!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 82 !!
हम प्रीत किये पछतानी….
भाग 1
हे भँवर ! इस बाँसुरी को तो देख ! ये मुझे नन्दनन्दन देकर गए थे ।
हाँ भँवर ! ऐसा कहते हुए बाँसुरी निकाली श्रीराधारानी नें ।
जब वे मथुरा जा रहे थे ना ! तब मेरे पास आये थे….मेरे हाथों को अपनें हाथ में लेकर सजल नयन बोले थे – राधे ! “मैं जल्दी आऊँगा”
मैने उनसे पूछा था – कब तक आओगे प्यारे ! कब तक ?
तब उन्होंने अपनी फेंट से ये बाँसुरी निकाली थी……और स्वयं घुटनों के बल बैठकर…..अपनें दोनों हाथों से ये बाँसुरी मुझे दी थी ।
राधे ! जब मेरी याद आये …ये बाँसुरी बजा लेना ……..कृष्ण ! तुम्हारे सामनें उपस्थित होगा ………ये कहा था ।
आपनें बाँसुरी बजाई ? भँवरे नें पूछा ।
क्यों बजाऊं ? व्यंग में हँसी श्रीराधा रानी ।
मैं बुलाऊँ और वो आयें ……….ये प्रेम नही है ……प्रेम तो ये है कि उन्हें स्वयं आना चाहिये अगर प्रेम है तो !
भँवरे ! ये बाँसुरी भी कुछ कह रही है ………..इसकी भी सुन लो –
श्रीराधारानी नें कहा ………और बाँसुरी को दिखानें लगीं………..
ये रोती रहती है…….जब से इसे छोड़ कर गए हैं वे श्याम……ये रोती ही रहती है ……….ये कहती है – बोल ! बांसुरी ! बोल ! कान लगाती हैं बाँसुरी में श्रीराधा……..देख ! बांसुरी ! ये दूत है हमारे श्याम सुन्दर का ……..ये सब जाकर बता देता है ……..कह दे इससे …..ये मथुरा जाकर कह देगा । बाँसुरी क्या बोलेगी ……..पर श्रीराधारानी जो कहना चाहती हैं ……..वो बाँसुरी के माध्यम से कह रही हैं ………..अद्भुत है प्रेम !
“जिनका हृदय वियोग के मारे टूक टूक न हुआ हो…….वह मेरा अभिप्राय क्या समझेगा स्वामिनी ! ये भँवर मेरी दर्द भरी बातों को सच में सुनना चाहता है……तो पहले ये किसी से प्रेम करे…..फिर उस प्रेम में विरह को आनें दे…..फिर कुछ दिन तक विरहाग्नि में जले…..तब मेरे पास ये आये……मैं इसे तब बताउंगी …….।
उद्धव सुनकर पागल से हो गए ……..ये क्या ? अभी तक भँवर ही बोल रहा था …….अब बाँसुरी भी बोलनें लगी…..बातें करनें लगी ।
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –


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