जय श्री राधे राधे जी
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सिन्दूरीशिला(गोवर्धन)
हम सब यह तो जानते हैं कि विवाहित स्त्री मांग में सिन्दूर लगाती है लेकिन यहाँ एक स्थान पर कुँआरी लड़कियां भी सिन्दूर लगाती हैं, है न अचरज की बात! लेकिन सत्य है। पूरे विश्व से यहां लड़कियां सिन्दूर लगाने आती हैं।
गोवर्धन परिक्रमा मार्ग में सिन्दूरी शिला मथुरा के गोवर्धन पर्वत पर परिक्रमा मार्ग में पड़ने वाले प्रत्येक स्थान से भगवान श्री कृष्ण की कथाएँ जुड़ी हैं। मार्ग में एक विशालकाय शिला पड़ती है। यह कोई साधारण शिला नहीं है। इसका नाम सिन्दूरी शिला है। यह कृष्णकालीन शिला है।
राधा को भरनी थी माँग, शिला को बनाया सिन्दूरी-:
पद्म पुराण में कहा गया है कि समस्त गोपियों में राधाजी, श्री कृष्ण को सर्वाधिक प्रिय हैं। वे उनकी प्राणवल्लभा हैं। गोवर्धन मार्ग पर श्रीकृष्ण के साथ श्री राधिका अपनी सखियों के साथ रास रचाने के लिए आतुर थीं। वे बरसाना से सोलह श्रृंगार करके कन्हैया के पास आई।
राधा रानी बोलीं, प्रभु बताओ तो मेरा श्रृंगार कैसा लग रहा है।
भगवान ने कहा, “हे राधे! तुम अपनी मांग में सिन्दूर भरकर नहीं आई हो।”
राधा जी ने कहा – “हे प्रभु! अब मैं बरसाना वापस जाऊँगी तो लौट कर आने में विलम्ब हो जायेगा। ऐसे में मांग कैसे भरूं?”
श्रीकृष्ण ने राधाजी से कहा – “हे राधे! तुम जिस शिला को श्री कृष्णा शरणम् नमः कहकर रगड़ोगी, वही शिला सिन्दूरी हो जाएगी।”
ऐसा ही हुआ। राधाजी ने जिस शिला को रगड़कर अपनी मांग भरी, उस शिला का नाम सिन्दूरी शिला पड़ गया।
सिन्दूरी शिला को आज भी घिसते हैं तो सिन्दूर निकलता है। इसी सिन्दूर को सुहागिनें अपनी मांग में भरती हैं। कुंआरी लड़कियां बिन्दी के रूप में लगाती हैं। ऐसा माना जाता है कि सिन्दूर लगाने से महिला अखंड सौभाग्यवती हो जाती है। कुँआरी लड़कियां इस सिन्दूर की बिंदी अपने माथे पर इसलिए लगाती हैं कि राधा और कृष्ण के प्रेम का प्रतीक यह सिन्दूर आने वाले जीवन को खुशियों से भर दे।
जय श्री कृष्ण जी।
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