!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 85 !!
सुनो ! प्रियतम की पाती
भाग 3
सुबुकनें लगीं प्यारे की पाती सुनकर सब गोपियाँ ……………..
उद्धव ! तुम कहते हो तो बात ठीक होगी……..तुम पाती को लानें वाले हो, ……हमारे कृष्ण हमें ज्ञान का सन्देश भेज रहे हैं……अच्छी बात है ।
पर उद्धव ! हमें अब पाती नही चाहिये …….
…..हमें पाती लिखनें वाला चाहिये ।
हमारी तो कुछ समझ में ही नही आई बात………हम गंवार हैं उद्धव !
आत्मा क्या परमात्मा क्या , हम क्या जानें ?
हम तो, जब से होश सम्भाला है …….तब से कृष्ण ही को अपना सर्वस्व मान बैठी हैं ……………
वो सर्वात्मा है ? यही कहा ना उसनें ? कि वो सबकी आत्मा है ।
उद्धव ! हमें महारास के समय कन्हाई नें यहाँ छूआ था ………वो कौन था ? आत्मा ? या ?
उद्धव ! उस छुअन को हम भुला नही पा रही हैं ………
इस “सर्वात्मा” वाले सिद्धान्त से हमारे दुःख की निवृत्ती होनें वाली नही है ……। हमें तो वही चाहिये …………..
हम कैसे भूल जाएँ ……….उस मोहनी मुस्कान को ? हम कैसे भूल जाएँ आत्मा की बातें करते हुये उस बाँसुरी को …………जिसकी मधुर ध्वनि आज भी हमारे कानों में गूँजती रहती हैं ।
उसनें अपनें अधर हमारे इन अधरों पर रख दिए थे ……..श्रीराधा कहती हैं ….कैसे हम भूल जाएँ…..
उसनें हमें बाँसुरी बना………अपनें अधरों से लगाया था ………..
और मेरी ये दोनों बाँहें ……….उनके गले की हार बन गयी थी ।
कैसे आत्मा की बातें करते हुये हम वो सब भूल जाएँ ?
उद्धव ! तुम ज्ञानी हो ……….तुम्हारे कृष्ण ज्ञान के ईश्वर हैं ……पर हम तो भोली भाली गाँव की नारियाँ हैं ……..न हमें आत्मा क्या है ये पता है …..न हमें उसकी सर्वव्यापकता का ही पता है ………हम तो बस उन श्याम सुन्दर को जानती हैं ……..जो हमारे गले में गलवैयां दिए हमें प्यार करते थे……..
उनका वो मुस्कुराना….उनका वो झूठ बोलना….उनका वो नटखट पना …..हमें सब याद आता है……..हम नही भूल पा रहीं उद्धव ।
हमें योग करना सिखा रहे हैं तुम्हारे स्वामी,……हँसती हैं श्रीराधारानी ।
जिनके रोम रोम में श्याम बसे हैं ………वह “योग” कहाँ रखेगा ?
उद्धव ! तुम लोगों के पास “योग” है ……पर हमारे पास “वियोग” है ।
इतना कहकर फिर रोना शुरू कर दिया था गोपियों नें ।
हे वज्रनाभ ! उद्धव को लग रहा था कि श्रीकृष्ण नें जो तत्वज्ञान लिखकर भेजा है पाती के रूप में …….उससे तो अवश्य श्रीराधारानी और अन्य गोपियों का प्रेम कुछ तो कम होगा …………
पर वज्रनाभ ! वो प्रेम क्या जो किसी के समझानें पर कम हो जाए ।
किसी के नही …….स्वयं प्रियतम भी समझाये कि …….”इस प्रेम को कुछ कम करो” ………..आहा ! प्रियतम के ऐसा कहनें पर तो प्रेम और बढ़ता है …….क्यों की यही है प्रेम की विचित्र रीत !
शेष चरित्र कल –


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