श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! “पनघट पे”- एक प्रेम प्रसंग 2 !!
भाग 1
अरी सुन तो ! वे ऐसे नही हैं …….वे मेरी मुदरिया क्यों चुरानें लगे !
बृजराज कुँवर हैं वे ……..उनके पास क्या कमी , जो मेरी मुदरिया के पीछे पड़ेंगें ! ललिते ! रहनें दे उनको अगर पता चलेगा ना कि हमारे मन ये भाव है उनके प्रति …….तो सोच कितनें दुःखी होंगें ।
राधिका जी ललिता सखी को समझा रही हैं ………..पर ललिता ऐसे कैसे मान जाये ….!
आप बहुत भोरी हो ……..और वे चोरों के सरदार ……अँधेरी रात में भी चोरी करते फिरे थे ये गोकुल में ……….मुझे सब पता है ……
और आप अपनें ऊपर क्यों ले रही हो ………मेरे ऊपर डाल दो ना ……..हे राधिका जु ! कह देना कि ललिता कह रही है ………बस !
ठीक है …….जैसी तेरी इच्छा …..पर ललिते ! उन्होंने मुझे नृत्य सिखाया और मैं उनपर चोरी का आरोप लगाऊँ ?
आप कहाँ लगा रही हो …….मैं लगा रही हूँ ……….आप कह देना इस ललिता को अपनी तलाशी दो ……..ये आपकी तलाशी लेगी ।
ओह ! तू अब उन नन्दनन्दन की तलाशी भी लेगी ?
और क्या ? चोरों की तो तलाशी ही ली जाती है ……….ललिता बड़े ठसक से बोले जा रही थी ………और अपनी स्वामिनी को उसी पनघट में लेकर गयी जहाँ श्याम सुन्दर बैठे थे ।
ये प्रेमपूर्ण लीला है तात ! इसका दर्शन करो ! उद्धव नें कहा ।
“कन्हाई बैठे हुए हैं…….बड़े प्रसन्न हैं…..राधिका जु की मुद्रिका को बारबार चूम रहे हैं…….और बड़े आनन्दित हो रहे हैं ।
तभी सामनें से आती हुई देखीं राधिका जु और साथ में कई सखियाँ उनकी ………
तुरन्त फेंट में मुद्रिका छुपा ली ………….और खड़े हो गए ।
कहाँ है श्याम सुन्दर ?
ललिता सखी नें पास में पहुँचते ही पूछ लिया था ।
मेरे पास नाँय सखी ! कन्हाई भी बोल दिए ।
ललिता हँसी……खूब हँसी ……क्या नही है तुम्हारे पास ?
मोय का पतो, तेनें कही, कहाँ है ?
तो मैने भी तुक मिलाय दियो कि – मेरे पास नाँय ।
तुक मत मिलाओ ……अब तो मुद्रिका सीधे सीधे दे दो ।
मेरे पास में कहाँ तिहारी मुद्रिका सखी !
कन्हाई हँसनें लगे ।
मेरी नहीं मेरी स्वामिनी जु की मुद्रिका ………..दे दो ।
मेरे पास में नही है ……..बाकी तोय जो करनी होय कर ले ।
अब तो राधिका जु को आगे आना ही पड़ा ………हे प्यारे ! अगर आपकुँ हमारी मुद्रिका मिली होय तो दे दो ……नही तो हम जा रही हैं ।
बड़ी विनम्रता से राधिका जु नें कहा था ।
ललिता ताली बजाकर हँसी …………हे मेरी भोरी स्वामिनी ! चोरन ते ऐसे बात नही कियो जाय !
हम चोर हैं ? कन्हाई थोड़े क्रोधित से हुए ।
नही ….आप चोर नही ….चोरन के सरदार हो …….अब बातन कुँ मत बनाओ चुपचाप मुद्रिका दे दो ।
मेरे पास नही ……….दो टूक बोले ।
*क्रमशः …


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