!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 88 !!
उद्धव का दिव्य प्रेमानुभव
भाग 2
“ये कृष्ण सखा हैं”.
….श्रीराधारानी के माता पिता …….वो भी मुझ से मिलनें आगये थे बाग़ में ही……तब मेरा परिचय दिया था श्रीजी नें ।
मैनें उठकर उनके चरण छूनें चाहे ………पर कहाँ मुझे चरण छूनें देते ।
उन्होंने मुझे उठाकर अपनें हृदय से लगा लिया था….श्री बृषभान जी नें ।
बिल्कुल कन्हाई जैसा है ना ? माँ कीर्ति रानी का कहना था ।
कब आएगा कन्हाई ? आएगा ना ? कीर्तिरानी भावुक हो गयीं थीं ।
बेचारे नन्दराय ! बेचारी यशोदा जीजी ! उनका दुःख अब हमसे देखा नही जाता …………दिन भर बस रोती रहती हैं …………माखन ही निकालती रहती है ……….कहती है मेरा कन्हाई आएगा ।
कीर्तिरानी ये सब कह रही थीं ……..कि तभी श्रीराधारानी के सुबुकनें की आवाज पर सब शान्त हो गए थे ………………..
धीरे से बोलीं कीर्तिरानी – कृष्ण सखा ! किसके दुःख को गाऊँ ! घर में हमारी लाली दिन भर रोती रहती है ……….उन्माद चढ़ा रहता है ……पर श्रीराधा रानी को सामनें देखते ही कीर्तिरानी चुप हो गयीं ।
थक गए होगे कृष्ण सखे ! ये भोजन है …….कुछ खा कर सो जाओ ।
ललिता सखी भोजन ले आई थीं……..बृषभान जी नें भोजन करके विश्राम करनें को कहा…..उद्धव से विदा लेकर महल में चले गए थे ।
श्रीराधारानी के साथ अष्टसखियाँ भी थीं………उन्होंनें भोजन कराया उद्धव को………श्रीराधारानी देखती रहीं………..हाथ धुलाकर सखियाँ जानें लगीं ……..तो श्रीराधारानी नें कहा ……..उद्धव ! यही बरसाना है ………मैं जब नन्दगाँव नही जाती थी ……तो वो यहाँ आजाते थे ।
उधर देखो ! उस यमुना के घाट पर नित्य शाम को हम मिलते थे ……..
वो देखो ! साँकरी खोर ……
………मैने बहुत जिद्द की थी कि मैं माखन बेचनें जाऊँगी…….मेरे बाबा और मेरी मैया नही मानें…….उनका कहना था कि बरसानें के अधिपति बृषभान कि बेटी माखन बेचनें जायेगी !……पर मेरे भैया श्रीदामा नें मेरा बहुत साथ दिया …….उन्होंने ही मेरे मैया और बाबा को समझा कर मुझे माखन बेचनें जानें कि आज्ञा दे दी……मैं बहुत खुश थी ……..मेरा प्रयोजन माखन बेचना थोड़े ही था ……..मुझे तो नित्य श्याम सुन्दर के दर्शन करनें थे ……….पर ……..ये कहते हुए श्रीराधारानी हँसी ….खूब हँसी ………साँकरी खोर ! इसी साँकरी खोर में प्रथम दिन ही मेरी मटकी फोड़ दी थी उसनें ………..मेरी सब सखियाँ बहुत दुःखी हो गयीं थीं ……..बस मैं ही बहुत प्रसन्न थी ……..मैं उस दिन बहुत आनन्दित रही ……….फिर तो – नित्य का ही ये नियम ही बन गया था …….श्याम सुन्दर को देखे बिना चैन कहाँ मिलता ।
उद्धव ! पहली बार जब मैने उन्हें देखा था ना ……उन्मादिनी तो मैं तभी हो गयी थी…….मैं शुरू से ही ऐसी पगली हूँ…….एक दिन कुञ्जों में हम दोनों बैठे थे …….मैं उनके बाहों में थी ………वो मुझे निहारते ही जा रहे थे………पर पता नही मुझे क्या हुआ ! मैं चिल्ला पड़ी ….हे श्याम सुन्दर कहाँ गए ? मेरे बाँहों में वो थे …..पर मुझे लग रहा था कि वो मुझ से दूर चले गए……..पर आज ?
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –


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