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August 2, 2025 5:28 am

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श्रीराधिका का प्रेमोन्माद- 4

( श्रीवृन्दावन में )

गतांक से आगे –

हाँ , अब कैसी लग रही हूँ ?

चहकते हुए अपनी लम्बी सी वेणी को हिलाते श्रीराधा पूछ रही थीं ।

ललिता विशाखा आदि ने जब श्रीराधारानी का मुख तेज देखा , मुख अरविंद में चमक देखी तो समझ गयी कि ये विरह दग्धा सब भूल गयी हैं ।

कैसी लग रही हूँ ? श्याम सुन्दर को ऐसी लम्बी वेणी बहुत अच्छी लगती है । फिर हंसती हैं श्रीराधा खूब हंसती हैं ….हंसते हंसते पेट पकड़ लेती हैं …..नयन भर आये हैं ललिता आदि के ….किन्तु अपने नयनों को इन्होंने सावधान कर रखा है …बहना नही अभी । हमारी स्वामिनी को भ्रम है कि उनके प्रीतम यहीं हैं ….ये भ्रम ही रहे । आपस में भी ललिता आदि ने संकेत से ही कहा कि कुछ देर के लिए सही …..श्रीराधा को कुछ धैर्य मिलेगा ।

पास में आकर श्रीराधा को ललिता ने सम्भाला , वो हंस रही हैं …..किन्तु ललिता गम्भीर है ….आप बैठिये ! श्रीराधा ललिता को देखकर फिर हंसती हैं ….अरे ! तुझे तो पता है ना ललिते ! वेणी वाली बात ! ललिता कहती हैं ….हाँ , हाँ पता है …..आप विराजिये ना ! ललिता को लग रहा है ये कहीं उन्माद में गिर पड़ीं तो इन सुकुमारी को बहुत चोट आयेगी ।

तू गम्भीर क्यों है ? बोल ना ! मैं हंस रही हूँ …ये गम्भीर है ? अन्य सखियों से श्रीराधा जी कहती हैं ….अब ललिता ने कृत्रिम हंसी हंसीं । मैं कहाँ गम्भीर हूँ ….मुझे पता है वेणी की घटना ! कुछ सोचकर चुप हो गयीं श्रीराधा । फिर बोलीं …नहीं तुझको नही पता । तू कहाँ थी ….वहाँ तो चित्रलेखा थी । उसके सामने की घटना है । ललिता नीचे देखने लगी ।

चल , मैं सबको सुनाती हूँ ….अरे ! कहीं विलम्ब तो नही हो जाएगा ना ?
श्रीराधा फिर पूछती हैं ।

कहाँ के लिए विलम्ब स्वामिनी ? विशाखा ने पूछ ही लिया ।

अरे ! वृन्दावन जाना है ना ! और हम तो नित्य जाती हैं ! श्रीराधा ने ललिता को देखकर कहा …पर ललिता अभी भी धरती में ही देख रही है ।

क्यों ? विशाखा ने गलती से ये प्रश्न पूछ लिया ।

क्यों ? ललिता ! ये विशाखा कैसी बहकी बहकी बात कर रही है ।

अरे , श्याम सुन्दर की बाँसुरी सुनेगीं , उनके दर्शन करेंगी । उनके साथ वन विहार करेंगी ।

चलो , चलो , श्रीराधा जैसे ही चलने के लिए घूमीं , वेणी लम्बी है , वो भी घूम गयी वेणी ।

चुप हो गयी श्रीराधा , वेणी , फिर हंसीं ।

अब सुनो , उस दिन मैं कुँज में सो रही थी …नींद तो नही , पर मैं स्वाँग कर रही थी ।

तभी श्याम सुन्दर मेरे पास में आये और जैसे ही मेरे कपोल को छूने लगे तभी उन्होंने मेरी वेणी को देखा ….श्रीराधा खिलखिला कर हंसीं …उन्हें लगा कि कोई काला सर्प है , डर कर बाहर भाग गये । श्रीराधा कुछ देर खूब हंसीं …फिर बोलीं – चलो अब , और हंसते हुए श्रीराधा अपने महल से बाहर आगयीं ।

सखियाँ उनके साथ हैं …….श्रीराधा चहकते हुए चल रही हैं आगे आगे ……वेणी को घुमा रही हैं अपने हाथों से ……..

सुनो सखियों ! रुक गयीं हैं श्रीराधा ….और सखियों से कहने लगीं ……

आज श्याम सुन्दर को छकायेंगीं । सखियों का हृदय भीतर से चीत्कार कर रहा है …..श्रीराधारानी को अब कैसे बतायें कि उनका श्याम सुन्दर मथुरा गया है । पर जब इन्हें पता चलेगा तब क्या होगा ? हाय ! ये जब जानेंगी कि मेरे प्रीतम गये मथुरा ! तब इनकी दशा !

