!! राधा बाग में – “श्रीहित चौरासी” !!
( आनन्द मत्त युगल – “मोहनी मोहन रंगे” )
गतांक से आगे –
रास विहार का जो वर्णन है श्रीहित चौरासी में ….वो सूक्ष्म से सूक्ष्म भाव जगत में अधिष्ठित है ।
ये विशुद्ध प्रेम का विहार है …ये विहार अपने अन्दर पूर्ण तीव्रता धारण किए हुए है । ये प्रभात से ही बढ़ता है …और रात्रि होते होते विभिन्न आकृतियों में फलता फूलता है । नित नवीन , नही नही हर पल नवीन , जैसे शोभा अभी है …वैसी शोभा पूर्व में कभी थी ही नही ….वन वृक्ष लताएँ सब की सब नवीनता धारण किए रहती हैं । अद्भुत और अनुपम है ये रास -विहार । सखियाँ इसकी संयोजिका हैं ….और आनन्द मत्त हैं युगल सरकार ।
मोहनी मोहन रंगे , प्रेम सुरंगे । मत्त मुदित कल नाँचत सुधंगे ।।
सकल कला प्रवीन, कल्याण रागिनी लीन, कहत न बनैं माधुरी अंग अंगे ।
तरनि तनया तीर, त्रिविध सखी ! समीर, मानौं मुनि व्रत धर्यौ, कपोती कोकिला कीर ।।
नागरि नव किशोर मिथुन मनसि चोर , सरस गावत दोउ , मंजुल मंदर घोर ।
कंकण किंकिणी धुनि , मुखर नूपुरनि सुनि , श्रीहित हरिवंश रस वरषै नव तरुनि । 69 !
मोहनी मोहन रंगे प्रेम सुरंगे ………….
गौरांगी की गायकी में भाव है …और इन वाणी जी के पदों के गायन के लिए भाव ही प्रधान है ।
समस्त राधा बाग के रसिक समाज आनंदित होकर गायन कर रहे थे । पागलबाबा भाव में डूबे इन लीलाओं का हृदय में दर्शन कर रहे थे । उसी को ध्यान के माध्यम से हमारे सामने उन्होंने रखना आरम्भ किया ।
!! ध्यान !!
शरद की सुन्दर रात्रि है , नाना प्रकार के पुष्प खिले हैं । यमुना बह रही हैं । चारों ओर सुगन्ध फैला हुआ है । पूरा श्रीवन आनंदित है ।
यमुना में हंस हंसिनी क्रीड़ा कर रहे हैं ….कमल पुष्प का अम्बार लगा है । लताएं भी पवन के झौंकौं से झुक रही हैं …..वैसे तो पुष्पों का भार ही ज़्यादा हो गया है ।
रास ने अभी विश्राम कहाँ लिया । वो तो चल ही रहा है । प्रिया प्रियतम सरस नृत्य कर रहे हैं …जो भी देख रहा है ….वो रस में डूब ही गया है ।
हित सखी हंसती है ….ये रास क्रीड़ा आज रुक क्यों नही रही !
प्रेम रंग में रंगे प्रिया प्रीतम का सुन्दर नर्तन दर्शनीय है …सखी ! जो इस झाँकी का दर्शन करेगा वो प्रेम रस में बिना भींगे रह नही सकता । हित सखी अपनी सखियों को बता रही है ।
“आज तो रास बहुत देर तक चल रही है”। सखियाँ आनंदित होकर कहती हैं ।
क्यों न चले …..ये दोनों समस्त कलाओं में पारंगत हैं । देखो तो , सुनो तो …इन के द्वारा प्रदर्शित गान नृत्य में जो इनके अंगों का माधुर्य भी प्रकट हो रहा है उसका वर्णन सम्भव नही है ।
हे सखी ! शीतल मन्द सुगन्ध वायु भी बह रहा है …..पर श्रीवन के इन शुक कपोती कोकिला आदि पक्षियों को तो देखो ….ये बोलने वाले हैं …साथ साथ में स्वर बैठाने वाले हैं ….किन्तु आज ये बस देख रहे हैं …..मौन हैं …..ये ऐसे लग रहे हैं ….जैसे ऋषि-मुनियों की तरह मौन व्रत धारण कर लिया हो । ये अचंभित हैं इस रास का दर्शन करके । ये बोल नही पा रहे हैं ।
ऐसा क्या हो गया ? अन्य सखी पूछती है ।
तो हित सखी उत्तर देती है …..
युगल स्वयं गा रहे हैं ….और ताल दे रहे हैं …..इनके गायन में जो राग रागिनी का सामंजस्य है ….वो बड़े बड़े गन्धर्वो में भी नही है । इसलिए सब कोई चमत्कृत है ।
हित सखी आगे प्रिया जी के लिए विशेष कहती है …..इतना ही नही ….इन प्रिया जी से भी ज़्यादा मुखर तो प्रिया जी के नूपुर हैं , कंकण हैं , किंकिणी हैं ..इनके द्वारा पूरे श्रीवन में रस की वर्षा कर रही हैं । आहा ! सखी ! मैं तो मुग्ध हो गयी हूँ । इतना कहकर हित सखी मौन हो गयी ।
पागलबाबा कहते हैं ….ये रास नित्य का रास हैं ….निकुँज का रास नित्य होता है …और नवीन होता है । इतना ही बोले ।
गौरांगी इसी पद का गायन फिर करती है ।
मोहनी मोहन रंगे , प्रेम सुरंगे …….
शेष चर्चा कल –


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