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August 2, 2025 9:09 pm

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!! उद्धव प्रसंग !!-{ प्रेम का वो पागलपन – भ्रमरगीत }भाग-16 : Niru Ashra

!! उद्धव प्रसंग !!-{ प्रेम का वो पागलपन – भ्रमरगीत }भाग-16 : Niru Ashra

!! उद्धव प्रसंग !!

{ प्रेम का वो पागलपन – भ्रमरगीत }
भाग-16

यदनुचरित लीला कर्णपीयूष विप्रुट् ।
( श्रीमद्भागवत )

उद्धव जड़वत् खड़े हैं…

सामने हजारों गोपिकाएँ हैं… और मध्य में वृषभान दुलारी श्री राधा रानी हैं ।

सब के नेत्रों से अश्रु धार बह रहे हैं ।

ओह !… बारिश शुरू हो गयी ।

अच्छा हुआ अब हमारे आँसू नही दीखेंगे… अच्छा हुआ ।

अब हम जी भर के रो सकेंगी… एक सखी ने कहा ।

पर श्री राधा की भावमई स्थिति अभी भी जस की तस है ।

बारिश में भींग रही हैं ये गोपिकाएँ…

एक सखी ने कहा… एक वो वर्षा थी… और एक ये है ।

उस वर्षा में जल के साथ रस भी बरसता था… क्यों कि कृष्ण साथ में था… पर इस वर्षा में…

“आग लगे इस सावन को”

उद्धव ये सब देख सुनकर… मुग्ध हैं ।

अपने आपको भूलते जा रहे हैं… उनका ज्ञान गलता जा रहा है ।

उद्धव के पास है बुद्धि… पर इन गोपियों के पास हृदय है… और वह हृदय धड़कता है…और मात्र अपने प्रियतम के लिए धड़कता है ।

बुद्धि से… व्याख्यान होते हैं… पर हृदय से “गीत” प्रकट होते हैं ।

ये गीत है… व्याख्यान की अपेक्षा गीत ज्यादा करीब है हमारे ।

इसलिये तो कहते, “हर दिल जो प्यार करेगा… वो गाना गायेगा” ।


गुन् गुन् गुन्…

श्री राधा के कानों में आकर उस भ्रमर ने गुनगुनाना फिर शुरू कर दिया था ।

हे श्री राधे ! कम से कम अपने प्रियतम का सन्देश तो सुन लो !

मानो श्री राधा को लग रहा है… कि भ्रमर ने “गुन् गुन्” के बहाने यही कहा था ।

ना !… मुझे कुछ नही सुनना… उस कपटी की बातें तो अब मैं बिल्कुल नही सुनूंगी… ।

और भ्रमर ! सुन…तुझको भी मैं एक बात कहे देती हूँ… छोड़ दे उसको… उस कपटी का संग मत कर…तुझे कुछ नही मिलने वाला ।

देख ! हम भी पहले तेरी तरह गुन् गुन् करती हुयीं… इधर से उधर… उत्साह से भरी हुयी… चलती थीं… पर आज देख !

सखी ! मत कर यासों प्रीत, नही पछतावेगी !

मन कपटी मुख मीठो बोले, कली कली रस चाखत डोले,
ऐसे सों कर प्रीत कहा फल पावेगी ।

सखी ! मत कर यासों प्रीत, नही पछतावेगी !

पर वह भ्रमर श्री राधा की बातों को सुन ही नही रहा…

मेरी कही तू चित न धरत है, यासों मोहि जान परत है,
तू या सुंदर तन रोग लगावेगी ।

सखी ! मत कर यासों प्रीत नही पछतावेगी ।

मत कर ये प्रेम करने लायक ही नही है… इससे जिसने भी प्रेम किया… वो बर्बाद ही हुआ है ।

ये प्रेम करने वालों से… अच्छा व्यवहार कहाँ करता है ?

राजा बलि के पास वामन बनकर गया था… पर जब दान लेने का समय आया विराट बन गया… बाली को राम के रूप में छुपकर बाण मारा… और तो और हे भ्रमर ! बेचारी सूर्पनखा आई थी… उसके तो नाक कान ही काट दिए ।

क्यों ? क्या अपराध था उसका… बेचारी उस सूर्पनखा का ?

यही तो अपराध था कि… अपने प्रेम का इज़हार करने गयी थी… पर इसने क्या किया… बेचारी स्त्री को कुरूप बना दिया ।

नही… ये स्वयं कपटी है… और इसकी सारी लीलाएं कपटपूर्ण हैं ।

उद्धव की आँखें फ़टी की फ़टी रह गयीं ये सब सुनकर ।

ओह ! मैं तो सोचता था कि… ये कृष्ण को मात्र एक सुंदर लड़का ही मानती हैं… पर इनको तो सब पता है कि… कृष्ण ही राम बने… और कृष्ण ही वामन बने… ये साधारण नही हैं ।

उद्धव गम्भीरता से सुनने लगे थे इन गोपियों के गीत को अब ।

हे भ्रमर !… हमें ये सब जो तू सुना रहा है ना !

