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February 5, 2025 2:48 pm

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श्रीराधिका का प्रेमोन्माद – 14-( उन्माद की चरम सीमा )- : Niru Ashra

श्रीराधिका का प्रेमोन्माद – 14-( उन्माद की चरम सीमा )- : Niru Ashra

श्रीराधिका का प्रेमोन्माद – 14

( उन्माद की चरम सीमा )

गतांक से आगे –

गहवर कुण्ड में बैठ गयी है चित्रा सखी …..चित्त में श्रीकृष्ण प्रकट नही हो रहे ….चित्रा अपने को शान्त करना चाहती है ….किन्तु क्या ये इतना सरल है ….चित्त में तो उन्मादिनी श्रीराधा ही प्रकट हो रही हैं …..वैसे ये सब श्रीराधा की ही सखियाँ हैं कृष्ण की नहीं ।

पर मूर्ति नही बनाई चित्रा ने तो उसकी स्वामिनी अब नही जागेंगीं । क्या ? ये विचार मन में कौंधते ही चित्रा के …उसने अपनी पूरी ऊर्जा लगा दी ।

चन्द्रावली ठीक है ……हाँ , वो पूर्व में सौतिया डाह रखती थी हमारी स्वामिनी से …..जो स्वाभाविक भी है ….वो भी चाहती थी श्याम सुन्दर को ….तो इसमें उसकी गलती क्या है ? और वैसे भी प्रेम इन सब ग़लतियों से ऊपर की वस्तु है । चित्रा के मन में यही सब चल रहा है …..वो चन्द्रावली को अब अपना मानने लगी है …..उसका मन अब अच्छा मान रहा है ….क्यों न मानूँ ! मेरी लाड़ली जिससे स्वस्थ हो मेरा वही अपना है । ये सोचते हुए चित्रा कुण्ड में झुकती है ….गहरा बहुत है ये कुण्ड …..”गहवर कुण्ड” ऐसे ही नही कहते इसे । हाथ नही पहुँचा चित्रा का ….तो उसने गोता ही लगा लिया …..और मिट्टी तल से निकालकर बाहर लाने लगी ।

दोनों हाथों से मिट्टी ला ला कर किनारे में रखती गयी ……फिर जब मिट्टी मूर्ति के लिए पर्याप्त हो गयी तो बैठ गयी …..अपने केशों को बाँध लिया …साड़ी को सम्भाल लिया ….और बैठ गयी …..आँखें बन्द कर लीं ……श्रीकृष्ण ……वो चन्द्र मुख , शुक की तरह नासिका , कमल नयन ……वो मिट्टी से बनाती गयी …..इस कलाकारी में ये सिद्ध है ।

ओह ! …….चित्रा के हाथ रुक गये …..उस दिन मैंने स्वामिनी को …..चित्रा खो गयी ।

बात है श्याम सुन्दर को जब प्रिया जू ने प्रथम देखा था ।


चित्रा ! ओ चित्रा !

अल्हड़ सुकुमारता से रची पची किशोरी …..चहकती हुयी आयीं थीं ।

हाँ , हाँ क्या हुआ स्वामिनी ! चित्रा ने भी पूछा था ।

स्वामिनी क्यों कहती हो ….मुझे अच्छा नही लगता ।

हमें पता है किन्तु ये स्वाभाविक है ….हमारे मुख से आपके लिए स्वामिनी ही निकलता है….हम क्या करें । चित्रा ने भी हाथ जोड़ लिए थे ।

ये हाथ जोड़ना भी हमें अच्छा नही लगता …..श्रीराधा रानी ने चित्रा के स्कन्ध में अपने सुकोमल कर रखते हुए बड़े प्रेम से कहा था । तुम मेरी सखी हो …..श्रीराधा ने ये भी कहा ।

चित्रा कुछ नही बोली …….वो बस गदगद हो रही है ।

अच्छा , सुनो चित्रा ! मेरे लिए एक चित्र बना दो ।

आप आज्ञा करो ! चित्रा की इस बात पर …..

फिर आज्ञा ? श्रीराधा ने अपनी आँखें दिखाईं ….मुझे ये शब्द प्रिय नही है ।

चित्र के विषय में आप कुछ बताओगी ? चित्रा ने पूछा ।

हाँ , श्रीराधा के नयन खो गये थे ……नील वरण , कमल नयन , अधर अरुन , कपोल पुष्ट , शंख ग्रीवा आदि आदि ….वो खो गयीं थीं ।

ये कौन हैं ? बना भी दिया था चित्रा ने , और अब पूछ रही थी ।

दिखा दिखा …..नेत्र खोलकर चित्र से माँग रहीं थीं श्रीराधारानी ।

नही , पहले बताओ ….ये कौन हैं ? चित्रा भी अब विनोद करने लगी ।

“इनको मैंने आज देखा …चित्रा ! मैं तो अपना मन हार गयी …दे बैठी” ।

चित्रा ने वो चित्र दे दिया था ……श्रीराधारानी अपलक उस चित्र को देखकर बोलीं …हाँ , यही हैं …..फिर चित्रा के हाथों को चूम लिया था ।


