!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 81 !!
श्रीराधामहाभाव की कुछ तरंगें…
भाग 2
इसलिये गोपियाँ , श्रीराधारानी , यहाँ के ग्वाल बाल ….यहाँ के वृक्ष, पक्षी ये सब साधारण नही हैं …….ये सब प्रेम के सहायक हैं ।
पर हे वज्रनाभ ! जब प्रेम का रहस्य ही प्रकट करना है ……तो वह मात्र संयोग से प्रकट नही होगा …….मात्र रासलीला से प्रकट नही होगा ……वह पूर्ण प्रेम प्रकट होता है ………..विरह से …….वियोग में ……..विरह में ही सम्पूर्ण सृष्टि ‘प्रियमय” हो जाती है ……..वियोग में सर्वत्र प्रियतम का ही आभास होता है …………महर्षि नें बताया ।
श्रीराधारानी को कृष्ण अगर विरह नही देते…..तो इस दिव्य प्रेम का प्राकट्य कहाँ हो पाता ? न हम लोग प्रेम के इन रहस्यों को ही जान पाते….महर्षि ये भी कहते हैं……ये लीला है….प्रेम को प्रकट करनें के लिये दोनों ही लीला कर रहे हैं….श्रीराधा और कृष्ण….दोनों युगलवर ।
प्रेमी की मनोदशा क्षण क्षण में बदलती रहती है, ये बड़ी अद्भुत बात है ।
यही बात “भ्रमरगीत” में जाननें की है ……………श्रीराधा रानी कभी गाली देकर कहती हैं भँवर से …….जा ! जा कपटी के यार !
बहुत कुछ कहती हैं ……कहा है …….पर अब एकाएक वो भँवरा उड़ गया ………तो बहुत देर तक नही आया ……अब श्रीराधारानी घबडा जाती हैं …….कहीं ये सब जाकर उस भँवरे नें हमारे कृष्ण को कह दिया तो ? ओह ! फिर सोचनें लग जाती हैं……..पर सोचमें बात नही आती …….तो अपनी प्रिय सखी ललिता से कहती हैं ……..सखी ललिते ! कहीं प्यारे श्याम सुन्दर को हमनें कुछ भला बुरा तो नही कह दिया ना ? सोच ? वैसे मैने कुछ कहा तो है नही ……..फिर भी ललिते ! कभी कभी तो गुस्सा आही जाता है ना ………मुझे भी आगया था ………..तो मैने कह दिया …….पर अब डर लग रहा है ………….मेरे द्वारा कही सारी बातें अगर भँवरे नें श्याम सुन्दर को जाकर कह दिया तो ? ओह ! फिर तो हमारे श्याम सुन्दर यहाँ कभी नही आयेंगें …….वो क्यों आनें लगे गाली खानें ?
मैं भी गंवार ही हूँ सखी ! बेचारा आया था, दूत बनकर आया था ….मेरे प्यारे श्याम नें ही उसे भेजा था……..अरे ! उन्हें हमारी परवाह है तभी तो दूत को भेजा ना ! नही भेजते तो भी हम क्या कर लेतीं ?
पर उन्हें हमारी कितनी फ़िक्र है ……..उन्हें हमारी याद आती होगी ………तभी तो भेज दिया अपना दूत ………….
पर हम ? हम तो असभ्य ! गंवार ! किसी चीज का शऊर नही हैं ।
इतना कहकर फिर हिलकियाँ शुरू हो गयी थीं ……..श्रीराधारानी नें क्रन्दन करना शुरू कर दिया था……..तभी –
स्वामिनी ! देखो वो भँवरा फिर आगया !
ललिता सखी नें दिखाया ……..।
आनन्द से उछल पडीं श्रीराधारानी……..खुश हो गयीं ….उस भँवरे को ही देखकर श्रीराधा को इतना आनन्द आया कि ….मानों भँवरा नही ये स्वयं श्याम सुन्दर ही आगये हों …………….
अरे ! आ ! आ ! खड़ी हो गयीं श्रीराधा रानी ….और बुलानें लगीं उस भँवर को ……..पर भँवर अब नीचे नही उतर रहा ……….ऊपर ही घूम रहा है और गुनगुन कर रहा है …………….
क्रमशः …
शेष चरित्र कल –


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