!! राधा बाग में – “श्रीहित चौरासी” !!
( जल विहार – “आजु सँभारत नाहिन गोरी” )
गतांक से आगे –
एक ही अखण्ड ब्रह्मज्योति दो रूपों में प्रकट हुई है – एक राधा और दूसरा माधव ।
ये दोनों दो होने पर भी एक ही हैं । किन्तु माधव से ज़्यादा रस सार श्रीराधा रानी हैं । करुणा की मूर्ति श्रीराधारानी हैं । अजी ! कितनी बार कहूँ – आत्मा ही हैं परब्रह्म की श्रीराधा । वो ब्रह्म माधव के रूप अपनी आत्मा से ही विहार करता है । करता है ….पर अतृप्ति ही इस विहार के नये नये लीलाओं के पुष्पों को खिलाती रहती है ।
पागल बाबा नित नये भावों में भींजते हुये रस की वर्षा कर रहे हैं । ये रस है कि किसी को तृप्त होने नही देता …वैसे बाबा आज रस की परिभाषा बता रहे थे …रस उसे कहते हैं जिससे कभी तृप्ति न मिले । जो रस तृप्त कर दे …वो रस ही नही है ।
रस तो यहाँ बिखर रहा है …फैल रहा है ….आसक्ति है लालन की प्रिया जी के प्रति ….वो प्रिया जी को एक पल के लिए भी छोड़ सकते नही हैं ….और प्रिया जी को लालन के बिना चैन नही मिलता । आसक्त हैं लालन और उस आसक्ति का मूल हैं श्रीराधा रानी । इस तरह दोनों ही परस्पर जुड़े हुये हैं …..गहरे इतने हैं कि पल के लिए भी दूरी असह्य है । बाबा ये कहते हुये …राधा राधा राधा” पुकारने लग जाते हैं …उन्हें कुछ भान नही रह जाता ।
रसिक समाज आरहा है वो अपने अपने स्थान पर आकर बैठ रहा है । आज श्रीहित चौरासी का सत्तरवाँ पद है …..सब लोग बैठ गये हैं । बाबा को श्रीजी की प्रसादी जल पिलाई जाती है ….तब बाबा को देह भान हुआ है …वो राधा राधा कह रहे हैं ….शाश्वत उन्हें पंखा कर रहा है ।
कुछ देर बाद बाबा गौरांगी को पद गाने के लिए कहते हैं …..वीणा लेकर बैठी गौरांगी मधुर स्वर में आज का पद गायन करती है ….समस्त रसिक समाज पीछे पद गायन में तल्लीन हो जाता है ।
आजु संभारन नाहिंन गोरी ।
फूली फिरत मत्त करिनी ज्यौं, सुरत समुद्र झकोरी ।।
आलस बलित अरुन धूसर मषि, प्रकट करत दृग चोरी ।
पिय पर करुन अमी रस बरसत , अधर अरुनता थोरी ।।
बाँधत भृंग उरज अंबुज पर , अलक निबंध किशोरी ।
संगम किरच किरच कंचुकि बंद , शिथिल भई कटि डोरी ।।
देत असीस निरखि जुवतिजन , जिनकैं प्रीति न थोरी ।
श्रीहित हरिवंश विपिन भूतल पर , संतत अविचल जोरी । 70 ।
आजु सँभारत नाहिन गोरी ………..
गौरांगी के मुख से पद गायन …सब लोगों को भाव जगत में ले जा रहा था ।
बाबा अब ध्यान करायेंगे । ध्यान की गहराईयों में ये निकुँज में ले जाते हैं ।
!! ध्यान !!
श्रीवन आनंदित है …प्रातः काल का समय है …शीतल सुरभित वायु बह रही है ।
सुरत रस में डूबे युगल अब सेज शैया से बाहर निकलते हैं और बाहर वन विहार के लिए चले जाते हैं …आज श्रीवृन्दावन की छटा कुछ अलग ही है । चारों ओर पुष्पों की सुगन्ध बह रही है …..जिसने श्रीवन को और उन्मत्त कर दिया है ।
एक सुन्दर सरोवर है …इस सरोवर की शोभा देखते ही बनती है । इसके चार घाट हैं ….इनके घाट मणियों से सज्जित हैं ….चार बुर्जियाँ भी हैं ….जो माणिक्य से खचे हैं और माणिक्य की सुन्दर पच्चिकारी की हुयी है । इस सरोवर में नाना प्रकार के हंस हंसिनी उन्मत्त विहार कर रहे हैं ।
कमल खिले हैं …कमल भी प्रत्येक रंग के हैं …..नीले , पीले , हरे , और सरोवर के मध्य में एक स्वर्ण कमल भी खिला हुआ है । कमलों में भँवरों का गुनगुनाना संगीत प्रकट कर रहा है ।
इस सरोवर का नाम “मानसरोवर”है । इस सरोवर में स्नान करने से दिव्य प्रेम रस की प्राप्ति होती है ….इस सरोवर की शोभा देखते हुए युगल वर चल रहे हैं । जब श्रीराधा रानी ने देखा सरोवर ! तो उनका मन प्रमुदित हो उठा । श्याम सुन्दर से उन्होंने कहा …प्यारे ! क्यों न हम जल विहार करें ? ये कामना तो मेरी भी थी …..ऐसा कहकर सरोवर की रत्न जटित सीढ़ियों पर श्याम सुन्दर ने अपने चरण रखे , प्यारी जू ने भी प्रसन्नता पूर्वक अपने प्रीतम का अनुसरण किया ।
