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August 2, 2025 12:22 pm

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!! राधा बाग में – “श्रीहित चौरासी” !!-( रस केलि – “श्याम संग राधिका” ) : Niru Ashra

!! राधा बाग में – “श्रीहित चौरासी” !!-( रस केलि – “श्याम संग राधिका” ) : Niru Ashra

!! राधा बाग में – “श्रीहित चौरासी” !!

( रस केलि – “श्याम संग राधिका” )

गतांक से आगे –

आपका इतने पर प्रेम नही जाग रहा है ….तो आप रोगी हो । इतना कहने सुनने के बाद भी आपके मन में युगलवर के प्रति प्रेम नही प्रकट हो रहा है ….तो पक्का मानौं आपके भीतर रोग है ….जल्दी किसी चिकित्सक को दिखाओ । जैसे भूख लगनी चाहिए , प्यास लगनी ही चाहिये , अगर नही लगे तो आप डाक्टर के पास जाते हैं या नहीं ? जाते हैं ना ! ऐसे ही संसार में रहकर इंद्रियाँ मिली हैं …हृदय मिला है ..उसमें धड़कन भी है …फिर क्यों प्रेम नही जाग रहा ? वो सुन्दर श्याम , वो गोरी भोरी श्रीराधा ये दोनों सुन्दरवर के प्रति आपके मन में क्यों अनुराग नही हो रहा ?

अब नही जाग रहा , क्या करें ?

वो सेठ जी दिल्ली के थे जो राधा बाग में तीन दिन से आरहे थे ….सत्संग उन्हें अच्छा लग रहा था ….तो उन्होंने ही आज पूछा – मेरे मन में प्रेम नही जाग रहा ।

आप रोगी हैं ….दिखाइये किसी चिकित्सक को । बाबा बोले ।

किसको दिखायें ? श्रीवृन्दावन के किसी रसिक सन्तों को दिखाओ …वही चिकित्सक हैं ।

“आप ही देख दो”…….वो सेठ जी भी पक्के थे ।

तो बाबा भी हंसे ….बोले ….यहाँ की रज को माथे से लगाओ , राधा राधा राधा नाम जपना आरम्भ कर दो । यमुना जी का दर्शन करो । युगल सरकार से अकेले में रो कर प्रार्थना करो ।

आँसु नही आते …बाबा बोले ..आयेंगे ….अकेले में उनको अपना सारा दुःख दर्द बता दो ।

और थोड़ा दरवाज़ा बन्द कर नाच लो …..मटको , उनको संकेत करो …कि आ , मेरे हृदय से लग …इससे रस प्रकट होगा तुम्हारे भीतर । तुम्हारे रोग का कारण है ….रस ही नही है …रस खतम हो चुका है ….सूख गया है , कारण ये है कि संसार के शुष्क व्यवहार ने तुम्हारे भीतर का रस सुखा दिया है ….मैं जो कह रहा हूँ …बस वो करो ।

बाबा ने उन सेठ जी को समझाया …फिर इधर गौरांगी से बोले …अब आज का पद गाओ ।

गौरांगी ने बड़े उत्साह से श्रीहित चौरासी का इकहत्तरवाँ पद सुनाया ।

पद में रस केलि का वर्णन था ।


                        श्याम संग राधिका रासमण्डल बनी ।
  बीच नन्दलाल बृजवाल चम्पक वरन , ज्यौंव घन तड़ित बिच कनक मर्कतमनी ।।

  लेत गति मान तत्त थेई हस्तक भेद ,  स रे ग म प ध नि ये सप्त सुर नंदिनी ।
   निर्त रस पहिरि पट नील प्रगटित छबी , वदन जनौं जलद में मकर की चाँदनी ।।

  राग रागिनी तान मान संगीत मत ,  थकित राकेश नभ शरद की जामिनी ।
  श्रीहित हरिवंश प्रभु हंस कटि केहरी , दूरी कृत मदत्त मद मत्त गज गामिनी । 71 ! 

श्याम संग राधिका रासमंडल बनी ………..

बाबा ने आज ध्यान का अद्भुत वर्णन किया था ।


                                !! ध्यान !! 

शरद की सुन्दर रात्रि है । श्रीवृन्दावन में पवन शीतल बह रही है । मल्लिका आदि पुष्प खिले हैं ….जिसमें सुगन्ध मादक है …जो चारों ओर फैल रही है । चन्द्रमा की चाँदनी छिटक रही है पूरे वन प्रदेश में ….जिससे एक अद्भुत आलोकमय वातावरण तैयार हो गया है ।

प्यारी ! तुम्हारा मुख चन्द्र इस चन्द्रमा की तरह है ।
नभ में खिले चन्द्रमा को दिखा कर श्याम सुन्दर अपनी प्रिया से बोले थे ।

क्या मेरे मुख में कलंक है ? प्रिया जी ने रिसाय पूछा ।

नही , नही प्यारी !

तो क्या मेरे मुख में भी काला कोई धब्बा ?

नही , श्याम सुन्दर डर गये …ये तो मेरी बात का गलत अर्थ हो गया ।

अद्भुत झाँकी थी ये …तुरन्त श्याम सुन्दर प्रिया जी के चरणों में गिर गए थे ।

तब प्रिया जी ने अपने प्रीतम को उठाकर हृदय से लगा लिया था ।

अब समय न गवायें …और इस शरद की उजियारी रात्रि का सुख लूटा जाए….

ये कहते हुए श्याम सुन्दर ने मनोरथ किया और देखते ही देखते एक अत्यन्त सुन्दर रासमण्डल तैयार हो गया ।

सखियाँ भी खिलखिलाती हुई प्रकट हो गयीं और देखते ही देखते रास आरम्भ हो गया था ….मण्डल के चारों ओर सखियाँ खड़ी हो गयीं थीं ….एकाएक रस ने उन्मत्त रूप धारण कर लिया । इस रस केलि का दर्शन कर रही है हित सखी ….वो अपनी सखियों को इस रास का वर्णन करके सुना रही है ।


सखियों देखो !

आज श्रीराधिका रसिकवर श्यामसुन्दर के साथ रासमंडल में कितनी सुन्दर लग रही हैं !

चारों ओर सखियाँ हैं …मध्य में श्यामांग प्रीतम और चम्पक वरनी प्रिया जी । कितनी शोभायमान लग रही हैं ।

कैसे लग रहे हैं दोनों ? सखियाँ पूछती हैं ।

हित सखी कहती है …ऐसे लग रहे हैं ….जैसे – बादल और दामिनी एक संग सुशोभित हों । और स्वर्ण में सुन्दर मर्कटमणि जड़ी हो ।

हे सखियों ! आज की रस केलि में दोनों रास रसिक तान द्वारा राग रागिनी के गायन से आनन्द मत्त हैं …इस रस केलि को देखकर शरद और चन्द्रमा भी थकित हो रहे हैं …इस अति आनन्द रस को ये झेल नही पा रहे हैं । हित सखी आनन्द रस में डूब गयी है और बोलती है …इस अद्भुत रस केलि के द्वारा युगल सरकार ने मदन के मद को दूर कर दिया है । नृत्य की भाव भंगिमा से सकल विश्व में ये रस का संचार कर रहे हैं । हित सखी भी आनन्द सिंधु में हिलोरें लेने लगी थी ।


पागलबाबा इसके बाद कुछ नही बोले ….वो मौन हो गये थे ।

गौरांगी ने फिर इसी पद का गायन अन्तिम में किया था ।

“श्याम संग राधिका रासमण्डल बनी”

शेष चर्चा कल –

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