*श्रीकृष्णचरितामृतम्*
*!! “जे तो जूठो खावे” – भक्तिवश्य भगवान् !!*
*भाग 4*
कुटिया में गया ……मनसुख की माता पौर्णमासी ध्यान में लीन थीं ।
मनसुख खोजनें लगा गुड़ …………पूरी कुटिया इधर उधर कर दी ……सारा सामान अस्त व्यस्त कर दिया ……..पर गुड़ नही मिला ।
विध्न हुआ ध्यान में तो पौर्णमासी का ध्यान टूटा ……..उनका पुत्र मनसुख कुछ खोज रहा है …………….
मौन हैं इस समय मनसुख की माता ……..इशारे में पूछा ……क्या चाहिये ? मनसुख चिल्लाके बोला ……गुड़ कहाँ है माँ ? मैने दो दिन पहले यहाँ गुड़ देखा था …………मनसुख चरणों में बैठ गया अपनी मैया के ………माँ ! कन्हैया नें आज पहली बार मुझ से कुछ खानें के लिये माँगा है……..बड़े प्रेम से माँगा है माँ ! गुड़ कहा ?
पौर्णमासी नें इशारे में ही कहा – उस थैले में गुड़ है ……..गुड़ पुराना है …..पुराना गुड़ फायदे मन्द होता है ।
मनसुख उछलता हुआ थैले को देखनें लगा …..एक काली सी गुड़ की ढेली थी ….ये गुड़ ! …..बड़े अनमनें ढंग से गुड़ को लेकर चल पड़ा मनसुख ।
पर गुड़ को पाने में जितनी शीघ्रता थी मनसुख को ….अब लेकर कन्हैया के पास जानें में नही है ।
पद मनसुख के बढ़ नही रहे कन्हैया की ओर ……गुड़ हाथ में ही है …..वो तोड़नें की कोशिश करता है …….पर नही टूट रहा ।
इतना कठोर गुड़…..हाय ! कोमल मेरा कन्हैया है …….वो इस गुड़ को खायेगा ?
मन दुःखी हो गया मनसुख का ………पहली बार कन्हैया नें मुझ से कुछ खानें को माँगा है …….और मैं ये गुड़ खिला रहा हूँ उसे !
मनसुख ये सब सोचते हुए जा रहा है ।
पहुँच गया कन्हैया के पास में ।
“ये रबड़ी तो खा ! बस ! इतनी ही खायेगा ?
एक सखा मनुहार कर रहा था ……कन्हैया मना कर रहे थे ।
मनसुख वहीँ रुक गया …..उसके पद आगे बढ़ नही रहे अब ।
वो रबड़ी खा रहा है ……उसके सखा उसे खीर खिला रहे हैं ….और मैं ?
टप् टप् आँसू बहनें लगे मनसुख के …….”.रहनें दे …….इस गुड़ को तू कन्हैया को मत खिला” ……….मन ने ही मनसुख को रोका ।
सब सखाओं नें देखा मनसुख आगया है ………..पर दूर खड़ा है …..पता नही क्यों ?
अब कन्हैया नें भी मनसुख को देखा ……..वो दौड़े उसके पास ।
मनसुख देख रहा है ………..ये जिद्दी है ………ये गुड़ तो अवश्य खायेगा …पर उसके कोमल जबड़ों को कितना कष्ट होगा ………..
कन्हैया दौड़ रहे हैं ……..पास में पहुंचनें ही वाले है ।
इसे मैं ही खा लेता हूँ ………कह दूँगा – कल ले आऊँगा गुड़ !
इतना कहकर मनसुख नें उस गुड़ को अपनें मुँह में डाल लिया ।
ये क्या किया मनसुख ! तू कुछ खा रहा है ……..कन्हैया मनसुख के पास पहुँच गए थे……और पूछ रहे थे मनसुख से ।
लड्डू है……मेरी मैया नें बनाये थे…..काजू, बादाम पिस्ता सब है इसमें….मनसुख जोर लगा रहा है जबड़ों में…..पर गुड़ टूटता ही नही ।
क्रमशः…


Author: admin
Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877