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July 21, 2025 5:13 am

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!! “श्रीराधाचरितामृतम्” – 86 !!-अथातो “प्रेम” जिज्ञासा भाग 3 : Niru Ashra

!! “श्रीराधाचरितामृतम्” – 86 !!-अथातो “प्रेम” जिज्ञासा भाग 3 : Niru Ashra

“श्रीराधाचरितामृतम्” – 86 !!

अथातो “प्रेम” जिज्ञासा
भाग 3

उद्धव ! तुम कह सकते हो …………कि वो तो तुम लोगों से कहा होगा …..ऐसे ही सांत्वना देनें के लिये …………..तो उद्धव ! उसनें तो अपनें माता पिता से भी ऐसे ही कहा है ……….पूछो नन्द बाबा से ?

उद्धव नें इतना अवश्य पूछा – आप कहना क्या चाहती हैं ?

क्या उनके मथुरा में स्थाई बैठनें से आपको कोई आपत्ति है ?

नही नही उद्धव ! नही ……………श्रीराधारानी बोलीं …..

वो मथुरा के महल में रहते होंगें ……….दास दासियाँ होंगीं …….उनके चरण दवानें वाले होंगें ………..उद्धव ! वो खुश हैं ना ?

अगर वो खुश हैं ………तो वो वहीं रहें ….यहाँ न आएं ।

श्रीराधारानी नें कहा………तो उनके स्वर में स्वर मिलाती हुयी सब गोपियाँ कहनें लगीं……..हाँ वो वहीं रहें ….यहाँ न आएं ।

यहाँ हमनें मात्र उन्हें दुःख ही दिया है ………वहाँ सुखी होंगें ।

हमें अच्छा लग रहा है उद्धव ! वहाँ उनकी पूजा होती होगी ? उनकी आराधिकाएं भी होंगीं वहाँ ? श्रीराधारानी नें पूछा ।

क्या यहाँ पर भी उनकी पूजा आप लोग करती थीं ?

उद्धव नें पूछा ।

हँसी सब गोपियाँ ………हम ? हम क्या जानें पूजा कैसे होती है ?

धूप ,दीप , नैवेद्य ये सब तो हम जानती नही ……..हाँ ……स्नेह से उनकी पूजा करती थीं ………प्रेम से उन्हें देखती थीं ………..फिर प्यार से उन्हें छूती थीं ………नैवेद्य – भोग के नाम पर हम अपनें अधर रस उन्हें पिलाती थीं……उनको आलिंगन करती ………उन्हें अपनें वक्ष के सिंहासन में विराजमान करती ……….हाँ हमारे कठोर कुच उनके कोमल अंगो में न चुभें इस बात से डरती भी थीं ।

उद्धव ! हमें तो ब्रह्मानन्द से भी ज्यादा सुख मिला उनके यहाँ रहनें से ….पर हमें लगता है उन्हें कष्ट ही हुआ…….हमनें उन्हें कष्ट ही दिया…..

हे उद्धव ! अब उन्हें यहाँ आनें के लिये मना कर देना …….वो नही आएं यहाँ ………….ये कहते हुए सारी गोपियाँ दहाड़ मारमार कर रोनें लगीं …….श्रीराधारानी के तो अश्रु गिरते ही रहते हैं ………..

उद्धव नें अब ये अंतिम विचार किया ………क्यों की इसके बाद उद्धव अब विचार भी नही कर पाएंगे ……..क्यों की बुद्धि नें अब काम करना बन्द कर दिया है……..अब मात्र हृदय का शासन है …..हृदय जो कहेगा अब वो होगा ।

ओह ! तो प्रेम ये है …………”प्रियतम के सुख में सुखी रहना” ।

प्रेम के मूल सिद्धान्त को उद्धव नें खोज निकाला था ।

“स्वसुख वान्छा का पूर्ण त्याग”

उद्धव को पता नही क्या हुआ ……..अश्रु गिरनें लगे थे उद्धव के ।

प्रेम के सिद्धान्त को विचारों के माध्यम से तो समझ लिया था उद्धव नें ……

पर प्रेम, विचार करनें से पूर्ण समझ में नही आता …….इसके लिये तो उतरना पड़ता है …….इस प्रेम सागर में डूबना पड़ता है ……….

तो अब उद्धव प्रेम के इस सिन्धु में डूबनें के लिये भी तैयार हैं ।

शेष चरित्र कल –

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Author: admin

Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877

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