!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 94 !!
उद्धव को आज छ महिनें हो गए …
भाग 3
मैं रोता रहा……..और उस कदम्ब को गले से लगाता रहा ।
आज वर्षा रुकनें वाली नही लगती……..खूब बारिश हो रही है ।
उद्धव कदम्ब वृक्ष को गले से लगाकर जानें लगे …………….
फिर एक बार कदम्ब को मुड़कर देखा था उद्धव नें ।
सब कुछ चिन्मय है यहाँ तो ! उद्धव कि इच्छा होती है कि ……सबको प्रणाम करते चलें …..सबको साष्टांग दण्डवत करते चलें ।
कितनें दैन्य हो गए थे उद्धव ….
…सारा ज्ञान बहा ले गयी थी प्रेम की धारा ।
उद्धव ! तू कहाँ गया था ? कितना भींग गया है तू ?
रात्रि हो गयी है………मैं भी आज देरी से आया…….मुझे कुछ भान ही नही रहता इस वृन्दावन में……यहाँ सब प्रेम से भरे हैं ….ग्वालों और गोपीयों की बात छोडो ……यहाँ के वृक्ष भी …लताएँ भी, सब ।
“बिल्कुल मेरे कन्हाई जैसा है तू …..चल कपड़े बदल ले ….भींग गया है”
मेरे नेत्रों से अश्रु बह चले थे …………इस तरह से तो मुझे मेरी जननी नें भी नही डाँटा ……………..
“ले इससे पोंछ लें …….गीले केश हैं ………कहीं सर्दी लग गयी तो”
कितनी ममता है इनमें ………हाँ ऐसे ही श्रीकृष्ण की माता बननें का सौभाग्य तो नही मिलता ना !
ये वस्त्र बदल ले …………….सुन उद्धव ! ये मेरे लाला की धोती है …..पहन ले तू …………ये कुर्ता है ……..सुन ! ये उत्तरीय ।
कृपा करके श्रीकृष्ण की मैया नें ………मुझे प्रसादी वस्त्र दिए ।
मैं वस्त्र पहन कर जब बाहर आया…….तो मुझे देखती रहीं मैया …..
साँवरा है तू भी ……मेरा कन्हाई भी साँवरा …….तेरे केश भी घुँघराले …..उसके भी घुँघराले …………..तेरी हँसी ……उसकी हँसी …….कितनी मिलती है ……………..
माता ! मैं कल जाना चाहता हूँ मथुरा…….आप आज्ञा दें ।
मैने मैया से प्रार्थना की ।
क्या ! तू जाएगा मथुरा ? फिर नेत्र सजल हो चुके थे मैया के ।
इतनी जल्दी जाएगा ? क्या तेरा भी मन नही लगा यहाँ ?
उद्धव ! बता ना ! हम लोगों में क्या कमी है ? यहाँ कोई रहना ही नही चाहता …………देख ! कन्हाई का मन नही लगा यहाँ …..तो चला गया …..दाऊ का भी तो मन नही लगा ……..उसकी माता रोहिणी, उसका भी मन नही लगा यहाँ ……हम लोगों के साथ मन नही लगा ।
रो गयीं हिलकियों से मैया यशोदा – उद्धव ! बता ना ! हम लोगों में क्या कमी है …….हमारे इस वृन्दावन में क्या कमी है ……….हम सुधारेंगें अपनी कमी को ………..सच उद्धव ! बता ना ?
हे वज्रनाभ ! उद्धव नें अपनें आँसू पोंछे ……..हे मैया ! कमी आप वृन्दावन वासियों में नही है …….कमी हम नगर निवासियों में है …..आप लोगों का स्वार्थ रहित प्रेम ……इस भूमि की चिन्मयता …….दिव्य है ……कौन नही रहना चाहेगा इस श्रीधाम में ………और आप लोगों के प्रेम की छाँया में……..मैं तो विधाता से यही माँगता हूँ कि …….इस भूमि में, मैं बारबार आऊँ …….यहीं का कुछ बन जाऊँ ।
कुछ भी मैया ! लता पता भी ……..उद्धव नें अपनें आँसू पोंछे ।
मैया के आँसू पोंछते हुए बोले – मैया ! मैं नही जाता वृन्दावन से. …..मैं आजीवन यहीं रहता …..किन्तु मुझे जाना पड़ेगा…….मैं जाऊँगा ……मैया ! मुझे इस वृन्दावन के दुःख को दूर करना है …..मैं लेकर आऊँगा आपके लाला को …….हाँ मैया ! आपका लाला अब जल्दी ही आनें वाला है ……..मैं लाऊँगा उन्हें , मैं वचन देता हूँ आपको ।
अच्छा ! ठीक है ……..भूख लगी होगी, रात ज्यादा हो गयी है …..तू कुछ खा ले उद्धव ! मैया यशोदा नें रोटी और माखन दिया ।
उद्धव चुपचाप खाते रहे ………………..
तू कहाँ गया था आज ?
बरसानें गया था मैया ! कल जा रहा हूँ मथुरा , ये बतानें के लिये गया था ………श्रीराधारानी तो नही मिलीं ……….वो प्रेम के उन्माद की स्थिति में थीं ……….बस दूर से ही चरण वन्दना करके ………ललिता सखी को – “मैं कल जा रहा हूँ मथुरा” ……ये सूचना श्रीराधिका जी को दे देना …………इतना कहकर मैं श्रीबृषभान जी और कीर्ति मैया से मिलता हुआ ……ग्वालों अन्य गोपियों से मिलता हुआ………..सब को बता कर आगया हूँ कि ……मैं कल जा रहा हूँ ।
‘तुझे लगता है वो आएगा”……..मेरा हाथ धुलाते हुये पूछ रही थीं मैया ।
क्यों नही आएगा ………और वहाँ मथुरा में है क्या ?
मैया यशोदा कुछ नही बोलीं …….उद्धव शैया में जाकर लेट गए थे ।
शेष चरित्र कल –
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