!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 82 !!
हम प्रीत किये पछतानी….
भाग 2
“जिनका हृदय वियोग के मारे टूक टूक न हुआ हो…….वह मेरा अभिप्राय क्या समझेगा स्वामिनी ! ये भँवर मेरी दर्द भरी बातों को सच में सुनना चाहता है……तो पहले ये किसी से प्रेम करे…..फिर उस प्रेम में विरह को आनें दे…..फिर कुछ दिन तक विरहाग्नि में जले…..तब मेरे पास ये आये……मैं इसे तब बताउंगी …….।
उद्धव सुनकर पागल से हो गए ……..ये क्या ? अभी तक भँवर ही बोल रहा था …….अब बाँसुरी भी बोलनें लगी…..बातें करनें लगी ।
हम ज्ञानी हैं …..हम बातें बनाते हैं……सर्वत्र ब्रह्म है……..जड़ चेतन समस्त में ब्रह्म है …….पर इन्हें तो ये अनुभव हो रहा है ………
जिस अनुभव के लिए हम ज्ञानियों को कितनें पापड़ बेलनें पड़ते हैं …..वेदान्त का तगड़ा अभ्यास चाहिये…….ज्ञान स्वरूप हम ही हैं …..और जो हम हैं …..वही सर्वत्र है…….जड़ चेतन समस्त में वही है ……..ये सब हम ज्ञानियों की बातें हैं…….इन्होनें न वेदान्त का श्रवण किया है ………फिर इन्हें ये कैसे अनुभव हो रहा है ….कि जड़ चेतन सब जगह कृष्ण ही हैं ।
बाँसुरी मानों बोल रही है …….श्रीराधारानी बता रही हैं –
“मैने अच्छे बुरे सबके पास में जाकर अपना रोना रोया है ………पर किसी नें मेरी नही सुनी ………..आह ! मुझे वो अपनें कोमल कर से पकड़ते थे …….अपनें अधरों में लिटाते थे ……….फिर अपनी साँस मुझ में भरते थे …….भँवरे ! वो समय अब कब आएगा ……बता ना ?
बाँसुरी की बात श्रीराधारानी कह रही हैं …….और रो रही हैं ।
मैने किस से नही कहा !……मैं किसके पास जाकर नही रोई !…..पर किसी नें ध्यान ही नही दिया…….कोई ध्यान भी देते …….तो बाद में अनसुना कर देते…….सुनकर भी अनसुना कर देना …….फिर मैं उन्हें बहरा समझ लेती थी । मुझे रोते हुए देखते थे……..फिर भी अनदेखा कर लेते थे……मैं उन्हें अंधा समझ चुप रहनें लगी ।
हे भँवर ! मेरे रुदन को वही समझ सकता है ……..जिसनें विरह को जाना है …….वास्तव में मेरे आँसुओं को मेरा श्याम ही समझ सकता है ……पर वो भी तो नही समझ रहा मुझे ।
इतना ही बोल पाईँ थीं श्रीराधिका जी…………..
क्रमशः …
शेष चरित्र कल –


Author: admin
Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877