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July 20, 2025 10:37 pm

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!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 89 !!-बरसानें के ब्रह्माचल पर्वत से…भाग 3 : Niru Ashra

!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 89 !!-बरसानें के ब्रह्माचल पर्वत से…भाग 3 : Niru Ashra

!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 89 !!

बरसानें के ब्रह्माचल पर्वत से…
भाग 3

विशेष यानि ईश्वर …..विशिष्ठ यानि परमात्मा ………परमात्मा जिसका पति हो ………….उसे उद्धव कहते हैं ………उद्धव नें ये क्या अर्थ कर दिया था अपनें नाम का ………..स्वयं उद्धव भी समझ नही पाये ।

हँसी ललिता सखी…….उनकी वो खिलखिलाती हँसी ।

यानि उद्धव ! तुम भी सखी हो ………..हँसते हुये ही बोलीं थी ललिता ।

” विशेष पुरुष” जिसका पति हो……..उसका नाम उद्धव है ।

अब गम्भीर हो गयी थीं ललिता सखी ………….

उद्धव ! बिना अपनें हृदय में उतरे…..उन परम पुरुष की प्राप्ति होती नही है ।

बुद्धि से तर्क, विचार, यही सब प्रकट होते हैं……पर प्रेम रूपी परमात्मा का साक्षात्कार तो हृदय के भाव से ही होता है…….शान्ति, विश्राम, आनन्द हृदय से ही फूटते हैं……..

आहा ! कितना सुन्दर दर्शन, भाव भक्ति और प्रेम का ……..उद्धव आनन्दित हो रहे हैं ।

उद्धव ! वो है गिरिराज गोवर्धन ………दर्शन करो !

उद्धव दर्शन करते हैं……….इसको धारण किया था श्याम सुन्दर नें ।

सात दिन तक धारण किया ।

सब दुःखी हो रहे थे……..ऊपर से देवराज नें कर दी थी वर्षा घनघोर……और इधर छोड़ा सा श्याम सुन्दर अपनी ऊँगली में गिरिराज को धारण किया हुआ ।

मैया यशोदा तो मूर्छित ही हो गयीं थीं ………

ग्वाल बाल भी परेशान दिखाई दिए थे उस समय ……..पर ये युगलवर दोनों ही बड़े प्रसन्न थे………एक दूसरे को अपलक देखे जा रहे थे …….हँसी ललिता सखी ये कहते हुए फिर ।

पर सात दिन जब बीत गए ना……वर्षा बन्द होगयी ……..तब हमारी श्रीराधा रानी नें बड़े प्रेम से श्याम सुन्दर को अपनें हृदय से लगाते हुए कहा था…….कोई बड़ा काम नही किया है तुमनें प्यारे ! एक गिरिराज पर्वत को ही तो उठाया है ……..पर मैने ?

श्रीराधारानी नें अपनी प्रेम की ठसक में कहा था –

हे श्याम ! मैने तो तुम्हे और तुम्हारे गिरिराज पर्वत सहित ………..अपनें नयनों के कोर में उठाया ……….

अब तुम्हीं बताओ – कनिष्टिका ऊँगली में पर्वत को उठाना बड़ी बात या उठानें वाले के सहित पर्वत भी, आँखों की कोर पर उठाना ?

ललिता सखी ये बताते हुए भावावेश में थी ।

उद्धव आनन्दित हुये ………ललिता सखी को बारबार कहा …….कि मेरी अब एक ही इच्छा है ………हे ललिते ! कि कहीं न जाऊँ ……….बस यही जीवन पर्यन्त बृजवास करूँ ।

पर मुझे जाना पड़ेगा मथुरा……..मैं जाऊँगा …उद्धव नें कहा ।

क्यों ? क्यों जाओगेँ उद्धव !

ललिते ! इसलिये जाऊँगा कि मैं “उन्हें” यहाँ ला सकूँ …….और इस बृज का दुःख दूर कर सकूँ …….मैं श्याम सुन्दर को यहाँ वापस लाऊँगा ……मेरा वचन है आपसे ।

“नही उद्धव ! नही …….उन्हें मत कहना यहाँ आनें के लिये”

उद्धव और ललितासखी नें पीछे मुड़कर देखा था …………

सामनें से आरही थीं श्रीराधा रानी ………..वहीं कह रही थीं …..

“नही उद्धव ! उन्हें मत कहना यहाँ आने के लिये”

शेष चरित्र कल –

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