!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 90 !!
श्रीराधारानी द्वारा उद्धव को “प्रेम” का उपदेश
भाग 1
“नही उद्धव ! उन्हें मत कहना यहाँ आनें के लिए”
चौंक कर , मुड़कर उद्धव और ललिता सखी नें देखा …….तो सामनें से बृषभान दुलारी श्रीराधारानी आरही थीं ।
वही कह रही थीं……नही उद्धव ! आना होता तो वे आजाते ……
यहाँ आनें से शायद उन्हें कष्ट होगा …… हमनें प्रेम किया है श्याम सुन्दर से……..फिर हम ये कैसे चाह सकती हैं कि ……उनको कोई कष्ट हो ……..वो जिस में सुखी हैं ….जहाँ सुखी हैं ……….बस वो सुखी रहें ……..न आएं यहाँ …………कोई बात नही …….हम तो नारी जात हैं……दुःख – कष्ट उठाना हमें आस्तित्व नें ही सिखाकर भेजा है ।
और हमारा क्या है उद्धव ! नारी जात, उसपर भी जंगल – वनों में रहनें वाली …….उसपर भी धर्म शास्त्र को तिलांजलि देकर इस प्रेम पन्थ में चलनें वाली…….दुःख तो हमें मिलेगा ही………..पर अपनें दुःख की हमें किंचित् भी परवाह नही है ………चिन्ता तो हमें हर समय श्याम सुन्दर की ही खाये जाती है …….इतना कहकर अश्रु बहानें लगीं थीं खड़ी खड़ी श्रीराधारानी ।
आगे बढ़कर श्रीचरणों में साष्टांग प्रणाम किया उद्धव नें ………….
ललिता सखी नें सम्भाल कर एक पर्वत शिला पर अपनी चूनरी बिछा दी थीं …….श्रीराधारानी उस पर विराज गयीं ।
उद्धव आँखें बन्दकर , श्रीराधा के चरणों में बैठ गए थे ।
उद्धव ! प्रेममय परमात्मा का इस प्रेममयी सृष्टि में नित्य बिहार चल ही रहा है ……….वो मुझ में ही हैं ……और मैं उनमें ।
जैसे तुम ज्ञानी लोग “ब्रह्म ब्रह्म” करते , कहते रहते हो ना ……….पर उद्धव ! मैं तुमसे ही पूछती हूँ ……”ब्रह्म” का बाप कौन है ?
सजल नेत्रों से उद्धव नें श्रीराधारानी के मुखारविन्द की ओर देखा ।
मैं बताती हूँ आज……….अरुण मुखारविन्द हो गया था श्रीराधा का ।
“प्रेम है ब्रह्म का बाप”………प्रेम है ब्रह्म को पैदा करनें वाला …………
श्रीराधा के मुखारविंद से ये सुनकर उद्धव स्तब्ध से हो गए थे ।
क्यों उद्धव ! क्या ये सच बात नही है कि – ब्रह्म, प्रेम से ही उत्पन्न होता है.! ……..ब्रह्म रूपी कार्य का कारण प्रेम ही तो है ।
परमभक्त प्रल्हाद नें खम्भे में से ब्रह्म को प्रकट किया था …..नही ?
अगर किया था तो प्रल्हाद के हृदय में उमड़ रहे प्रेम के अलावा और क्या कारण था ? बताओ उद्धव ?
इस सम्पूर्ण जगत में अगर किसी की सबसे ज्यादा महिमा है तो – वह है प्रेम …..प्रेम …..प्रेम………इतना कहकर फिर हिलकियों से रोनें लगीं थी श्रीराधारानी ।
हाथ जोड़कर प्रार्थना करनें लगे थे उद्धव ।
हे स्वामिनी ! हे हरिप्रिये ! आप ऐसे उद्विग्न न हों ………
मैं एक बात आप से सच सच कह रहा हूँ …………..मैने कई बार एकान्त में श्रीकृष्ण को आपका नाम लेकर रोते हुए देखा है ………..आप को मैं सच कह रहा हूँ ……श्रीकृष्ण भी आपके वियोग में रोते रहते हैं …….
क्रमशः …
शेष चरित्र कल –


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