श्रीराधिका का प्रेमोन्माद – 20
( मथुरा में – ललिता और श्रीकृष्ण )
गतांक से आगे –
हाथ जोड़ रही है छद्मभेष में, श्रीकृष्ण के सामने बैठी ललिता सखी ।
हाथ मत जोड़ो , स्पष्ट बोलो , और कृपया रोओ मत , मैं इन दिनों भीतर से बहुत भरा हुआ हूँ ।
श्रीकृष्ण ने ललिता को जब रोते और हाथ जोड़ते देखा तो कह दिया ।
भरा हुआ हूँ ? मैं कुछ समझी नहीं ? ललिता ने सहज होते हुये पूछा ।
बताने जा रहे थे …किन्तु रुक गए …फिर श्रीकृष्ण बोले ….छोड़ो …तुम अपनी बात कहो ।
कृष्ण की बात पर सजल नयन ललिता बोली – आप भरे हैं ..किन्तु हम तो रिक्त हो गयीं हैं…..
रिक्त क्यों ? कृष्ण ने इधर उधर देखकर फिर पूछा ।
उस “नीलमणि” के कारण । मेरी सखी अब बिल्कुल रिक्त हो गयीं हैं ….क्यों की वो नीलमणि ही उनका जीवन था ।
ठीक । तुम कह रही हो कि राजा कंस के किसी दूत ने उस मणि को तुम्हारी सखी के हृदय से छीन लिया है , है ना ? कृष्ण ने पुनः पूछा ।
हाँ , मैं यही कह रही हूँ …..और अब मुझे वो मणि मिलनी चाहिये । ललिता ने स्पष्ट कहा ।
कुछ सोचकर कृष्ण बोले – यदि मणि का प्रमाण तुम्हारे पास हो तो वो अवश्य तुम्हें मिल जाएगी ।
किन्तु । किन्तु क्या महाराज !
क्या तुम्हारे पास कोई प्रमाण है ? तुम जोगन ! क्या प्रमाण होगा तुम्हारे पास !
नहीं , महाराज ! मैं प्रमाण अपने साथ रखती हूँ ….और हाँ मैं स्पष्टवादी हूँ …और सामने वाला भी स्पष्ट बोले …मुझे वो अच्छा लगता है । ललिता बोली ….मैं बिना प्रमाण के नही बोलती …आप आज्ञा दें …मैं अभी प्रमाण प्रस्तुत करती हूँ ।
कुछ सोचने लगे कृष्ण …फिर ललिता की ओर देखा ….मुँह ढँकी हुई है ललिता ….उसको देखने का प्रयास करते हैं कृष्ण ….किन्तु ललिता छुपा रही है अपना मुख ।
वैसे क्या प्रमाण है तुम्हारे पास ? कृष्ण ने पूछा ।
लम्बी स्वाँस ली ललिता ने ….फिर बोलना आरम्भ किया ।
हे मथुराधीश !
आप बुद्धिमान हो …सुविचारों से सम्पन्न हो …इसलिए मेरी बात ध्यान से सुनो …ललिता शान्त-गम्भीर होकर बोली – हमारी सखी ने सर्वसमर्पण किया “उसको” सज्जन पुरुष मान कर ….हे महाराज ! फिर उस व्यक्ति ने अपने हस्ताक्षर भी किए …अपने प्रेम का प्रमाण भी दिया ….
वो व्यक्ति कहाँ है ? कृष्ण ने भी गम्भीर होकर पूछा ।
वही बात तो कह रही हैं हम ….कि उस व्यक्ति ने हमारी सखी से विश्वासघात किया महाराज ! और भाग कर चला आया है मथुरा । ललिता तन कर बोली ।
इस समय वो कहाँ है ?
हे महाराज ! वो मथुरा में है ।
कृष्ण कुछ सोचने लगे …..फिर बोले …तुम्हारे मथुरा आए हुए कितने दिन हो गये हैं ……तर्जनी और मध्यमा दिखाकर ललिता ने कहा …दो दिन ।
क्या इन दो दिनों में वो तुम्हें मिला ?
हाँ , मिला ना । मैं आपको भी दिखा सकती हूँ ….ललिता अब पूरे आवेश में है ।
उस व्यक्ति के हस्ताक्षर तुम्हारे पास हैं ?
हाँ, हैं महाराज ! और किसी कारणवश वो अलग मुकर भी जाये तो साक्षी देने वाले बहुत लोग हैं …और सब जीवित हैं …कोई मरे नही हैं ….ललिता आक्रामक हो उठी …और क्यों न हो …उसके सखी की प्राणों पे बन आयी है । आप कहेंगे तो उन सब साक्षियों को भी मैं यहाँ ला सकती हूँ ….वो सब अभी हैं । ललिता एक स्वाँस में सब बोल गयी थी …इतने में ही नही रुकी ललिता वो आगे बोली ….आप विचारशील हैं …आप सब समझते हैं ….इसलिए मैंने आपके श्रीचरणों में सब निवेदन कर दिया है …अब मैं कुछ नही जानती …आप न्याय कीजिये और मेरे सखी की मणि वापस दिलाइये । अब जाकर ललिता चुप हुयी थी ।
ठीक है ….कुछ समय विचार करने के बाद कृष्ण बोले ….ठीक है …तुम प्रमाण प्रस्तुत करो …उस के हस्ताक्षर मुझे दिखाओ । मैं न्याय करूँगा । अपना हाथ आगे किया कृष्ण ने ।
ललिता ने कहा ….मैं प्रमाण दिखाऊँ और मेरे साथ न्याय नही हुआ तो ?