कि कृष्ण ऐसा है… कि कृष्ण वैसा है…

अरे ! हमें मत सुना… हमें तो सब पता ही है ।

जब तेरे मधुपति को कटि में काछनी बाँधनी भी नही आती थी…

तब से हम जानती हैं… ।

हमें क्या सुना रहे हो… उसकी कथा !

हाँ… तुम्हें सुनाना ही है ना… तो जाओ… मथुरा की उन ललनाओं को जाकर सुनाओ… वो खुश होंगी… वो खुश होकर तुम्हें कुछ पुरस्कार भी देंगी… जाओ !

पर यहाँ तुम्हें कुछ नही मिलेगा… जाओ ।

श्री राधा इतना कहकर चुप हो गयीं ।

वो भ्रमर उड़ गया… राधा देखती रहीं… वो गया ।


श्री राधा कुछ देर शान्त थीं… पर ये क्या ?

वो भ्रमर फिर आगया था ।

अरे ! जा ना ! फिर क्यों लौट आया ?

हमने कह दिया ना… हमें नही सुननी… उस कपटी की बातें…

श्री राधा ने भावावेश में कहा ।

कथा सुना रहा है तू हमें उस कृष्ण की… “गुन् गुन्” करके ?

अरे ! तुझे क्या पता इसकी कथा बर्बाद ही करती है ।

सबको बर्बाद किया है… श्री राधा हँसी… अगर बर्बाद होना है तो इसकी कथा सुनो… फिर कथा सुनकर तुम्हें प्रेम होगा इससे… बस… जैसे ही प्रेम हुआ… समझो तुम गए इस संसार से ।

फिर किसी काम के रहोगे ही नही… ।

फिर हमारी तरह रोना, सिसकना… भूख खत्म हो जायेगी… नींद तुम्हारे पास आएगी ही नही… तुम्हारा ये सुंदर शरीर… काला पड़ जाएगा… ।

इसलिये भ्रमर ! मेरी बात मान… ये सब छोड़ दे तू… ये उस कृष्ण की कहानी इत्यादि सुनाना ..छोड़…।

मुझे हँसी आती है… तू हमारे सामने कृष्ण की कहानी सुना रहा है !

श्री राधा इतना कहकर हँसीं…

अच्छा ! सुन सुन ! एक बात सुन… हे कृष्ण के सखा ! कृष्ण के इस प्रेमपूर्ण रस का कोई एक बून्द भी पी लेता है ना… तो वह घर वार छोड़ देता है… बाबा जी बन जाता है… पत्नी रोती रह जाती है… बच्चे पिता जी ! पिता जी ! कहते रह जाते हैं… माता पिता आँसू बहाते रहते हैं… पर जिसने कृष्ण प्रेम रस की एक बून्द भी पी ली… वो इस जगत के किसी काम नही रहता ।

क्या मतलब ? जोर से बोले उद्धव !

मतलब जानना है भ्रमर तुझे ? तो सुन ! श्री राधा ने उत्तर दिया ।

भ्रमर ! जो एक बून्द भी पी लेता है… कृष्ण प्रेम रस का…उसकी ये स्थिति होती है…तो तू हमारी स्थिति की कल्पना कर कि… हमारे अंदर क्या बीत रही होगी… !

हमने तो एक बून्द ही नही पी है… हमने तो उस “कृष्ण प्रेम रस” का पूरा का पूरा घड़ा ही पी लिया है…तो सोच भ्रमर ! हम पर क्या बीत रही होगी !

हमारे अंदर कैसी आग लग रही होगी !… हम हर पल जल रही हैं… हम हर पल कृष्ण के बिना मर रही हैं… हम क्या करें ?

हे भ्रमर ! तू मथुरा जा और अपने स्वामी से कह कि… अब और हम ये सब नही चाहती… हम तेरे स्वामी को भूलना चाहती हैं ।

पर क्या करें ? हम उसे भूल नही पा रही…

भ्रमर ! तेरे पास कोई उपाय हो तो बता ना… हम कैसे भूलें उसे ।

इतना कहते हुए श्री राधा जी मूर्छित हो गयीं थीं…

भ्रमर उड़ कर चला गया…


साधकों ! सर्वत्र उसी का दीखना…चाहे भ्रमर हो… !

अपने प्रियतम में इतने खो गए कि… आत्मविस्मृति ही हो गयी ।

ये प्रेम की उच्चावस्था है… ।

एक दो मेरे युवा साधक है…जो दिल्ली और पंजाब में पढ़ते हैं… उन्होंने मुझ से कहा… ऐसा प्रेम आज कल कहाँ ?

हाँ… यही है प्रेम की ऊँचाई… जहाँ देना ही देना है… ।

अपना सब कुछ दान… सब कुछ ।

मन भी अब अपना नही…बुद्धि भी अपनी नही… चित्त तो प्रियतममय हो ही गया… और अहं का विसर्जन प्रियतम में ही है ।

यही है इस सच्चे प्रेम की एक झाँकी ।

शेष चर्चा कल…

हमन हैं इश्क़ मस्ताना, हमन को होशियारी क्या ?

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