*( यशोदा मैया )*
गतांक से आगे –
अर्धरात्रि बीत चुकी है । अब नन्दराय ने विचार किया ये समय उचित है ….इस समय मार्ग में मुझे कोई नही मिलेगा ….ऐसा विचार कर उन्होंने गाड़ी को चलाया । बेचारे वृषभ ! रोते हुए आगे बढ़ रहे हैं वो भी । उन्हें बृज भूमि आज काटने को दौड़ रही है । बृजभूमि का अणु-परमाणु पूछ रहा है, चीख चीख कर पूछ रहा है कि – हे ब्रजराज ! कहाँ है हमारा कन्हैया ? कहाँ छोड़ आए उसे ? और उसे छोड़कर तुम अभी तक जीवित हो ?
यही सोचते ब्रजराज पहुँच गये हैं महल में ….उनका हृदय काँप रहा है …..क्या वो ममता की मारी यशोदा सो रही होगी ? अच्छा होता कि वो सोई हो ….किन्तु क्या वो सो सकती है अपने लाला के बिना ? ये सोच भी कैसे लिया था ब्रजराज ने ….अब देखना, ये सौ वर्षों तक नही सोयेगी । रो रो कर अपनी आँखें फोड़ लेगी किन्तु सोयेगी नही , खायेगी भी नही ।
यशोदा ! तू मर जाएगी !
ब्रजराज चिल्लाकर कर कहते तो ये कहती …मर जाने दो मुझे । तब ब्रजराज रोते हुये कहते …तेरा लाला आयेगा …तुझ से मिलने आयेगा और जब वो देखेगा कि मेरी मैया तो अब नही रही ….तब उसे कैसा लगेगा ?
ओह !
ये सुनते ही यशोदा मैया एक रोटी ब्रज राज के हाथ से लेती और पागलों की तरह खा लेती ….फिर कहती अब नही मरूँगी । मेरे लाला को अच्छा नही लगेगा ये सोचकर यशोदा मैया दस बीस दिन में जैसे तैसे एक रोटी खा लेती । ये है ही ममता की मारी ।
अब नन्दमहल में प्रवेश किया ब्रजराज ने ।
द्वारपालों ने द्वार खोल दिया था ।
बृजरानी ! बृजरानी ! देख तेरा लाला ! तेरा कन्हैया आ गया । एक दासी चिल्लाई ।
दधि मन्थन कर रही थीं यशोदा । अन्य सब गोपियाँ मूर्छित पड़ीं थीं ।
यशोदा मैया ने जब सुना उसका लाला आ गया । दधि मन्थन छोड़कर वो बाहर दौड़ी । वो गिर भी गयी थी दो बार …उसको चोट भी आयी थी …किन्तु किसे परवाह यहाँ इन मामूली से चोटों की । यहाँ तो ज़िन्दगी दांव पे लगी है ।
मैया ने देखा …..वो रुक गयी । दास दासियाँ गाड़ी के आस पास खड़े हैं …गाड़ी चालक स्वयं ब्रजराज ? मैया के कदम रुक गये हैं । वो देख रही हैं …ब्रजराज ने भी अपनी भार्या को देखा तो उनके मुखमण्डल में अपराधी का सा भाव आगया था । यशोदा मैया ने ब्रजराज की ओर देखा तो नन्दबाबा नयन भी न मिला सके । उन्होंने गाड़ी की रस्सी रख दी थी और वो उतर रहे थे ।
दास दासियाँ खड़ी हैं गाड़ी के आस पास …किन्तु गाड़ी के भीतर कोई झांक कर देख नही रहा ।
हाँ , एक दासी ने अपने पति से अवश्य कहा था ….देखो ना गाड़ी में कन्हैया बैठा है ?
किन्तु उस के पति ने उत्तर दिया था …..मुझ में हिम्मत नही है …अगर नही होंगे तो ?
