!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 82 !!
हम प्रीत किये पछतानी….
भाग 3
हे भँवर ! मेरे रुदन को वही समझ सकता है ……..जिसनें विरह को जाना है …….वास्तव में मेरे आँसुओं को मेरा श्याम ही समझ सकता है ……पर वो भी तो नही समझ रहा मुझे ।
इतना ही बोल पाईँ थीं श्रीराधिका जी…………..
पर आज विचित्र होगया…….उद्धव के नेत्रों से अश्रु बहनें लगे ।
उद्धव नें अपनें आँसुओं को देखा…….चौंक गए ………उन्हें रोमांच हो रहा था ……उनमें सात्विक भावों का उदय होनें लगा था ।
प्रेम देवता नें अपना प्रभाव दिखाना शुरू किया ……………
“इन श्रीराधारानी की स्थिति तो सिद्धात्माओं से भी उच्चतम है ।
उद्धव विचार करते हैं ……पर बुद्धि काम नही कर रही ।
गदगद् वाणी हो गयी उद्धव की ………अश्रु गिरनें लगे आँखों से ।
पर श्रीराधारानी अब भँवर से कह रही थीं ……………
हमारे आर्यपुत्र कैसे हैं ?
उद्धव नें जब ये सुना ......तब उन्हें फिर भाव जगत में जाना पड़ा ।
आर्यपुत्र ? कृष्ण को ये आर्यपुत्र कह रही हैं ………..
आर्यपुत्र …..पति के लिये …….सम्बोधन में आता है ।
श्रीराधारानी स्पष्टतः यहाँ कृष्ण को अपना आर्यपुत्र कहकर बोल रही हैं ………पति , प्रियतम, प्राणेश , प्राणनाथ …….यही सम्बन्ध रखा है श्रीराधारानी नें ………….
भँवरे ! क्या मुझे कभी स्मरण करते हैं कृष्ण ?….क्या वो समय फिर आएगा जब हमें अपनें आलिंगन में वो बांधेंगे ? उनकी वो सुरभित साँसें क्या हमारी साँसों से कभी टकराएंगी ?
भँवर तो चला गया……..पर उद्धव हाथ जोड़ते हुये लता कुञ्जों से निकलकर बाहर आगये थे ……..उनके सजल नेत्र थे ………वो साष्टांग लेट गए थे श्रीराधारानी के सामनें …………….
शेष चरित्र कल –
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