देखो ! श्याम सुन्दर की बाँसुरी चुरा लेंगे । श्रीराधा रानी चलते चलते कह रही हैं । वो माखन खा कर दोपहरी में विश्राम करते हैं ना ! कदम्ब की छाँव में ! बस उसी समय ।

किन्तु तुम लोग इतनी उदास क्यों हो आज ? विशाखा ! क्या तेरी मैया ने तुझे डाँटा है ?
श्रीराधा पूछ रही हैं । और ललिते ! तुझे तेरे बाबा ने डाँटा है क्या ? रंगदेवि ! तू भी …रुक कर अपनी सखियों को देख रही हैं अब श्रीराधा । पर ललिता ने आगे बढ़कर कहा ….किशोरी ! किसी को न मैया बाबा ने डाँटा है ना कुछ है । आपने कलेवा नही किया ना इसलिये सब उदास हैं ।

तुम सब मेरी प्यारी सखी हो …..कितनी अच्छी हो …..बस श्रीराधा ने जब ये कहकर सखियों के सिर में हाथ रखा सब रोने लगीं , हिलकियों से रोने लगीं ।


ये रहा मेरा श्रीवृन्दावन ! श्रीराधा वर्तुल में घूमती हैं ।

पर …..कुछ पल ही बीते होंगे श्रीवृन्दावन में …..कि श्रीराधा रुक गयीं । सखियों ! कोयल नही बोल रही ? बैठी है डाल पर …पर बोल नही रही । क्यों ? ये लता ! ये कनक लता लिपटी तो है तमाल में पर ……ऐसा लग रहा है कि मुरझा सी गयी है ये । मोर-मोरनी थके से लग रहे हैं ….न अपने पंख फैला रहे हैं न नृत्य कर रहे हैं ……और ये हंस हंसिनी ? ललिते ! ये पूरा श्रीवन जल रहा है …..मुझे ऐसा क्यों लग रहा है । ये श्रीवन जड़ नही है ….ये चैतन्य है ….इसकी धड़कन सुनाई देती है ….ये श्रीवन नित्य उत्सव प्रकट करता है ….इस श्रीवन में उमंग है , रस है , रास है …संगीत है …..श्रीराधारानी घूम रही हैं ….ये दौड़ भी लगा रही हैं ….एक एक वृक्ष को देखती हैं …..और चौंक जाती हैं ।

कोयली बोली ….श्रीराधा ने सुनीं ….वो फिर बोली …..श्रीराधा सखियों से कहती हैं ….ये क्या ? इतना विरह ? क्यों ? सुन सुन कोयली ! बता ना , क्या हुआ ? तेरे भीतर इतना गहरा दर्द क्यों ? मोर बोले …..कान में हाथ रख लिए श्रीराधा ने ….ये क्या हो गया ! सबमें इतनी गहरी पीड़ा क्यों है ? ये वृक्ष जल गये हैं ! श्रीराधा सब सखियों को बता रही हैं …वो चौंक रही हैं ….क्यों ? क्या राजा कंस ने फिर दावाग्नि लगा दी श्रीवृन्दावन में ! और दावाग्नि लगा दी तो श्याम सुन्दर ने पान क्यों नही किया ? क्या कालियनाग यमुना से बाहर आगया है ? उसके विष के कारण ये श्रीवन जल तो नही गया ? किन्तु कालियनाग को तो श्यामसुन्दर ने नथ कर बृज से बाहर कर दिया था । श्रीराधा फिर मौन हो जाती हैं …वो सरोवरों को देखती हैं …..सूख गये हैं …कमल मुरझा गये हैं ।

वो वन खिला है …वो हरित है …वो उत्सव मना रहा है …वो वन उत्सव क्यों मना रहा है सखी ?

श्रीराधारानी ने दूसरी ओर दूसरे वन को देखा …..जो अत्यन्त हरित था ।

वो मधुवन है । ललिता ने अवनी की ओर देखकर कहा ।

मधुवन ? श्रीराधा सोच रही हैं ……

वो हरित क्यों है ? और हमारा श्रीवन जल क्यों गया है ? क्यों ?

क्यों कि यहाँ का वनमाली उस वन में चला गया है हे राधिके ! मनसुख उधर से जा रहा था ….वो रोता हुआ जा रहा था । उसने कह दिया ।

क्या ? श्रीराधा चौंक गयीं । मधुवन ! मधुपुरी ? क्या श्याम सुन्दर मधुपुरी चले गये ?