यशोदा मैया की गति रुक गयी है ….वो आगे बढ़ ही नही पाईं ।
गाड़ी में जुते वृषभों को देखा मैया ने ….उनके आँखों से अश्रु बह रहे हैं ।
नन्दराय उतर कर महल की ओर बढ़ गये ….सब लोग देख रहे हैं ….यशोदा ने सामने देखा…..एक सेवक ने गाड़ी का पर्दा हटाकर देख लिया था …उसकी तो साँसें अटक गयीं थीं ।
यशोदा ने उसकी ओर देखा …..नेत्रों में जल भरकर उसने अपना सिर हिला दिया था ।
बृजरानी दौड़ी नन्दराय के पास …….नन्दराय अपने कक्ष में जा चुके थे ।
अंधकार है कक्ष में ।
रुकिये ! दीपक बुझ गया है …..मैं जला देती हूँ । मैया यशोदा दीपक जला देती हैं । पर ये क्या अपनी आँखों को मल रहे थे नन्दराय । अपने आंसुओं को पोंछ रहे थे अंधकार में ।
आप जल लेंगे ? यशोदा ने पूछा । नही , बृजराज ने मना किया ।
हाथ पैर धो लीजिए ! यशोदा ने कहा । बृजराज ने मना किया और शून्य में देखने लगे ।
बैठ गयी है बृजरानी नीचे । पाँव पकड़ लिये नन्दराय के । लम्बी साँस लेते हैं नन्द जी ….ऊपर देखते हैं ….कुछ असहज हैं ।
सुनिये ना ! बहुत देर में बोली यशोदा ।
हाँ , नन्दराय ने इतना ही कहा ।
कहाँ रह गया कन्हैया ? क्या मनसुख की कुटिया में गया ? या श्रीदामा के साथ बरसाने गया ? या मार्ग में ही उतर कर किसी गोपी के यहाँ चला गया ? मैंने उसके लिए माखन निकाला है ….देखो ! ….यशोदा मटकी लेकर आती है बाहर से …जिसमें इसने माखन निकाला है ।
अब हिम्मत नही है नन्दराय में । कितना छुपायेंगे ये । भीतर इनके अश्रुओं का सैलाब है ….उसे ये अभी तक रोक रहे थे पर अब तो ।
रो पड़े बृजराज । हिलकियों से रो पड़े ।
क्या हुआ ? आप क्यों रहे हैं ? बोलिए ना ? यशोदा पूछ रही है , उसका हृदय घबरा रहा है ।
नही , नही आया तेरा लाला ! बृजरानी ! तेरा लाला मथुरा में ही रह गया । अब वो यहाँ नही आयेगा ! उन यदुवंशियों ने हमसे हमारा लाला छीन लिया । तुम ठीक कहती थीं अक्रूर के साथ उसे नही भेजना था ….वो नही आया है , और नही आयेगा । नन्दबाबा रोते हुए , बड़ी हिम्मत से ये सब बोल दिये ।
नहीं , आप झूठ बोल रहे हैं ….कह दीजिये आप झूठ बोल रहे हैं …..कहिये ना ! वो आया है ! कहाँ गया वो ? लाला मेरे बिना नही रह सकता , उसे मेरी याद आएगी । वो मेरे बिना कैसे सोएगा ? उसकी नींद खुलती है रात में …उस समय वो मुझे नही पायेगा तो ? उसके साथ वहाँ कौन होगा ? कहिये ना ? आप क्या सच में उसे मथुरा छोड़ आये ? कैसे आप छोड़ सकते हैं उसे मथुरा ? आपका हृदय मान गया ! नही , मैं नही मानूँगी , उसे मैं अकेले नही छोड़ूँगी मथुरा । चलिये ! चलिये , यशोदा की स्थिति विचित्र हो गयी है । उसने नन्दराय का हाथ पकड़ लिया, चलिए, मुझे लेकर चलिये मथुरा, मैं उसे ब्रज में लेकर आऊँगी । मैं उसे नही छोड़ सकती वहाँ ..अरे अभी वो बालक ही तो है, उसकी आयु ग्यारह वर्ष ही तो है, उसे लेकर आऊँगी ।
चलिए , गाड़ी में चलिए , अभी जाते हैं मथुरा ।
गाड़ी के पास नन्दराय का हाथ पकड़ कर ले गयी यशोदा ।
“वो देवकी का पुत्र है”
नन्दराय चिल्लाकर बोले ।
सबने सुना , गोपियों ने सुना , दास दासियों ने सुना , और बेचारी यशोदा ने भी सुना ।
यशोदा धड़ाम से बैठ गयी धरती में । शून्य में तांकने लगी ।
वो मेरा लाला नही है ? कन्हैया मेरा बेटा नही है ? यशोदा अब सबसे पूछ रही है ।
नन्दराय रो पड़े …..अब क्या कहें इस ममता की मारी को ।
“देवकी का बेटा है कन्हैया”……मन ही मन बोल रही है ।
मैं महारानी देवकी की धाय हूँ ? हंसती है यशोदा , मैं दासी हूँ उसकी , उसके सुत को मैंने पाल पोस कर बड़ा किया है ।
तभी सामने खड़ी दिखाई दीं ….श्रीराधिका । वो आयीं और मैया के पास बैठती हुईं बोलीं …मैया ! तेरे ही लाला हैं वे । ये कहकर मैया की गोद में सिर रखकर वो श्रीराधिका लेट गयीं । यशोदा ने उसके केशों में हाथ फेरा । वो देखती रहीं ….इस भानु की लाली को ।
तभी एक गाड़ी आकर रुकी ….तो उसमें श्रीदामा भैया थे । वो अपनी बहन श्रीराधिका को लेने आये थे । सबने देखा …..श्रीराधा की स्थिति विलक्षण हो गयी है । श्रीदामा ने सबको प्रणाम किया और श्रीराधा को चलने को कहा । श्रीराधा उठीं ….और अपने भैया के साथ चल दीं । किन्तु – मैया ! वे तुम्हारे ही लाला हैं । तुम रोना मत । ये कहकर श्रीराधा बरसाने के लिए चल दीं थीं । “मेरे प्रीतम नही आये, मेरे प्राण धन नही आये”। श्रीराधा यही बोलते हुए बरसाने आगयीं । ओह !
क्रमशः….


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