जल विहार के लिए युगलवर सरोवर में उतरे ………
जल अत्यंत सुगन्धित है, कमल की गंध सरोवर के जल में मिश्रित हो सुगन्ध को और बढ़ा दिया है ।
युगल सरकार के जल प्रवेश करते हैं ….सखियाँ भी वहाँ पहुँच गयीं ।
डुबकी लगाई पहले श्रीजी ने ….श्याम सुन्दर खोजने लगे उन्हें तो जल के भीतर से श्रीजी ने श्याम सुन्दर के चरण पकड़ लिए …श्याम सुन्दर डर से जैसे ही उछले तो , श्रीजी बाहर निकलीं और ताली बजाकर खूब हंसने लगीं ….श्रीजी को हँसता देख सखियाँ हंसने लगीं ..श्रीजी को हंसता देख हंस हंसिनी हंसने लगे , श्रीजी हंसता देख पक्षी लता वृक्ष और पूरा श्रीवन आनन्द की अतिरेकता में हंसने लगा । अब एक कमल पुष्प उठाकर सरोवर से श्याम सुन्दर ने श्रीजी की ओर उछाला …..पर उसका पराग श्रीजी के नयनों में पड़ गया तो वो नयनों को मलने लगीं …सखियाँ दौड़ीं ….श्याम सुन्दर को लगा ओह ! मेरे कारण मेरी प्यारी को कष्ट हुआ ….वो भी जल में दौड़ते हुए श्रीजी के पास पहुँचे । ये क्या किया आपने ? ललिता ने श्याम सुन्दर से कहा । श्याम सुन्दर को बड़ा दुःख हो रहा है ….उनकी रोनी सी सूरत हो गयी ….वो अपनी पीताम्बर से श्रीजी के नयनों को पोंछने लगे ही थे कि श्रीजी फिर ठहाका लगाकर हंसीं….अब तो श्याम सुन्दर कुछ नही बोले । पर उनके मन में अतिप्रसन्नता व्याप्त थी ….कि श्रीजी को सुख मिल रहा है ।
सखियों ने देखा समय ज़्यादा हो गया इसलिये वो युगल सरकार को सरोवर से बाहर लेकर आती हैं । बाहर आते ही आज श्रीजी मत्त हैं …वो श्याम सुन्दर को देखती हैं और मुस्कुराती हैं ….उनका अंग अंग उन्मत्त है आज । जल विहार ने इस रसिकनी का रस बढ़ा दिया था ।
वस्त्र बदल दिये सखियों ने …केश राशि श्रीजी की बिखरी हुई हैं । पर श्याम सुन्दर तो अपलक अपनी प्यारी को ही निहार रहे हैं ….
हित सखी इस झाँकी का दर्शन कर रही है …..वो अपनी सखियों को बताती है कि कैसे हमारी प्यारी जू आज आनन्द विभोर हैं ।
देखो सखियों ! आज गोरी भोरी हमारी श्रीकिशोरी जी कितनी मत्त हैं , देखो तो सही ।
क्यों मत्त हैं ? सखियाँ सब कुछ जानते समझते हुये भी पूछती हैं ।
हित सखी कहती है …..सुरत रस के समुद्र में डूबी हुयी हैं ये । देखो तो सही , कैसी मत्तता छाइ है इनमें ।
थोड़ी आलस से भी भरी हैं …..जल विहार खूब किया है ना ! इसलिए आलस आरहा है अब । नयनों को देखो …..वैसे अलसाये नयन कितने प्यारे लगते हैं ना ! और हमारी श्रीजी के तो बस पूछो ही मत ।
इसके बाद हित सखी मौन होकर निहारती रहती है अपनी स्वामिनी की छवि को ।
फिर बस इतना कहती है …..हमारी किशोरी जी की अलकें खुल कर वक्षस्थल में आगयी हैं ….ऐसा लग रहा है ….युगल कमलों में भँवरों का झुण्ड उतर आया हो रस पीने के लिए ।
प्रीतम के साथ जल विहार करने से कंचुकी की डोर भी खुल गयी है ….और कटि की डोरी भी शिथिल हो गयी है । इस झाँकी का दर्शन करके हित सखी आनन्द में डूब जाती है ….और दोनों हाथों को उठाकर आशीष देती है ….कि जीती रहो लाली ! जीती रहो ! ऐसे ही रस विहार में मत्त रहो ! खुश रहो ! और इस श्रीवृन्दावन की अवनी में अपने प्रीतम के साथ सदा सर्वदा प्रसन्न चित्त से विराजमान रहो । हित सखी का ये आशीष था । अब ये कुछ नही बोलती …बस दर्शन करती है ।
पागलबाबा आनन्द मग्न हैं ….वो आज नाचते भी हैं …पर शाश्वत उसे सम्भाल लेता है ….क्यों की ये देह भान भूल गए थे ।
गौरांगी इसी पद का फिर गायन करती है ।
आजु सँभारत नाहिन गोरी ……..
शेष चर्चा कल –


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