ओह ! सिर पकड़ लिया श्रीराधा रानी ने । हमें छोड़कर वे चले गये ! हमें विरह की धधकती आग में झौंक दिया ? ये कहते हुए श्रीराधारानी धड़ाम से धरती पर गिर पड़ीं और उनको मूर्च्छा आगयी ।


दस बारह मृग के बच्चे आए हैं ….वो श्रीराधा रानी को देख रहे हैं …..श्रीराधा मूर्च्छा में हैं ।

दस बीस मोर आगये हैं वो भी देख रहे हैं श्रीराधा को …..दशा समझ रहे हैं …..अपार पीड़ा तो इन श्रीवृन्दावन वन्य जीवों को भी है …..ये भी कितना प्रेम करते थे …और वो भी इनसे प्रेम करते ।

हंस-हंसिनी जोड़े के सहित आकर श्रीराधा रानी को देख रहे हैं । सखियाँ अपने अश्रुओं को पोंछ रही हैं …चार घड़ी मूर्छित अवस्था में श्रीराधा रहीं ….उनके नेत्र अब खुले हैं …वो देखती हैं चारों ओर ।

मेरे प्राण कहाँ हैं ? मेरे श्याम कहाँ हैं ? श्रीराधा पूछती हैं ।

सखियों से अब नही रोका जा रहा ….हृदय में जो भरा हुआ है विरह दुःख वो बाहर आगया है ।

स्वामिनी ! श्याम सुन्दर मथुरा चले गये ….ये सच है …वो मथुरा गये ।
चिल्लाकर और रोते हुए सखियों ने कहा ।

चले गये ? मुझ से बिना मिले चले गये ? मुझे छोड़ कर चले गये ? ओह ! सखी ! मेरे हृदय में बड़ा कष्ट हो रहा है …यहाँ दर्द उठ रहा है …..मैं क्या करूँ ? सखी ! मेरे अन्दर एक ज्वाला धधक उठी है ….मैं उसमें जल जाऊँगी ! ललिते ! सुन , सामने मुझे विरह का गहरा सागर दिखाई दे रहा है …बहुत गहरा है वो । उसका ओर छोर भी दिखाई नही दे रहा । ये कहते हुए श्रीराधा उठकर बैठ गयीं …स्वेद सम्पूर्ण देह से बहने लगा , नेत्रों ने अश्रु धार बह चले …पीताभ मुखमण्डल हो गया है ।

ललिते ! राधा तुझे प्रणाम करती है ….ये कहते हुए अवनी में अपना मस्तक रख देती हैं श्रीजी ।

कोई उपाय कर , ललिते ! कुछ कर , मुझे बैचेनी हो रही है …श्याम के बिना ये प्राण अब निकलना चाहते हैं , ललिता ! तू मेरी सखी है ….कुछ उपाय कर ना ! मुझ से अब नही रहा जा रहा । मेरे भीतर कुछ सुलग रहा है …वो सुलग ज्वाला बन रही है …..ओह ! अपनी छाती में हाथ रखकर श्रीराधा तड़फ उठीं ।

श्रीराधा की ये दशा देखकर सब सखियाँ भी दहाड़ मार कर रोने लगीं ……सन्ध्या होने को आई है ……श्रीराधा अब बोल भी नही पा रहीं । ये क्या हुआ ।

हाय ! ललिते ! कुछ तो कर ….ये विरह तो मेरे प्राण ले लेगा । मेरे भीतर तीव्र विरह के ज्वर ने अपना स्थान बना लिया है ….मुझे शीतलता दे । मुझे शीतल कुछ दे । ललिता विशाखा कदली पत्र से पंखा करने लगीं ….पर नही हुआ …..यमुना जल को लेकर आयीं ….जल सिर में डाला ….नही हुआ । श्रीराधा बोलती जा रही हैं – ललिते ! श्याम के विरह में मेरा हृदय रुँधा जा रहा है ….किन्तु हाय फटता नही है । ये देह पूरी तरह से निर्बल हो गया है …पर मरता नही है ….ललिते ! कहीं से विष दे दे ….ये राधा अपने प्राण त्याग देगी । फिर श्रीराधा ऊपर देखती हैं नभ में ….हाथ जोड़कर कहती हैं …हे विधाता ! तू मुझे तड़फा तड़फा कर क्यों जीवित रखना चाहता है ….मार दे , मुझे मार दे । मुझे मेरी मृत्यु दे दे ….दे दे । ये कहते हुए अचेत हो श्रीराधा मूर्च्छा में चली गयीं ।

तभी उधर से श्रीदामा अपने सखाओं के साथ आये थे …..ये भी रो रो कर वापस बरसाना जा रहे थे …जब देखा उनकी बहन श्रीराधा मूर्छित हो गयीं तो एक ग्वाले की बैल गाड़ी लेकर श्रीराधा और सखियों को उसमें रखकर बरसाना ले आये । कीर्ति मैया बहुत रोती हैं …अपनी लाड़ली की ये स्थिति देखकर । अब सो गयीं हैं श्रीराधा । सो गयीं हैं ? नही , विरह की मूर्च्छावस्था है ये ।

ओह !

क्रमशः….

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