!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 80 !!
वो छलिया नन्द को ….
भाग 2
हम स्त्रियां रो रही हैं ……….बिलख रही हैं ……और तू हँस रहा है ……इतनी क्रूरता कैसे आयी तुझमे ? श्रीराधा बोल रही हैं ।
अच्छा ! अब समझीं मैं ………..दूत किसका है तू ?
उसी छलिया का ना ! वह भी निर्दयी है ……क्रूर है ……..कठोर, अत्यन्त कठोर है ।
क्या उसे पता नही है ……..कि हम उसके लिये रो रही हैं ……बिलख रही हैं ……..मधुप ! कुछ असर हुआ क्या ? नही हुआ ……ना ही होगा ………क्यों की कठोर हृदय है उसका ……..काले लोग ऐसे ही होते हैं ……पर श्याम तो बाहर का भी काला , भीतर का भी काला ……
सुन ! सुन ! फिर एकाएक बोल उठीं श्रीराधा –
अब बन्द कर उस काले की चर्चा….कोई नहि करेगा उसकी चर्चा….
न उसका कोई नाम लेगा…….न उसको कोई याद करेगा……
बस बहुत हो गया…….श्रीराधा रानी का उन्माद फिर बढ़ गया था ।
सब शान्त हो गए …..भ्रमर भी शान्त हो गया……..सुबकती रहीं कुछ देर श्रीराधा रानी……………..
फिर भ्रमर को देखनें लगीं …….कि वो कहीं चला तो नही गया !
पर भ्रमर भी पक्का था……..वो वहीं था, फिर आगया ।
अरी सखियों ! सुनो ! उस काले की करतूत !
.उठकर खड़ी हो गयीं सखियों के मध्य में, श्रीराधारानी ।
दूसरे को कष्ट देनें में, मारनें में , तड़फानें में ….उसे मजा आता है ।
सखियों ! तुम्हे नही पता ? तो सुनो –
राजा बलि के पास यही छलिया गया था वामन बनकर……जब दान माँगने गया …..तब बौना बना …..और जब दान लेनें की बारी आयी तो विराट बन गया …….और पता है ……बाँध दिया बेचारे बलि को ।
श्रीराधारानी फिर आगे कहती हैं – बाली ……वो किष्किन्धा का राजा बाली …..उसे मार दिया…….कुछ नही बिगाड़ा था इसका उस बाली नें ………..फिर भी मार दिया ………हँसी श्रीराधा रानी ……..इसे मजा आता है ……किसी को भी अकारण मारनें में …….हट्ट !
उद्धव स्तब्ध हैं ये सब सुनकर ……….मैं इनको गाँव की गंवारन समझता था ………पर ये तो सब जानती हैं ……इन्हें तो ये भी पता है कि …कृष्ण ही वामन हैं ……..और कृष्ण ही राम भी बने थे !
उद्धव देखते हैं श्रीराधा रानी को …….वो और उन्मादिनी हो उठी थीं –
“और उस बेचारी स्त्री को…….सूर्पनखा को…….क्या किया इसनें !
क्रमशः …
शेष चरित्र कल –


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