🙏🌺🙏🌺🙏🌺🙏
!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 104 !!
गहवर वन में जब “रात” ठहर गयी…
भाग 1
गहवर वन…..बरसानें का गहवर वन…..यहीं मिलते थे युगलवर ।
यहाँ की वृक्ष लताएँ, मोर अन्य पक्षी सब साक्षी हैं…..प्रेम मिलन के ।
“मैं रंगदेवी”
प्रिय सखी श्रीराधारानी की ।
सारंग गोप और करुणा मैया की लाडिली बेटी …….रंगदेवी मैं ।
मेरे पिता सारंग गोप सरल और सहज स्वभाव के थे ………..मित्रता थी भानु बाबा से मेरे पिता जी की ……….और मेरी मैया करुणा, वो तो कीर्तिमैया की बचपन की सखी थीं………मायका इन दोनों का एक ही है ……..बचपन से ही मित्रता और विवाह भी एक ही गाँव बरसानें में हुआ………कहते हैं ……मेरा जन्म भादौं शुक्ल पूर्णिमा को हुआ था……..तब सब नाचे थे …..कहते तो हैं कि मेरे जन्म के समय कीर्तिमैया भी खूब नाचीं थीं……….मैं एक नही जन्मी थी …….हम तो जुड़वा जन्में थे………मेरी छोटी बहन का नाम है सुदेवी ।
हम दोनों बहनें हीं श्रीजी की सेवा में लग गयीं……..और हमारी कोई इच्छा भी नही थी……..विवाह तो करना ही नही था ….. श्याम सुन्दर और हमारी श्रीराधा रानी की प्रेम लीला प्रारम्भ हो चुकी थी……..पता नही क्यों हम दोनों बहनों की बस यही कामना होती थी कि …..इन दोनों युगलवरों को मिलाया जाए……राधा और श्याम सुन्दर दोनों प्रसन्न रहें……….बस विधना से हमनें सदैव यही अचरा पसार के माँगा है ।
पर विधना भी हमारी लाडिली के लिये कितना कठोर हो गया था ।
असह्य विरह दे गया…….और कल तो ललिता सखी नें एक और हृदय विदारक बात बताई …….कि मथुरा भी छोड़ दिया श्यामसुन्दर नें ?
मत बताना स्वामिनी को …………यही कहा था ललिता सखी नें ।
मुझ से सहन नही होता अब ………..कैसे सम्भालूँ मैं इन्हें ।
आज ले आई थी गहवर वन………मुझे लगा था कि थोडा घूमेंगीं तो मन कुछ तो शान्त होगा ……..पर अब मुझे लग रहा है कि बेकार में लाई मैं इन्हें यहाँ……….यहाँ तो इनका उन्माद और बढ़ेगा ……..क्यों कि यहीं तो मिलते थे श्याम सुन्दर और ये श्रीजी ।
वन के समस्त पक्षी एकाएक बोल उठे थे ………मैने इशारे में उन्हें चुप रहनें को कहा ……….पर मानें नहीं ……..पूछनें लगे थे ……….कहाँ है श्याम ? कहाँ है श्याम ?
ओह ! मेरी श्रीराधा तो जड़वत् खड़ी हो गयीं…….चारों और दृष्टि घुमाई ……….वन को देखा …………सरोवर में कमल खिले हुए थे ……कमलों को देखा……..लताओं को छूआ ।
तुम को विरह नही व्यापता ? हे गहवर वन के वृक्षों ! क्या तुम्हे याद नही आती मेरे श्याम सुन्दर कि ……..क्या तुम्हे याद नही आती ! वो मेरे श्याम तुम्हे छूते थे ……क्या उनके छुअन को तुम भूल गए ?
कैसे इतनें हरे हो ? कैसे ? हे गहवर वन कि लताओं ! तुम जरी नही ?
इतना कहते हुये विरहिणी श्रीराधा , हा श्याम ! हा प्राणेश ! कहते हुये मूर्छित हो गयीं थीं ।
रंग देवी ! कहाँ हो तुम ? मैं यहाँ अकेले ? रात हो रही है !
ओह रंग देवी ! पता नही क्यों मुझे रात्रि से डर लगता है …..मैं डरती हूँ ……..क्यों की रात्रि को मेरा उन्माद बढ़ जाता है …………और रात्रि का समय कटता भी नही है ………..काटे नही कटता ।
क्रमशः…
शेष चरित्र कल –
👏 राधे राधे👏


Author: admin
Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877