ये क्या बात है …क्यों नही होगा तुम्हारे साथ न्याय ! होगा …कृष्ण बोले …
क्या न्याय करोगे आप ? ललिता फिर पूछती है ।
अगर प्रमाण मुझे मिला तो मैं उसे कही से भी पकड़ कर लाऊँगा और तुम्हारे हाथों में सौंप दूँगा ….फिर तुम ले जाना उसे अपनी सखी के पास । कृष्ण भी स्पष्ट बोले ।
मैं उसे ले जाकर कारागार में डाल दूँ तो ?
हाँ , हाँ …डाल देना कारागार में …कृष्ण ने कहा …और फिर प्रमाण पत्र के लिए अपने हाथ आगे बढ़ाये ।
महाराज ! क्षमा करें ….कुछ बातें स्पष्ट हो जायें तो वो उचित रहेगा । ललिता फिर बोली ।
अब क्या है ? क्या मेरी बात पर तुम्हें विश्वास नही हो रहा ? कृष्ण झुंझला कर बोले ।
नहीं , मुझे ही क्यों …मेरे गाँव के किसी व्यक्ति को मथुरावासी के ऊपर विश्वास नही है ।
अच्छा ! मैं कह रहा हूँ …अब तो विश्वास करो , कृष्ण ने विनीत भाव से और हाथ जोड़कर जब कहा ….तब सजल नयन हो गये ललिता के …बस यही , यही चतुराई जानते हैं मथुरावाले …किन्तु हम तो नागरी हैं नहीं …हम तो वनों में रहने वाली जंगली हैं …भोली हैं ….इसी भोलेपन का लाभ उठा लिया उस व्यक्ति ने , और छीन ली हमारी सखी की मणि, नीलमणि ।
हाय ! तनिक भी दया नही आयी …मेरी सखी के ऊपर उस व्यक्ति को ….भाग कर आगया मथुरा ….ललिता सखी अब रोने लगी …..
मत रोओ जोगन ! मत रो ….कृष्ण के हृदय में शूल की तरह चुभ रहा है ललिता का रोना ।
अपने चादर से अश्रु पोंछे ललिता ने ….फिर बोली ….अच्छा महाराज ! अगर वो अपराधी आपके राजपरिवार का हुआ तो ?
“वो मैं भी अगर हूँ …तो भी दण्ड दूँगा । अपने आपको दण्ड दूँगा”।
कृष्ण एक न्यायप्रिय राजा की तरह दहाड़ कर बोले ।
ये सुनते ही ललिता ने अब अपने मुख का चादर हटा लिया । कृष्ण देखते हैं ललिता को …किन्तु अंधियारी रात के कारण वो पहचान नही पा रहे ।
महाराज ! मैं आपसे कुछ पूछूँगी …और आशा करती हूँ कि आप उचित उत्तर देंगे ।
सहज है अब ललिता , उसे लग रहा है कि श्यामसुन्दर को अब वृन्दावन ले जाता जा सकता है ।
वो मन ही मन अपनी स्वामिनी से बात करती है …स्वामिनी ! श्याम सुन्दर अब आयेंगे वृन्दावन ।
हाँ , पूछो ! जो पूछना है पूछो । कृष्ण भी सहज हो गये थे ….
मैंने “राधा” नाम लिया तो आप बैचेन क्यों हो गये ?
ओह ! ललिता कोई सामान्य तो है नही ……इस प्रश्न ने फिर झकझोर दिया था कृष्ण को ….उनको रोमांच होने लगा , नेत्र मानौं बरसने के लिए तैयार हों ।
महाराज ! एक प्रश्न और ……ललिता ने अवसर जाना और दूसरा प्रश्न और कर दिया …..
राधा आपकी क्या लगती हैं ?
उफ़ ! ये क्या प्रश्न कर दिया ललिता ने ….पर ललिता ने जानबुझ कर ये प्रश्न किया था । ये देखना चाहती है कि कृष्ण के हृदय में उसकी स्वामिनी राधा की स्थिति क्या है ।
इस प्रश्न को सुनते ही …….हिलकियाँ शुरू हो गयीं कृष्ण की ….वो रो पड़े ……
राधा ! राधा !
दो बार ही बोल सके थे फिर अपने को सम्भालकर नेत्रों को बन्द कर लिया कृष्ण ने ।
क्रमशः….


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