चित्रा अपने हाथों को देखती है ……उसके नेत्रों से अश्रु बह चले थे ……

उन श्रीराधारानी की ये दशा ! क्यों छोड़कर चले गए तुम निष्ठुर ! वो मूर्ति को ही कहती है …..क्यों की मूर्ति बनकर तैयार हो गयी थी । तुम्हें दया नही आती ? कोमल से भी कोमल हमारी किशोरी …उनके ऊपर इतना अत्याचार क्यों ? चित्रा बिलख उठी है ….किन्तु उसे अब कृष्ण को गाली देने में अपने समय को व्यर्थ नही करना है …उसे तो अपने स्वामिनी को देखना है …..हाँ , ये कहते हुए चित्रा ने अपने आँसू पोंछे …और मूर्ति को लेकर वो चल पड़ी अपनी श्रीराधारानी के पास ।

चन्द्रावली को ललिता ने संकेत किया ……देखो ! चित्रा मूर्ति बनाकर ले आयी है ।

चन्द्रावली प्रसन्न हुई ….वो चित्रा के पास गयी …..देखो चित्रा ! इस कदम्ब के नीचे ….हाँ , यहीं ….यहाँ रख दो मूर्ति को । मूर्ति को देखा चन्द्रावली ने तो वो भी देखती ही रह गयी ….वाह ! बहुत सुंदर मूर्ति बनाई है …..फिर मूर्ति को विराजमान करके श्रीराधाजी के पास चन्द्रावली आगयी ।

देखो ! सखियों देखो ! अब हम सब कहेंगीं कि ….जय हो श्याम सुन्दर की ….फिर सब कहना …जय हो , जय हो । आइये आपका स्वागत है श्याम सुन्दर । चित्रा बोली …सबको यही दोहराना है …..कब तक ? सुदेवी सखी ने पूछा ।

इधर उधर देखकर चन्द्रावली बोली ….जब तक राधा न जागें ।

सब कुछ तैयार हो गया ……मूर्ति भी रख दी गयी ……मूर्ति चमक भी रही है ….

जय हो श्रीराधाबल्लभ लाल की …..जय जय जय ।

जय हो श्रीबाँके बिहारी लाल की …जय जय जय ।

जय हो श्रीराधारमन लाल की …जय जय जय ।

फिर एक स्वर में सब बोलीं ……आइये श्याम सुन्दर ! आपका स्वागत है ।

इसी बात को दोहराया जाना लगा …..एक बार , दो बार , तीन बार …..सब सखियों का ध्यान श्रीराधा रानी पर केन्द्रित है ….उनमें कुछ चेतनता आयी की नहीं ! सब देख रही हैं …निरीक्षण कर रही हैं । पर कोई लाभ नही हुआ ।

चन्द्रावली ने फिर इन शब्दों को दोहराने को कहा ……

हे श्याम सुन्दर ! आप मथुरा से आगये ?

फिर सब सखियों ने दोहराया ….बार बार , किन्तु लाभ नही हुआ ।

चन्द्रावली आक्रामक हो गयी और श्रीराधारानी के कान में चिल्लाकर बोली ….राधा ! ओ राधा ! देख ! तेरे श्याम सुन्दर आगये । कान में ही कहा था …और चीख कर कहा था …वो शब्द कान से होकर हृदय में चले गए थे ….धड़क उठा हृदय “श्यामसुन्दर” ! स्वाँस चल पड़ी …..चन्द्रावली ने सब सखियों को दिखाया ……आहा ! सखियों में उत्साह का संचार हो गया था ।

आइये आपका स्वागत है श्याम सुन्दर ! चन्द्रावली ने कहा । और कान में फिर फिर कहा ।

*** क क कहाँ हैं म म मेरे श्याम सुन्दर ! नेत्र खोल लिए श्यामाप्यारी ने ।

सखियाँ आनंदित हो गयीं ……वो रहे । वो रहे स्वामिनी ! अतिउत्साह में ललिता ने भी कदम्ब वृक्ष की ओर संकेत करके दिखाया ।

वो उठ गयीं हैं …वो अब बैठ गयीं हैं …इधर उधर देखती हैं ….उनकी वाणी लड़खड़ा गयी है ।

क क कहाँ वि वि विशाखे ? दि दि दिखा ।

उनके सूने नयन खोज रहे हैं चारों ओर ।

प प प्राण दुःख पा रहे हैं …ओह ! ल ल ललिते ! क क कहाँ हैं मेरे प्रीतम !
रो पड़ीं श्रीराधारानी ….हिलकियों से रो पड़ीं …..ब ब बोलो ना ! अगर उनके दर्शन नही तो मैं म म मर ही जाऊँ वही अ अ अच्छा है ना ! बताओ कहाँ हैं मेरे कमल नयन ?

