!! राधा बाग में – “श्रीहित चौरासी” !!
( गुणआगरी-श्रीराधा – “वृषभानु नन्दिनी मधुर गावै” )
गतांक से आगे –
श्रीराधा तो नित्य गुण आगरी हैं …उनमें समस्त गुण विद्यमान हैं …या कहें ये समस्त गुणों की खान हैं …नही नहीं “समस्त” इन्हीं से प्रकट होते हैं ….ये प्रवीणा हैं …ये सकल कला कोविदा हैं । हाँ हाँ , ये नृत्य विशारदा भी हैं । ये कहते हुए मुझे हंसी भी आरही है कि मैं , श्रीराधारानी के लिए ये सब क्या कह रहा हूँ ! अरे ये तो ! गति को भी गति प्रदान करने वाली हैं …विद्या की देवी , सुर की देवी सरस्वती को भी स्वर प्रदान करने वाली हैं। ये श्रीराधा । नही नही ..ये भी सही नही हुआ …क्यों की ब्रह्म जिनके सामने सिर झुकाकर खड़ा हो , ब्रह्म को जो विद्या प्रदान करने वाली हों …उन श्रीराधा रानी के विषय में क्या कहें !
ये ब्रह्म को नृत्य सिखाती हैं , हाँ , ये श्याम सुन्दर को नचाती हैं ….भाव भंगिमा कैसे क्या , पद संचालन या ग्रीवा का हलन …सब सिखाती हैं ये । हृदय की रुचि अनुसार प्रीति से सनी ये भानु दुलारी अपने प्रीतम को नचाती हैं ।
अजी ! कहाँ तक कहें इनके गुण के विषय में ! रसिक जन तो कहते हैं …स्वयं इनके प्रीतम श्याम सुन्दर भी इनके गुणों का बखान नही कर सकते । फिर और कौन की कहें !
वृषभानु नन्दिनी मधुर कल गावै ।
विकट औघर तान चर्चरी ताल सौं , नन्दनन्दन मनसि मोद उपजावै ।।
प्रथम मज्जन चारु चीर कज्जल तिलक , श्रवण कुण्डल बदन चंदनि लजावै ।
सुभग नक बेसरी रतन हाटक जरी , अधर बन्धूक दसन कुंद चमकावै ।।
बलय कंकन चारु उरसि राजत हारू , कटिव किंकिणी चरन नूपुर बजावै ।
हंस कल गामिनी मथत मद कामिनी , नखन मदयंतिका रंग रुचि द्यावै । ।
निर्त-सागर रभसि रहसि नागर नवल , चंद चाली विविध भेदनि जनावै ।
कोक विद्या विदित भाइ अभिनय निपुन , भ्रू विलासिनी मकरकेतनि नचावै ।।
निविड़ कानन भवन बाहु रंजित रवन , सरस आलाप सुख पुंज वरषावै ।
उभय संगम सिन्धु सुरत पूषणबन्धु , द्रवत मकरंद हरिवंश अलि पावै । 81 !
वृषभानु नन्दिनी मधुर कल गावै ……
गौरांगी ने सुमधुर स्वर में इस पद का गायन किया ….पागलबाबा इस पद को सुनकर मुग्ध हो गये थे …वो देह भान भी भूल गए थे ।
अब बाबा ध्यान लगायेंगे ….सब रसिकों ने वाणी जी रख दी और अपने नेत्र बन्द कर लिये ।
!! ध्यान !!
प्रभात की सुन्दर वेला है …श्रीवृन्दावन दिव्य और चिन्मय रूप से अपनी छटा बिखेर रहा है ।
यमुना कल कल करती हुई बह रही हैं ….तट में कमलों की भरमार है….जो खिले हुए हैं …उसमें से सुगन्ध की वयार चल पड़ी है …..मोर प्रभात के समय पंखों को फैलाये आनंदित हैं …क्यों की इन्हें स्नान करते हुए …मेघ श्याम के दर्शन हो गये हैं ….वो मेघ तो नभ में ही दीखते थे …किन्तु ये तो अवनी पर !! ओह ! मोर नृत्य करने लगे थे । प्रिया जी भी स्नान करके निकली हैं ..सखियों ने उन्हें स्नान कराया है …..पक्षी गण मुग्ध हो गये हैं प्रिया जी की रूप माधुरी देखकर ….बिखरी केश राशि , गौर अंग , सुवर्ण की तरह चमकता श्रीअंग ..अजी ! पूरा श्रीवन ही मुग्ध हो उठा था । इस तरह अब दोनों किशोर किशोरी शृंगार कुँज में आये ….उनका शृंगार सखियों ने किया ….फिर एक दिव्य सिंहासन में विराजमान कर दिया ।
कुछ सुनाओ प्यारे !
