!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 83 !!
उद्धव द्वारा “गोपीप्रेम” का गान…
भाग 2
हे महाभागा ! हे राधिके ! हे कृष्ण प्रिये ! हे स्वामिनी !
मैं आपके चरणों में प्रणाम करता हूँ ……………..
श्रीराधारानी का ध्यान अभी इधर नही है ………..
सच्चा त्याग तो आपनें किया है …………महात्मा लोग क्या त्याग करेंगें आपके समान ………बड़े बड़े महर्षि , मुनि ज्ञानी भी आपके त्याग के सामनें नतमस्तक हैं……….उद्धव जी नें श्रीराधारानी से कहा ।
पर हमनें ऐसा क्या त्यागा उद्धव ! मानों श्रीराधा रानी ही पूछ रही हैं ।
ब्रह्मचारी का जप तप करना कोई बड़ी बात नही है ……..ब्रह्मचारी है तो करेगा क्या ? कोई बाबा जी है …..पत्नी है नही ….बाल बच्चे हैं नही …….तो करेगा क्या वो……भजन करे तो क्या बड़ी बात है ?
पर उद्धव जी कहते हैं – बड़ी बात तो आप लोगों की है ……बाल बच्चे भी हैं आप गोपियों के ….पति, सास, ससुर सब हैं …………..इसके बाद भी आप लोग अपना मन पूर्ण रूप से कृष्ण में लगाई हुयी हो …..ये बहुत बड़ी बात है ……….।
तपश्वी का तप करना बड़ी बात नही है ……अरे ! तपश्वी है …..उसका काम ही है तप करना ……..महात्माओं का भजन करना बड़ी बात नही हैं अरे ! भई ! महात्मा हैं ……….भजन करनें के लिये ही तो महात्मा हुए हैं ……….फिर महात्मा भजन करे तो बड़ी बात क्या हुयी ?
बड़ी बात तो गृहस्थों की है……..गृहस्थ में रहते हुये भी अगर हम भजन करें ……भगवत्प्रेम में डूब जाएँ ……बाल बच्चों के होते हुए भी हमारा मन सनातन प्रिय श्रीकृष्ण में लगा रहे ……पति, परिवार धन, सबके होते हुए भी……..सनातन सखा कृष्ण के लिए अकेले में रोनें का मन करे …….तब समझना ये बहुत बड़ी बात है ।
उद्धव का विचार और गहरा होता गया ………………
शास्त्रों में कहीं लिखा है क्या – कि पति को छोड़कर पत्नी सन्यास ले ले ? ………पति का त्याग करके पत्नी भजन करे ?
हाँ पतियों के लिये सन्यास का वर्णन अवश्य है शास्त्रों में ………….
पर यहाँ तो शास्त्र भी उल्टे पुल्टे कर दिए इन प्रेम दीवानियों नें ……
पति को ही त्याग कर भजन करनें बैठ गयीं ………..बच्चों को ही छोड़ दिया …………ये बहुत ऊँची स्थीति हैं ………….जिनको जन्माया …..जिनको नौ महिंने तक पेट में रखा ……फिर बाहर पालन पोषण भी किया …….पर बात जब सनातन सखा की आयी ……तब सब कुछ छोड़ दिया …….ऐसे छोडा, जैसे कोई मतलब ही न हो ………
उद्धव विचार करते हैं ……….मैने अच्छे अच्छे ऋषियों को देखा है …..मैने अच्छे अच्छे मुनियों के जीवन और उनकी साधना तप सब देखा है ……..पर इन गोपियों को देखता हूँ ……….तो वो ऋषि मुनि इनकी पैर की धूल भी नही लगते ।
स्मरण , ध्यान का भी एक समय होता है…….पर ये कैसी विलक्षण स्थिति है……कि हर समय ….24 घण्टे……बस “प्रिय” की यादें …..बस उसका सुमिरन…….और फिर कुछ पानें के लिये भी नही !
उद्धव जी चकित हो रहे हैं स्वयं गोपी प्रेम पर विचार करते हुये ……
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –
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