!! राधा बाग में – “श्रीहित चौरासी” !!
( फिर रूठीं प्रिया – “छाँड़िदै मानिनी मान मन धरिबौ” )
गतांक से आगे –
हमारे रसिक जन कहते हैं – प्रेम की चाल अबुझ है । समझ में ही नही आता कि ये किस चाल से , किस ओर जायेगा । इसलिये प्रेम में भविष्यवाणी हो नही सकती । टेढ़ी मेढ़ी चाल है इस प्रेम की । इसकी हर क्रिया में प्रेम को बढ़ाना ही उद्देश्य होता है । अब रूठना क्यों ? मान करना क्यों ? क्यों की प्रेम एक स्थिति में रह नही सकता । प्रेम या तो बढ़ेगा या फिर घटते घटते खतम हो जाएगा । पर एक बात विलक्षण है इस प्रेम में ….इसमें पूर्णिमा नही है । पूर्ण ये कभी होता नही है ….या बढ़ेगा बढ़ता जाएगा …….
इस विलक्षण प्रेम में “मान” की स्थिति अत्यन्त दुखद है । राधा बाग में आज पागलबाबा बोले – एक बार मान कर गयीं श्रीराधा रानी तो श्याम सुन्दर ने दिन रात एक करके उन्हें मना तो लिया पर उनको बड़ा दुःख हुआ ….अभी भी दुःख ही था उनके मन में । तब श्रीराधिका जी ने उनसे कहा …अब तो मान गयी हूँ मैं , अब तो मान की बात को छोड़ दो । तब श्याम सुन्दर हाथ जोड़कर बोले – प्यारी जू ! अभी भी मेरा अंग काँप रहा है , मेरे अंग से स्वेद निकल रहा है …मुझे घबराहट अभी भी हो रही है । तब श्रीराधा जी ने श्याम सुन्दर को हृदय से लगा लिया था किन्तु श्याम सुन्दर बोले – ऐसे नही , आप कहो , आप मुझे वचन दो कि आज के बाद आप कभी मान नही करोगी ! तब प्रिया जी ने लालन के कपोल चूमते हुए कहा था ….ये सम्भव नही है । क्यों कि ये रूठना मनाना ये प्रेम रस की वृद्धि के लिए ही होता है ….प्यारे ! तो इस रस केलि का “मान” एक अभिन्न अंग है । ये कहते हुए प्रिया जी ने अपने अधरों को श्याम सुन्दर के अधरों में रखकर उन्हें शान्त किया था ।
बाबा कहते हैं – ये मान रति केलि विकाश के लिए है । इससे प्रेम बढ़ता है ।
अब गौरांगी श्रीहित चौरासी का पद गाती है …आज का पद संख्या है 83 …अब मात्र कल का ही दिन शेष बचा है । अपने मधुर कण्ठ से गौरांगी ने पद का गायन किया ।
छाँड़िदै मानिनी मान मन धरिबौ ।
प्रनत सुंदर सुघर प्राणबल्लभ नवल , वचन आधीन सौं इतौ कत करिबौ ।।
जपत हरि विवस तव नाम प्रतिपद विमल , मनसि तव ध्यान ते निमिष नहिं टरिबौ ।
घटति पलु पलु सुभग सरद की जामिनी , भामिनी सरस अनुराग दिसि ढ़रिबौ ।।
हौं जु कहति निजु बात सुनु मान सखि , सुमुख बिनु काज घन विरह दुःख भरिबौ ।
मिलत हरिवंश हित कुँज किसलय सयन , करत कल केलि सुख सिंधु में तरिबौ । 83 !
छाँड़िदै मानिनी मान मन धरिबौ ………..
पागलबाबा आज शान्त हैं …वो बाह्य जगत से आज अलग लग रहे हैं । उनका पूरा ध्यान लीला जगत में ही है …या कहें कि लीला जगत में ही पहुँचे हैं ।
बाबा अब ध्यान करायेंगे ।
!! ध्यान !!
श्रीवृन्दावन आज उमंग में था , सखियाँ भी बड़ी प्रसन्न थीं , वृक्ष लता सब प्रमुदित थे । पक्षी कलरव करके आनंदित हो रहे थे । रात्रि की वेला , यमुना तट विहार करके युगल सरकार कुँज में आए ….सुन्दर पुष्प दल शैया सखियों ने सजाई थी । उस सज्जा को देखकर प्यारे आनंदित हो रहे थे ….प्रिया जी बैठी हैं शैया में वो चाहती हैं कि लालन मेरी ओर देखें ….पर नही ….उनका ध्यान सुन्दर सजे हुए कुँज की ओर था ।
बस मान कर बैठीं प्रिया । कितना सुन्दर सजा है ना ये कुँज ! श्याम सुन्दर की इस बात का कोई उत्तर नही दिया प्रिया ने । ओह ! श्याम सुन्दर समझ गये कि अब तो मान कर बैठीं प्रिया जी । अब क्या ? वो हाथ जोड़ रहे हैं । वो बारम्बार चरण पकड़ रहे हैं …किन्तु कोई उपाय नही ।
हित सखी ने देखा तो उन्हें बड़ा दुःख हुआ । वो तुरन्त प्रिया जी के पास गयीं और हाथ जोड़कर बोलीं ….हे स्वामिनी ! आप मान करना छोड़ दें ।
हे मानिनी ! इस मान को छोड़ दो । देखो तो तुम्हारे प्रीतम कैसे दीन हीन हो गये हैं । वो तुम्हारे वचनों के आधीन हैं । तुम जो कहोगी वो मानेगे …फिर मान क्यों ? अब देखो ! श्याम सुन्दर को दिखाती है…हित सखी । वो देखो ! कैसे आपका ही ध्यान कर रहे हैं ….देखो ! कैसे आप के नाम का स्मरण करके वो विह्वल हो रहे हैं । हित सखी आज बस बोले जा रही है ।
ये रात्रि घटति जा रही है …..कहीं अनुराग घटे ना ! ये ध्यान रहे प्यारी जू !
आप इतना मान मत कीजिए ……प्यारे के प्रति कुछ तो विचारिये । इतना कहकर हित सखी अश्रु प्रवाहित करते हुए श्रीजी के चरणों में गिर गयी थी ।
पागलबाबा ध्यान में ही थे ……
गौरांगी ने बड़े प्रेम से फिर इसी पद का गायन किया ।
“छाँड़िदे मानिनी”
शेष कल चर्चा –


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