!! राधा बाग में -“श्रीहित चौरासी” !!
( रस लम्पट – “सुन्दर पुलिन सुभग सुख दायक” )
गतांक से आगे –
प्रेम विह्वल , आनन्द में निमग्न ।
इनके शिथिल पाद-विन्यास । रस में ही डूबे हुये ये अनादि दम्पति । रस लम्पट ये नव किशोर और नव किशोरी । ये आनन्द घन जब बरसता है ना ….तब जो होता है उस रसोन्माद की हम कल्पना भी नही कर सकते ।
इन रसयुगल की ये रूप माधुरी , अजी , सखियों के नेत्र ही देख सकते हैं इन्हें । दृष्टि का ही तो भेद है …अहंकार शून्य ये सखियाँ जब चिदविलास का दर्शन करती हैं …तो उन्हें प्रेम के सिवाय और कुछ दिखाई नही देता ।
फिर चारों ओर घनीभूत रस का ही विस्तार होता जाता है …वो रस सबको अपने में समेट लेता है …सब डूब जाते हैं ….और जो डूब जाता है वो बोल कहाँ पाता है । यही है रस लम्पट इन युगल की नित्य लीला । बस अहं शून्य सखियों की दृष्टि पा लो । फिर तो रस ही रस में डूबे मत्त फिरोगे ।
सुन्दर पुलिन सुभग सुख दायक ।
नव नव घन अनुराग परस्पर , खेलत कुँवरि नागरी नायक ।।
शीतल हंससुता रस बीचिनु , परसि पवन सीकर मृदु वरषत ।
वर मन्दार कमल चंपक कुल , सौरभ सरस मिथुन मन हरषत ।।
सकल सुधंग विलास परावधि , नाँचत नवल मिले सुर गावत ।
मृगज मयूर मराल भँवर पिक , अद्भुत कोटि मदन सिर नावत ।।
निर्मित कुसुम सैंन मधु पूरित , भाजन कनक निकुंज विराजत ।
रजनीमुख सुखराशि परस्पर , सुरत समर दोउ दल साजत ।।
विटकुल नृपति किशोरी कर धृत, बुधि बल नीवी बंधन मोचत ।
नेति नेति वचनामृत बोलत , प्रणय कोप प्रीतम नही सोचत ।।
श्रीहित हरिवंश रसिक ललितादिक , लता भवन रंध्रनि अवलोकत ।
अनुपम सुख भर भरित विवस असु , आनन्द वारि कंठ दृग रोकत ।72 ।
सुन्दर पुलिन सुभग सुख दायक ……….
गौरांगी ने सुमधुर स्वर में गायन किया ।
राधा बाग का समस्त रसिक समाज इस गायन में सम्मिलित हुआ था ।
इसके बाद इस पद का ध्यान डूब कर बाबा जी ने सबको कराया ।
!! ध्यान !!
रात्रि की सुन्दर वेला है …यमुना का पुलिन है …चन्द्रमा पूर्ण खिला है …उसका बिम्ब यमुना में पड़ता है तो छटा अलग ही दीख रही है । शीतल मन्द सुगन्ध वायु बह रही है । पुष्पों की भरमार है …कोई लता ऐसी नही जो पुष्पों से रहित हो । यमुना के किनारे कमल खिले हैं …अनगिनत कमल हैं …उनमें से सुगन्ध की बयार चल रही है ।
यमुना के अत्यन्त निकट एक कुँज है …ललित लता भवन कुँज । उसी कुँज कुसुम शैया में विराजे हैं युगल वर । सखियाँ अभी भी हैं …वो कुँज से बाहर जाने का आज नाम नही ले रहीं । युगलवर सखियों से कहते हैं …..चलो तो , यमुना पुलिन की शोभा देखें ! ये सुनते ही सखियाँ आनंदित हो जाती हैं ….और युगल वर कुँज से निकल यमुना पुलिन में आकर खड़े हो जाते हैं ।
अकंप है यमुना जल ….उसमें अपना बिम्ब देख रहे हैं युगल । और चमत्कृत सखियाँ तब हो गयीं जब चन्द्र भी दोनों की होड़ में आजाता है । पर कहाँ युगलमुख चन्द्र और कहाँ ये बेचारा चन्द्र !
