महारास (दिव्य प्रेम का नृत्य) (009) : Niru Ashra
महारास (दिव्य प्रेम का नृत्य) (009) (स्वामी अखंडानंद सरस्वती ) रास की भूमिका एवं रास का संकल्प -भगवानपि०- प्रेमाद्वयोरसिकयो रविदीप एव, हृद्वेश्म भासयति निश्चल एष भाति ।त्वाराधयं वदनतस्तु विनिर्गतश्चेद्, निर्याति शान्तिमथवा तनुतामुपैति ।। यह प्रेम जो है, वह प्रेयसी और प्रेय दोनों के हृदय मंदिर में रहता है और दीपक के समाना प्रज्वलित होता है। … Read more