!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 87 !!
जयति जयति जय “प्रेम”
भाग 2
यहाँ की वीथियों में …….बृज भूमि में…….तुम देखो उद्धव ! उनके चरण चिन्ह बने हुए हैं…..शंख, चक्र, गदा, कमल, वज्र , अंकुश …..इन सबके चिन्ह हैं…….जहाँ बैठो वहीं चिन्ह बनें हैं……कैसे भूलोगे उसे उद्धव !
पर आप लोग अपनें चिन्तन के विषय को बदल सकती हैं ……….जैसे- श्रीकृष्ण का चिन्तन करती हैं ना ……उसकी जगह किसी और का चिन्तन कीजिये ……..उद्धव नें अपनी तरफ से ये बात कही ।
कैसे ? श्रीराधारानी नें अपनें कपोल में हाथ रखकर उद्धव से पूछा ।
बुद्धि को जगाइए………और बुद्धि को समझानें दीजिये मन को …….कि कोई लाभ नही है……श्रीकृष्ण के लिये इस तरह रोनें से कोई लाभ नही है ……….बुद्धि की सहायता से आप इस कष्ट से दूर हो सकती हैं…….उद्धव नें अंतिम प्रयास किया समझानें का ।
फिर हँसीं श्रीराधारानी और साथ में समस्त गोपियाँ भी………..
“हमारे पास बुद्धि ही नही है” सबनें यही उत्तर दिया था ।
उद्धव का सिर चकराया ………ये क्या बात हुयी …………..
हाँ उद्धव ! हम सच कह रही हैं ……….हमारे पास बुद्धि नही है ………नही नही ……थी …..बुद्धि थी हमारे पास …….पर अब नही है ….
अब तुम पूछोगे कि बुद्धि थी तो गयी कहाँ ? तो उद्धव ! हमारी बुद्धि को तुम्हारे श्याम सुन्दर नें हर लिया ……………
वो बांसुरी बजाता था ………हर लिया बाँसुरी नें हमारी बुद्धि को ।
वो हमें छेड़ता था …..हमारी मटकी फोड़ता था …….माखन चुराकर हमारी बुद्धि हर ली तेरे श्याम सुन्दर नें ।
वो हमें आलिंगन करता था ………….हमें छूता था …….यहाँ ! यहाँ ! यहाँ ! हमें छू छू कर ही उसनें हमारी बुद्धि हर ली ।
वो मुस्कुराता था ………..उसकी मुस्कुराहट से देव महादेव तक विचलित हो जाते थे ……..तो हम क्या हैं ?
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –


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