वो रहे ! ललिता ने दिखाया । चन्द्रावली ने हाथ पकड़ कर उठाया …और दिखाया …वो कदम्ब वृक्ष है ना ? हाँ हाँ …श्रीराधा बोलीं । उसी कदम्ब के नीचे देखो …विराजे हैं ना ? श्रीराधा देखती हैं….अपलक देखती है ….दूर हैं …..फिर मुस्कुरा देती हैं ….हाँ , मेरे श्याम सुन्दर आगये ! सखी ! मेरे श्याम सुन्दर आगये ! वो झूठे नही हैं …..अपराधिन तो मैं हूँ ….मैं ही उन्हें झूठे , कपटी ….ना जाने क्या क्या कहती रही …..पर वो न झूठे थे न कपटी ….वो आगये ….हाँ , मुझे दिखाई दे रहे हैं …कदम्ब के नीचे वो खड़े हैं …..उनके कमल नयन….मुझे दिखाई दे रहे हैं ….हाँ , हाँ ….श्रीराधा का मुख कमल अब खिल उठा …..हाँ , यही मेरे श्याम हैं ….इनके बाल घुंघराले हैं ….हाँ , बोल प्यारे प्यारे हैं …सखी ! यही मेरे श्याम हैं …..श्रीराधा ये कहते हुए दौड़ पड़ीं कदम्ब वृक्ष के पास और जाकर प्रगाढ़ आलिंगन कर लिया उस विग्रह को ।

मैं अब तुम्हें जाने नही दूँगी ….प्राण ! तुम्हें छुपा लुंगी ….कंस के राक्षस भी खोज नही पायेंगे ।

मूर्ति को श्रीराधा हृदय से लगा कर उन्मादिनी हो उठी हैं ।

हे प्रियतम ! मेरे हृदय में बड़ा ही सुन्दर पर्यंक बिछा हुआ है ….उसमें तुम और हम विहार करेंगे …और उस विहार को कोई नही देख पायेगा …कोई नही । श्रीराधा हंस रही हैं …उनकी खिलखिलाहट सखियों के उर में शूल की तरह चुभ रहे हैं ।

मैं तुम्हारे चरणों को अपने हृदय में सम्भाल कर रखूँगी …..पर मेरा हृदय तो कठोर है …बहुत कठोर ….तुम्हारे चरण तो कोमल हैं …….

पर ये क्या !

धड़ाम से अवनी पर गिर गयीं अब वो सुकुमारी ।

ललिता ! ये क्या हो गया । दर्शन तो हो गये ….पर आलिंगन में वो सुख क्यों नहीं ।

श्रीराधारानी अब रो उठीं ….पुकारने लगीं ….मुझे श्याम सुन्दर ने कृपा कर दर्शन तो दिया पर विधाता ने मुझ से छीन लिया । हाय ! , सखियाँ श्रीराधारानी की ये स्थिति देखकर विकल हो उठीं …उनके समझ में नही आरहा …चन्द्रावली ने ये क्या किया ? अब कैसे इन्हें सम्भाला जाये । सब चन्द्रावली की ओर देख रही हैं, किन्तु श्रीराधा के इस उन्माद ने उसे भी विरही बना दिया था ।

मैं भाग्यहीना हूँ ..ये राधा भाग्यहीना है …श्रीराधा की स्थिति अवर्णनीय हो गयी है । “मुझे तो लगता है सखी ! कि इस राधा के कारण ही ये बृजमण्डल दुःख के सागर में डूब चुका है ….मुझे मर जाने दो । राधा को मर जाने दो”। ये कहते हुए श्रीराधा दहाड़ मार कर रोने लगीं थीं ।

अपने अश्रु पोंछते हुए चन्द्रावली आगे आयी ….और रुँधे कण्ठ से बोली ……

राधा ! मेरी बहना ! मुझे पर विश्वास कर …अब मैं तुझे इस विरह सागर से उबार कर ही रहूँगी ।

राधा ! शान्त हो , देख ! मुझे अपना मान , मैं चन्द्रावली हूँ …..पूरा बृज जानता है कि चन्द्रावली जो कहती है वो करती है ।

तो राधा की एक बात मान लो ……श्रीराधा ने प्रार्थना की ।

हे चन्द्रावली ! तुम मुझ से आयु में बड़ी हो ….इसलिये मैं तुम्हें आज्ञा नही दे सकती ….पर प्रार्थना कर रही हूँ ।

हाँ , कहो , क्या बात है ?

चन्द्रावली ! मुझे जोगन बना दो …हाथ जोड़ने लगीं श्रीराधा । मेरे ये केश काट दो ….ओह ! सखियाँ रो रहीं …..अपनी स्वामिनी के मुख से ये दयनीय बातें उन्हें चुभ रहे हैं ।

हाँ , मुझे कंथा पहना दो …..और ……..

और ? चन्द्रावली ने पूछा ।

मथुरा में जाकर मुझे छोड़ दो …..मैं वहीं पड़ी रहूँगी ….जहां से श्याम सुन्दर गुजरते हों वहाँ से उन्हें देखूँगी …..मैं उन्हें निहार कर जी लूँगी । मुझे मथुरा ले चलो । मुझे मथुरा ।

ओह ! श्रीराधा की दशा सबके लिए मृत्य समान कष्टदायी बन गयी थी ।

पर चन्द्रावली कुछ सोचने लगी ……..

क्रमश….

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