आज पता नही क्या हो गया प्रिया जी को इतनी सखियों की सभा में कह दिया …कुछ सुनाओ प्यारे ! अब क्या सुनायें ? प्रिया जी के सामने सुनायें ? सत्य ये है की बाँसुरी बजाना भी इन्हीं ने सिखाया है लाल जू को ….कुछ नही बोले श्याम सुन्दर । प्रिया जी ने फिर कहा – प्यारे ! कुछ तो सुनाओ ! क्या करते बेचारे , अब सुनाने लगे हैं ….क्या सुनायें ! वही बाँसुरी सुनाई । प्रिया जी ने वाह वाह करी । किन्तु रसिक शेखर अब मानने वाले नही हैं …..”प्रिया जी ! अब आप”। बड़े प्रेम से बोले थे । अरे नहीं ! प्रिया जी ने बात को टाल दिया । पर ये भी रसिक शिरोमणि हैं …रस को समझते हैं ….बोले – नही , आपको तो सुनाना ही होगा , कुछ रस बरसाना ही होगा , हम सब प्यासे हैं प्यारी जू ! लीजिये अब श्याम सुन्दर ने हाथ भी जोड़ लिये ।
ठीक है ……
जो रस बरसा उसका वर्णन हित सखी अपनी सखियों से कर रही हैं ।
आहा !
सखियों ! क्या सुन्दर गा रही हैं हमारी लाड़ली ! अद्भुत , अनुपम ।
आहा !
इनके गान से आनन्द को भी आनन्द देने वाले इनके प्रीतम को अद्भुत आनन्द मिल रहा है ।
हित सखी कहती हैं …मेरी लाड़ली ने पहले तो स्नान किया ….देखो , सुन्दर वस्त्र धारण किये….नेत्रों में कज्जल लगाया , मस्तक पर तिलक , कानों में कुण्डल पहनें ।
देखो तो इस समय हमारी प्यारी का मुखारविंद अनेकों चन्द्रमा को भी लज्जित कर रहा है ।
नासिका में रत्न मणि बेसर कितनी सुन्दर लग रही है ….ये अत्यन्त सुन्दर लग रही है ।
दंत पंक्ति कुंद कली के समान चमक रहे हैं …क्या रूप माधुरी बरस रही है ।
हित सखी कुछ देर नही बोलती …वो मौन है । वो इस रूप को अपने हृदय में बसा रही है ।
आहा ! गायन करते हुए अपने हाथों को जैसे घुमा रही हैं ….इनके गोरे हाथों में कंकन कितने सुन्दर लग रहे हैं ! वक्षस्थल में हारावलि उसकी तो शोभा ही अलग है । कटि में किंकिणी , श्रीचरणों में नूपुर …उफ़ ! गति भी ऐसी , हंस के समान । रूप , लावण्य , यौवन से मत्त मेरी लाड़ली सच में आज बहुत सुन्दर लग रही हैं । हित सखी आनन्द में भरकर कहती है ।
प्यारी जू ! गायन हो गया …अब नृत्य ! श्याम सुन्दर ने फिर आग्रह किया ।
पर किशोरी जी आज प्रसन्न हैं …..इसलिए वो भी नृत्य के लिए उठ गयीं ।
अब नृत्य देखकर तो सब विमुग्ध हो गये । किसी को कुछ भान नही , श्याम सुन्दर चित्रवत हैं ….ये कैसा अद्भुत नृत्य था ।
हित सखी कहती है ….लाड़ली का नृत्य क्या द्रुत गति से हो रहा है ……मानों नृत्य का समुद्र अत्यंत वेग से तरंगायित हो गया हो । नृत्य की गतियाँ अभूतपूर्व और अद्वितीय हैं । इनकी भृकुटी को नचाने की क्रिया तो इतनी मोहक है कि …कामदेव मूर्छित हो गया है । सखियों ! ये अब क्या हो रहा है ! प्रिया जी ने नाचते नाचते अपने बाहों का हार श्याम सुन्दर के कण्ठ में डाल दिये हैं । वो उच्च स्वर में आलाप ले रही हैं …अपने प्रीतम को रस में डुबो रही हैं ….दोनों रति रूप होकर समुद्र के वेग से बहने लगे हैं …तभी “सुरत रस” रूपी कमल पुष्प खिल गया है …हे सखियों उस सुरत सुख के कमल से मकरंद बहने लगा है …जिसका पान करो …ये हमारा सौभाग्य है कि वो मकरंद हमारे ही सामने बह रहा है …नेत्रों के माध्यम से पियो । पीयो । पियो । ये कहते हुए प्रेम में मत्त , प्रमत्त और उन्मत्त हो उठी थी ये हित सखी , इसके साथ सभी इसी दशा में बह रहे थे ।
पागलबाबा कुछ नही बोल रहे …..वो मौन हैं …..उनकी आँखें रस में चढ़ी हुई हैं ।
गौरांगी ने अन्तिम में इसी पद का फिर से गान किया था ।
वृषभानु नन्दिनी मधुर कल गावै ……
शेष चर्चा कल –


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