध ज्यादा है.....कोई प्रकाश का पुञ्ज मध्य में बैठा है .....ऐसा लग रहा है.......उद्धव , उधर की बातें सुननें की कोशिश करते हैं ..........
एक सखी बोल रही है……..ललिता सखी है ये……क्यों कि अन्य सखियाँ यही नाम लेकर इसे पुकार रही थीं ।
भूल जाओ उस कृष्ण को ……………..हम हाथ जोड़ रही हैं ।
आपका ये दुःख, ये विरह अब हमसे देखा नही जा रहा ।
उद्धव सुन रहे हैं……..छुप कर सुन रहे हैं ।
अपनें आँसू पोंछ रही थीं वो ललिता सखी, और बोल रही थीं –
हे राधिके ! श्री कृष्ण सच में बहुत निष्ठुर हैं……उन पर विश्वास करनें का क्या फल मिला आपको ? आप उनके वियोग में इतनी दुःखी हो ….दिन रात रोती रहती हो….क्या उन्हें आपकी स्थिति पता नही होगी ? सब पता है उसे….फिर भी वो आपकी ओर क्यों ध्यान नही देते…..बोलो ?
मैं आपकी सखी हूँ……..मेरी बात मानिए मन से ही उनका विस्मरण कर दीजिये…….ललिता सखी समझा रही थी ।
हे वज्रनाभ ! उद्धव सब सुन रहे हैं ………
ललिता तो समझा कर , बोलकर बैठ गयी थी, पर श्रीराधा रानी !
उन्होंने देखा था ललिता की ओर…….पर अत्यन्त कोमल हृदय होनें के कारण उन्होंने ललिता को प्रेम से ही समझाया ।
..ओह ! ये हैं मेरे प्राण सखा की प्रिया ! उद्धव दर्शन करके आनन्दित हो गए थे ।
वाणी कितनी मधुर थी……पर इनकी वाणी से भी जो निसृत हो रहा था…..वो तो प्रेम के गूढ़ सिद्धान्त थे…..मैं धन्य हो गया था जो श्रीराधा रानी नें ललिता सखी को सुनाया – समझाया था, उसे सुनकर ।
क्रमशः …
शेष चरित्र कल –


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