कुछ देर बीत जाने पर दो हंस हंसिनी के जोड़े यमुना में दिखाई दिये ….श्रीजी ने उन्हें अपने पास बुलाया ….वो प्रसन्नता में भरकर दौड़े हुए आये …पर श्रीजी के हाथों से ये कुछ खाना चाहते हैं …तब मुस्कुराकर करुणामई अपनी माला तोड़ देती हैं और उसके मोती हंसिनी को खिलाती हैं …सखियाँ इन हंसिनी की भाग्य को सराहती हैं । प्यारी जू ! हंस दुखी है …उसे भी मोती चुगाओ । श्रीजी ने देखा हंस वास्तव में दुखी था …उसको श्रीजी ने मोती नही चुगाया था …तब किशोरी जी ने अपने हाथों में मोती लेकर उसको दिखाया और अपने पास बुलाया …..वो तो मटकता हुआ , आनन्द में फूला हुआ किशोरी जी के पास आकर मोती चुगने लगा । ये देखकर सखियाँ श्रीजी की करुणा की प्रशंसा करने लगीं ….और आनंदित हो गयीं ।
हित सखी अपनी सखियों को इन रस लम्पट की इन्हीं रस केलि का वर्णन करके बता रही हैं ।
देखो सखी !
यमुना पुलिन में आज ये इस सुन्दर रात्रि में चन्द्रमा की पूर्णता में कैसे विहार कर रहे हैं ।
इस समय वायु भी यमुना का स्पर्श करके बह रहा है ….इसलिए शीतल है पवन भी । वो यमुना जल से जल के छोटे छोटे कणों को लेकर श्यामा श्याम के ऊपर जो वर्षा रहा है …ये कितना सुन्दर लग रहा है ना । हित सखी बता रही है ।
अब तो दोनों पुलिन से होते हुए एक मंडलाकार भूमि में पहुँच गये हैं ….वहाँ जाकर हमारे श्याम सुन्दर श्यामा जू के कर पकड़कर नाचने लगे हैं …..देखो तो इस झाँकी को ।
हित सखी कहती है – इन का नृत्य देखकर , और नृत्य में किए गये भावभंगिमा से , मृग के बालक , मोर , हंस , भ्रमर , कोकिल आदि तो हैं हीं ….करोड़ों अद्भुत काम देव भी सिर झुकाकर खड़े हो गए हैं …..सखी ! इनकी रूप माधुरी के आगे सब फीके हैं , कामदेव भी लज्जित है तो और की बात ही क्या करें ।
ऐ हित सखी ! हमें समझा ना ! कैसे लज्जित हो गये ये सब ?
तब हित सखी कहती है ….सखियों ! प्रिया जी के नेत्रों को देखकर हिरण लज्जित हो गये हैं ।
इनके नृत्य को देखकर मोर लज्जित हो गये हैं । इनकी चाल को देखकर हंस लज्जित हो गये । मधुर कण्ठ के गायन को सुनकर कोकिला लज्जित हो गये हैं ….और युगल की रस लम्पटता देखकर कामदेव लज्जित हो गया है । हित सखी ने अच्छे से समझाया था ।
अब दोनों कुँज में प्रवेश कर रहे हैं ….कुँज सुमन से भरा हुआ है ….सुमन की सुन्दर शैया सजी हुयी है । मधुर रसासव से भरे पात्र हैं , जो युगलवर के लिए हैं । सुमन की शैया में विराजमान हो गये हैं अब दोनों …..रस लंपट दम्पति अब एक होने के प्रयास में लग गए हैं । देखो तो ! हित सखी कहती है – कैसे श्याम सुन्दर बुद्धि बल से पहले प्रिया जी के हाथों को अपने हाथों में लेते हैं …फिर नीवि बन्धन खोलने का प्रयास करते हैं …..प्रिया जी , ना , ना , कहकर उनके हाथों को हटा रही हैं । किन्तु ना , ना वचनामृत सुनकर भी , ये रिसाय जायेंगी …ये जानते हुए भी श्याम सुन्दर अपने प्रयास में संलग्न हैं ।
सखियाँ अब बाहर जा चुकी हैं ..सब सखियाँ कुँज रंध्र से निहार रही हैं भीतर कुँज की लीलाओं को और आनन्द मना रही हैं ।
हित सखी कहती है …सब गदगद हैं ……अब तो वाणी भी अवरुद्ध हो गयी इन रस लंपटों की केलि को देखकर । कहते ही नही बन रहा है ….रस में सब डूब गए हैं । युगल ही नही सखियाँ भी, अरे ! पूरा श्रीवृन्दावन ही ।
पागलबाबा “राधा राधा राधा” पुकारते हुए मूर्छित हो गये हैं । शाश्वत जल का छींटा दे रहा है ।
कुछ देर बाद ये उठे ….तो गौरांगी ने इसी पद का फिर गायन किया था ।
सुंदर पुलिन सुभग सुख दायक ……..
शेष चर्चा कल –


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